टकराव की राजनीतिः जानिए, भाजपा पर क्यों हमलावर हुआ झामुमो
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और झामुमो आगामी चुनावों के लिए मुद्दे बटोरते दिखे।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ताधारी दल भाजपा और झामुमो में सीधा टकराव देखने को मिला। यह टकराव कई बार कटुता की सीमाओं को भी पार कर गया। राजनीतिक नफे-नुकसान की कसौटी पर तो यह सत्र दोनों ही दलों के लिए मुफीद रहा लेकिन जनता से जुड़े तमाम सवाल धरे रह गए।
विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और झामुमो आगामी चुनावों के लिए मुद्दे बटोरते दिखाई दिए। जिसमें कुछ हद तक दोनों ही दल सफल भी हुए।
आदिवासी हितों की बात करने वाले झामुमो को भाजपा ने चुंबन प्रतियोगिता पर घेर बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की। वहीं, झामुमो भूमि अधिग्रहण बिल और स्थानीय नीति के पुराने मुद्दे पर डटा रहा। आगामी चुनाव में भाजपा का सीधा मुकाबला झामुमो से है। मिशन 2019 के तहत भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए क्रमश: 14 और 60 प्लस सीट का लक्ष्य निर्धारित किया है। झामुमो गठबंधन की राह पकड़ सत्ता पाने की जुगत में हैं।
दोनों ही दल यह जानते हैं कि यह लक्ष्य बिना आदिवासियों के समर्थन के पूरा नहीं होगा। आदिवासी अब तक झामुमो के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं। इन वोटरों में सेंध लगाने के लिए सरकार धर्म स्वतंत्र विधेयक लाने के साथ ही आदिवासी समुदाय के हितों में लगातार घोषणाएं कर रही है। जिसे लेकर झामुमो में बेचैनी बढ़ गई है और वह भाजपा पर सीधे हमलावर है।
सरकार के हक में ही गया सत्र का न चलना
झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष में टकराव का आलम कुछ ऐसा रहा कि प्रश्न काल हो ही नहीं सका। सत्र की अवधि में कुल स्वीकृत 258 सवालों में एक का भी मौखिक उत्तर नहीं हो सका। कुल 15 ध्यानाकर्षण सूचनाएं स्वीकार की गईं, लेकिन किसी एक पर भी सरकार का वक्तव्य सदन में नहीं आ सका।
सदन का न चलना एक तरह से सरकार के हित में ही गया। सदन में पेश किए गए सात में से छह विधेयक पारित हो गए। झारखंड शिक्षा न्याधिकरण संशोधन विधेयक जरूर प्रवर समिति को भेजा गया। अनुपूरक बजट भी बिना किसी व्यवधान के पास हो गया। स्पष्ट कहें तो सरकार को कोई नुकसान नहीं हुआ। यदि सत्र सुचारू रूप से चलता तो कई मौकों पर वह घिर सकती थी। विपक्ष इस मौके से चूक गया।
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