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पुलिस वर्दी घोटालाः पूर्व आइजी रामचंद्र को तीन साल की सजा

पुलिस वर्दी घोटाले में सीबीआइ कोर्ट ने बिहार के तत्कालीन आइजी सहित चार लोगों को तीन-तीन वर्ष की सजा सुनाई।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 18 Sep 2017 03:33 PM (IST)Updated: Tue, 19 Sep 2017 09:49 AM (IST)
पुलिस वर्दी घोटालाः पूर्व आइजी रामचंद्र को तीन साल की सजा
पुलिस वर्दी घोटालाः पूर्व आइजी रामचंद्र को तीन साल की सजा

जागरण संवाददाता, रांची। 34 साल पुराने पुलिस वर्दी घोटाले में सीबीआइ कोर्ट ने बिहार के तत्कालीन आइजी सहित चार लोगों को तीन-तीन वर्ष की सजा सुनाई। साथ ही, 45 से 65 हजार रुपये तक जुर्माना भी लगाया गया। सीबीआइ की विशेष न्यायाधीश कुमारी रंजना अस्थाना की अदालत ने सोमवार को 120 पन्नों में यह फैसला सुनाया।

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आरोपियों में बिहार के तत्कालीन आइजी रामचंद्र खां के अलावा रांची के तत्कालीन सार्जेट मेजर रामानुज शर्मा, आपूर्तिकर्ता (मेसर्स अजंता फर्निशिंग हाउस पटना) के पार्टनर कैलाश कुमार अग्रवाल और आपूर्तिकर्ता (एसकेबी इंडस्ट्रीज कदमकुआं पटना) के पार्टनर राघवेंद्र कुमार सिंह शामिल हैं। इन सभी पर अधिक कीमत पर वर्दी की खरीदारी का आरोप है। घोटाले के समय रामचंद्र खां बिहार के पटना पुलिस हेडक्वार्टर में एआइजी-बी के पद पर कार्यरत थे।

फैसले की जानकारी सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक राकेश प्रसाद ने दी। उन्होंने बताया कि आरोपियों को तीन-तीन वर्ष की सजा सुनाई गई है। रामचंद्र खां, कैलाश व राघवेंद्र को 45-45 हजार रुपये और रामानुज शर्मा को 65 हजार रुपये का जुर्माना अदालत ने लगाया है। जुर्माने की राशि नहीं देने पर अभियुक्तों को छह-छह माह की अतिरिक्त सजा काटनी होगी। अदालत ने अलग-अलग धारा में सजा सुनाई। सभी सजा साथ-साथ चलेगी।

अदालत ने अभियुक्तों को अपील में जाने के लिए तत्काल जमानत की सुविधा प्रदान कर दी है। ऐसे में सभी जेल जाने से बच गए। बेल बांड भरे जाने के बाद उन्हें जमानत भी मिल गई। इस घोटाले में दस अभियुक्त थे, छह की ट्रायल के दौरान मौत हो गई और शेष चार के खिलाफ सजा सुनाई गई। उल्लेखनीय है कि डीएसपी रैंक के अधिकारियों को तब 500 रुपये तक की खरीदारी का अधिकार था, लेकिन सभी ने करीब 44 लाख रुपये तक की खरीदारी कर ली।

खरीदारी वैसे आपूर्तिकर्ताओं से की गई, जो पुलिस हेडक्वार्टर से अधिकृत नहीं थे। आरोपियों ने वर्दी के साथ अन्य सामग्री की भी खरीदारी कर ली। फैसले को लेकर कोर्ट रूम से लेकर कोर्ट परिसर में गहमागहमी का माहौल था।

8 लाख 91 हजार अधिक की खरीदारी

अभियुक्तों ने वर्ष 1983 से जुलाई 1984 के बीच करीब 44 लाख रुपये तक वर्दी की खरीदारी की। इस खरीदारी में आठ लाख 91 हजार 55 रुपये 92 पैसे अधिक राशि लगाई और सरकार को नुकसान पहुंचाया। बिहार सरकार ने 1986 में मामले को सीबीआइ को हैंडओवर किया था। मामले को लेकर सीबीआइ पटना के तत्कालीन स्पेशल डीएसपी अखिलेश्र्वर प्रसाद ने अभियुक्तों के खिलाफ 14 नवंबर 1986 को सीबीआइ कांड संख्या 43ए/96 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी।

इन सभी के खिलाफ आरोप था कि बिहार पुलिस मैनुअल और वित्तीय रूल और पुलिस हेडक्वाटर द्वारा जारी निर्देशों का उल्लंघन किया। वर्दी व अन्य सामग्री की खरीद के लिए टेंडर जारी नहीं किया। किसी समाचार पत्र के माध्यम से भी जानकारी नहीं दी गई और अपने चहेते आपूर्तिकर्ताओं से खरीदारी कर ली।

