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किताबों में भी नहीं दिखेंगी रांची की नदियां

रांची : राजधानी में विकास की जो गति है, उससे साफ है कि आनेवाले कुछ दिनों में शहर की छोटी-छोटी नदियां

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 01:33 AM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 01:33 AM (IST)
किताबों में भी नहीं दिखेंगी रांची की नदियां
किताबों में भी नहीं दिखेंगी रांची की नदियां

रांची : राजधानी में विकास की जो गति है, उससे साफ है कि आनेवाले कुछ दिनों में शहर की छोटी-छोटी नदियां इतिहास में गुम हो जाएंगी। जैसे सरस्वती का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है, लेकिन इन नदियों का उल्लेख किसी किताब में भी नहीं होगा। छोटी-छोटी ये नदियां, बड़ी नदियों का पेट भरती हैं और अपने आसपास के इलाके के जलस्तर को बनाए रखती हैं। पर, अब तो हम विकास का इतिहास लिखने के चक्कर में नदियों को इतिहास बनाने पर तुले हुए हैं। इस बार के रांची के पंद्रह दिनों तक 40 से ऊपर तापमान देखकर भी नहीं समझ पा रहे हैं। जबकि, रांची में इतने लंबे समय तक तापमान स्थिर नहीं रहा।

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बात कोकर के डिस्टिलरी पुल से करते हैं। यहां 1900 के आसपास अंग्रेजों ने मजबूत चेकडैम बनाया था। इसमें सती गड़हा नदी आकर मिलती थी। 1932 के पुराने खतियान के नक्शे में यह नदी साफ-साफ दर्शाई गई है। पर, रांची नगर निगम ने हाईकोर्ट में हलफनामा देकर कहा कि यहां कोई नदी नहीं थी। उसे नक्शे पर भी भरोसा नहीं है। अब इस नदी का भी पता नहीं, जो चेकडैम था, उसे भी तोड़कर विकास के नाम पर यहां तालाब बनाया जा रहा है।

करमटोली का नाम सब जानते हैं। पर, आज की पीढ़ी को नहीं पता होगा कि इस करमटोली का नाम करम नदी पर पड़ा है। नदी के नाम पर अब बस करमटोली रह गई है। नदी कहां गई पता नहीं। एक नदी पोटपोटो है, जो ओरमांझी से पहले जुमार नदी में मिलती है। यह नदी भी रातू के पीछे की एक पहाड़ी से निकलती है। इसका पानी बहुत शुद्ध माना जाता था। इसलिए, कांके जाते समय जयपुर पंचायत में अंग्रेजों ने पानी की टंकी बनवाई थी, जिससे कांके के मन:चिकित्सा संस्थान एवं कांके को पानी आपूर्ति किया जाता था। उसके अवशेष आज भी हैं। यह नदी जयपुर पंचायत को दो भागों में बांटती है-गारू और चंदवे। इसी पंचायत की रहने वाली डॉ. सुनीता बताती हैं कि इस नदी का नाम पोटपोटो, इसलिए पड़ा कि इसमें 1940 के आसपास पोटपोटो नामक एक व्यक्ति बह गए थे। पुराने लोग बताते हैं कि पांच घंटे भी यदि बारिश हो जाए, तो यह नदी लबालब हो जाती है। जुमार का उद्गमस्थल भी रातू का ही क्षेत्र है। केवटिया क्षेत्र से जुमार नदी निकलती है और स्वर्णरेखा नदी में जाकर मिल जाती है। करम नदी भी इन्हीं पहाड़ियों से निकलती थी। वहां से करम तालाब और इसके बाद डिस्टिलरी में आकर मिल जाती थी। इस तरह कई और छोटी-छोटी नदियां अपना अस्तित्व खो रही हैं। पर्यावरणविद् डॉ. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि अब भी इन नदियों से खिलवाड़ करते रहें, तो आने वाला समय हमारे जीवन के लिए बड़ा कठिन होगा। पर्यावरण भी बदलेगा और मौसम भी। अब बदलते मौसम के कारण प्रवासी पक्षी भी यहां कम आने लगे हैं। फिर भी अब प्रकृति के संकेत को नहीं समझ रहे हैं।

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सुंदरीकरण के नाम पर बर्बाद हो रही हरमू नदी

सुंदरीकरण के नाम पर हेम हरमू नदी को बर्बाद होते देख रहे हैं। कहीं कोई नदी भी पांच फीट की होती है? पर, सरकार ने नदी की चौड़ाई पांच फीट कर रखी है। हरमू नामकुम के पास जाकर स्वर्णरेखा में मिलती है। स्वर्णरेखा जैसी नदियों को ये छोटी-छोटी नदियां ही जल देती थीं, लेकिन हरमू नदी को हमने नाला बना दिया और उसके पाट क्षेत्र का अतिक्रमण कर मकान बना दिए।


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