जानिए, झारखंड सरकार को कैसे लगा 25 करोड़ का चूना
एनपीसीसी के हरकत से क्षुब्ध ग्रामीण विकास विभाग ने संबंधित एजेंसी को ब्लैक लिस्टेड करने के साथ सीबीआइ जांच कराने की अनुशंसा की है।
विनोद श्रीवास्तव, रांची। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाइ) के तहत ग्रामीण पथों के निर्माण में लगी पांच केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार को करोड़ों का चूना लगाया है। इनमें से सिर्फ एनपीसीसी (राष्ट्रीय परियोजना निर्माण निगम) की निष्क्रियता से राज्य को 25 करोड़ का नुकसान हुआ है। एनपीसीसी के हरकत से क्षुब्ध ग्रामीण विकास विभाग ने संबंधित एजेंसी को ब्लैक लिस्टेड करने के साथ सीबीआइ जांच कराने की अनुशंसा की है। संबंधित राशि की भरपाई के लिए केंद्र सरकार पर दावेदारी ठोंकने का मसौदा तैयार किया है।
विभाग की इस अनुशंसा पर मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने सहमति दे दी है। संबंधित एजेंसी की करतूतों से मुख्यमंत्री को भी अवगत कराया गया है। विभाग की ओर से भेजी गई अनुशंसा में कहा गया है कि संबंधित एजेंसियों को 10,900 करोड़ रुपये की लागत वाली ग्रामीण पथ निर्माण की 5957 योजनाएं सौंपी गई थी। इनमें से 2010 योजनाएं आज भी लंबित है। विभाग ने अपने पत्र में खासतौर पर एनपीसीसी पर फोकस करते हुए कहा है कि संबंधित एजेंसी की गुणवत्ता पर सर्वाधिक प्रश्न उठाए गए हैं। विधानसभा की समिति ने भी इसकी जांच के बाद सीबीआइ जांच की अनुशंसा की है। विभाग के अलावा मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री स्तर से भी एनपीसीसी की निष्क्रियता की ओर एनपीसीसी मुख्यालय तथा भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया गया है, परंतु स्थिति जय की तस है।
विभागीय पत्र के अनुसार एनपीसीसी की लंबित योजनाओं में सर्वाधिक 93 गुमला, 72 पश्चिम सिंहभूम तथा 63 पूर्वी सिंहभूम में है। इन जिलों में एक ही ठेकेदार को कई पैकेज आवंटित किए गए हैं तथा एक पैकेज में तीन से पांच सड़कें हैं। संवेदक पिछले छह वर्षो से कार्य पूरा करने की स्थिति में नहीं हैं। हद तो यह कि इनमें से कई संवेदक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर एकरारनामा रद करने तक की कार्रवाई की गई है, इसके बावजूद कई ठेकेदारों से आज भी कार्य लिए जा रहे हैं। इन योजनाओं को फिर से चालू कराने में तकरीबन 25 करोड़ रुपये का बोझ राज्य पर पड़ा है।
एनपीसीसी ने अपने कर्मियों को ही बना दिया ठेकेदार
विभागीय रिपोर्ट के अनुसार योजनाओं के लंबित रहने के मुख्य कारणों में से एनपीसीसी द्वारा ठेकेदारों को मनमाने तरीके से कार्य आवंटित किया जाना है। इतना ही नहीं एनपीसीसी के गुमला एवं पश्चिम सिंहभूम के तत्कालीन प्रोजेक्ट मैनेजरों ने एनपीसीसी के कई कर्मचारियों को भी अनौपचारिक रूप से ठेकेदार बना दिया और इस एवज में इन्हें कुछ फीसद राशि दे दी गई। शुरू में इन कर्मियों द्वारा कार्य किया गया, किंतु उग्रवाद और पदाधिकारियों के स्थानांतरण के बाद स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गई।