1996 में हुई थी चार्जशीट :

1996 में चार्जशीट दाखिल की गई थी। अदालत ने 12 अप्रैल 1996 को चार्जशीट पर संज्ञान लिया था। तीन दिसंबर 2001 को चार्जफ्रेम किया गया था। 22 अगस्त 2012 को अभियोजन साक्ष्य बंद हुआ। अभियोजन की गवाही में 11 वर्ष लग गए। 10 फरवरी 2014 को अभियुक्तों का बयान न्यायालय में दर्ज किया गया। बचाव की ओर से गवाही में दो वर्ष लगे। 10 नवंबर 2016 को बचाव साक्ष्य बंद हुआ।

वहीं 16 दिसंबर 2016 से बहस शुरू हुई। इसके बाद अदालत ने फैसला सुनाया। लंबे समय तक मामला चलने की मुख्य वजह अभियुक्तों द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का लगातार जाना रहा और अभियोजन स्वीकृति मिलने में भी विलंब मुख्य कारण रहा।

इन सामग्री की हुई खरीदारी :

अभियुक्तों ने अंगोला शर्ट तीन लाख 33 हजार 946 रुपये में खरीदी। वहीं दो लाख 88 हजार 980 रुपये का ग्रेट कोट, एक लाख 58 हजार 597 रुपये का वीमेन स्लेक्स, 62 हजार 925 रुपये की वीमेन जर्सी, 21 हजार 812 रुपये की ग्राउंड शर्ट और 24 हजार 794 रुपये के किट बैग की खरीदारी की थी।

11 आरोपियों के खिलाफ दर्ज थी प्राथमिकी :

वर्दी घोटाले में 11 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। एक आरोपी रांची के तत्कालीन एसएसपी वीके जोशी के खिलाफ न्यायालय में आरोप पत्र ही दाखिल नहीं किया गया था। ऐसे में उनके खिलाफ मामला नहींचला। ट्रायल के दौरान छह लोगों का निधन हो चुका। जिसमें चार लोगों को सजा सुनाई गई।

जिनका निधन हुआ उसमें तत्कालीन आइपीएस (एएसपी) ओटी मिंज, तत्कालीन सार्जेट मेजर एक रांची के जेके सेन, तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर वित्त सेक्सन ऑफिस ऑफ डीजी सह आइजीपी पुलिस हेडक्वार्टर पटना के योगधर झा, तत्कालीन आइपीएस एआइजी बी पुलिस हेडक्वार्टर बिहार पटना के राम हर्ष दास, तत्कालीन आइपीएस अधिकारी व असिस्टेंट इंस्पेक्टर जेनरल डब्लू पुलिस हेडक्वार्टर पटना बिहार के अनिल कुमार पांडेय, मेसर्स जनता बेडिंग डेट्रोस अशोक राजपथ पटना एवं मेसर्स रॉयल होजरी व‌र्क्स अशोक राजपथ पटना के बैजनाथ अग्रवाल का निधन ट्रायल के दौरान हो गया।

पुलिस पदाधिकारी रहते हुए किया गलत कार्य

अदालत द्वारा अभियुक्तों को दोषी ठहराए जाने के बाद सजा की बिंदु पर सुनवाई के दौरान बचाव के अधिवक्ता ने न्यायालय से कम से कम सजा की मांग न्यायालय से की। अभियुक्त के अधिवक्ताओं ने न्यायालय को बताया कि उम्र को देखते हुए और इतने पुराने मामले को ध्यान में रखते हुए सजा की बिंदु पर विचार किया जाए। जबकि सीबीआइ की ओर से विशेष लोक अभियोजक राकेश प्रासाद ने न्यायालय को कहा कि पुलिस का कार्य कानून की रक्षा करना है। गलत कार्य रोकना है। लेकिन टॉप के पदों पर रहते हुए अधिकारियों ने खुद गलत किया।

तीन और मामले हुए थे दर्ज :

अधिवक्ता सुनील कुमार सिन्हा ने बताया कि वर्दी घोटाले को लेकर तीन और मामले दर्ज हुए थे। तीन मामलों में पटना सीबीआइ कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए आरोपियों को क्लिन चीट दे दी थी। एक मामला धनबाद में चल रहा है। इसे निरस्त करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

जानिए, आरोपियों ने कहा

फैसला सुनने के बाद रामचंद्र खां ने कहा कि उन्हें फंसाया गया है। वर्दी के लिए उन्होंने एक लाख 75 हजार रुपये स्वीकृत किए थे। 44 लाख दूसरे लोगों ने दी। वहीं रामानुज शर्मा ने कहा कि मामले में उनका कोई दोष नहीं था। उन्होंने सिर्फ वरीय पदाधिकारियों के आदेश का पालन किया।

 

फैसला सुनने के बाद पानी पीते रामचंद्र खान।

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