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विपक्षी दल हाथोंहाथ ले रहे नीतीश कुमार को

रांची : झारखंड में जनता दल यूनाइटेड का खास जनाधार भले नहीं हो लेकिन पार्टी अध्यक्ष सह बिहार के मुख्य

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 May 2017 01:01 AM (IST)Updated: Tue, 30 May 2017 01:01 AM (IST)
विपक्षी दल हाथोंहाथ ले रहे नीतीश कुमार को
विपक्षी दल हाथोंहाथ ले रहे नीतीश कुमार को

रांची : झारखंड में जनता दल यूनाइटेड का खास जनाधार भले नहीं हो लेकिन पार्टी अध्यक्ष सह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खासे डिमांड में हैं। वे कुछ विपक्षी पार्टियों के लिए पसंदीदा चेहरा बनकर उभरे हैं। 17 मई को पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व वाली आदिवासी सेंगेल अभियान ने रांची में आदिवासियों की बड़ी रैली आयोजित की तो इसमें नीतीश कुमार बतौर मुख्य अतिथि आए और जमकर सुर्खियां भी बटोरी। अब 11 जून को जमशेदपुर में बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा ने उन्हें एक रैली को संबोधित करने का बुलावा भेजा है।

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रैली इस मायने में ज्यादा ध्यान खींचने वाली है कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास के विधानसभा क्षेत्र में नीतीश कुमार पहली बार दस्तक देंगे। इन रैलियों में समानता यह होगी कि भले ही इसका आयोजन अलग-अलग पार्टियों ने किया हो लेकिन मुद्दा जमीन संबंधी कानून सीएनटी-एसपीटी में संशोधन की राज्य सरकार की कवायद है। नीतीश कुमार इसके खिलाफ हैं। 17 मई को रांची की रैली में उन्होंने इसे आदिवासियों का गला दबाने सरीखी कार्रवाई तक बता डाला था।

दरअसल, झारखंड की तमाम विपक्षी पार्टियों ने जमीन संबंधी कानून में संशोधन की कोशिश का विरोध किया है। इसको लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा विधानसभा के भीतर-बाहर मुखर है तो अन्य पार्टियों ने भी अपने स्तर से अभियान चला रखा है। तमाम आंदोलनों का फिलहाल यह प्रमुख मुद्दा है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की भी कोशिश हो रही है ताकि राज्य की भाजपा सरकार असहज हो। विपक्ष यह दलील दे रहा है कि जब केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस ले लिया तो झारखंड में जमीन संबंधी कानून में संशोधन का प्रस्ताव क्यों नहीं वापस लिया जा सकता? लोकसभा के मानसून सत्र में इसे जोरदार तरीके से उठाने की भी तैयारी चल रही है।

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जदयू को खड़ा करने की भी तैयारी :

झारखंड में जदयू को खड़ा करने की कोशिशें भी तेजी से चल रही है। प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो को इस बाबत टास्क भी सौंपा गया है, लेकिन बिहार सरीखा जातीय समीकरण नहीं होने के कारण संगठन के विस्तार में परेशानी आ रही है। संगठन को सशक्त करने के लिए प्रदेश प्रभारी भी लगातार दौरा कर रहे हैं। सुस्त पड़ी कमेटियों के स्थान पर जिलों में नई कमेटियां गठित की जा रही हैं।

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