अमित शाह का संगठन को हर हाल में टास्क पूरा करने का अल्टीमेटम
अमित शाह सरकार व संगठन को टास्क दे गए तो यह भी तय मानिए कि परफॉर्मेंस की निगरानी भी शुरू हो गई।
राज्य ब्यूरो, रांची। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का प्रबंधकीय कौशल कार्यकताओं से लेकर सरकार तक को एक कसौटी में कसने में सफल रहा। तमाम कील-कांटे दुरुस्त करते हुए शाह सरकार और संगठन को टास्क दे गए तो यह भी तय मानिए कि परफॉर्मेंस की निगरानी भी शुरू हो गई। छोटी-छोटी बातें हैं और इन्हीं बातों में शाह का प्रबंधन दिखता है। नियमित मीटिंग करिए, बैठकों की प्रोसीडिंग दिल्ली तक भेजिए, मुद्दों पर बात हो, शिकायतें व्यक्तिगत न होकर मुद्दा आधारित हों आदि कई निर्देशों पर तत्काल प्रभाव से असर दिखने लगेगा।
अगले महीने के अंत तक हर जिले में भाजपा के नाम पर जमीन खरीदकर ऑफिस बनाने का फरमान भी उन्होंने सुनाया, ताकि कार्यकर्ताओं का स्वाभिमान बढ़े। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कार्यकर्ताओं को ताकत प्रदान कर गए हैं। नेता वही तय करेंगे और आगे उन्हीं में से लोग बढ़ेंगे। इस तरह संगठन की अनदेखी करने से विधायक, सांसद, मंत्री तक परहेज करेंगे। अभी से नेताओं की पकड़ और पहचान की जाने लगी है। पार्टी में कमजोर और उम्रदराज लोगों की पहचान इसके साथ ही शुरू हो चुकी है। उन नेताओं की भी पहचान जो सत्ता और संगठन से दूरी बनाकर खुद को बड़ा साबित करने में जुटे हैं।
जाहिर है, अगले चुनाव में इन्हें टिकट के लिए पार्टी लेवल पर अधिक मशक्कत करनी होगी। शाह ने राज्य में कोर टीम को स्पष्ट निर्देश दिया कि शासन करना सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं, बूथ तक पार्टी को पहुंचाना है। उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए उन्होंने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया और कहा कि भाजपा ने साबित कर दिया है कि तीन चौथाई सीट हासिल करना कोई असंभव काम नहीं है।
ये दिए निर्देश
- 31 अक्टूबर तक हर जिले में पार्टी कार्यालय के लिए जमीन खरीद ली जाए।
-जिलों में कार्यकारिणी की बैठकें गुणवत्तापूर्ण हों और इनकी रिपोर्टिग दिल्ली तक की जाए।
-बूथ, मंडल, मोर्चा और जिला के पदाधिकारियों की रिपोर्ट हर तीन महीने में दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय तक पहुंचे।
-जिलों के पदाधिकारी मंडलों में रात में जाकर रुकें और मुद्दों की पहचान करें। कार्यकर्ताओं की सुनें।
-व्यक्तिगत बातों को तरजीह नहीं देना है। -नेता यह समझ लें कि कार्यकर्ता केवल चुनाव जीतने का माध्यम नहीं।
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