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ठंड की शाम कान्हा ने रचाया रास

रांची : मोरहाबादी के मैदान में पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक छटा बिखेरता विशाल मंच। मध्य में पुआल की झोप

By Edited By: Published: Mon, 05 Dec 2016 01:48 AM (IST)Updated: Mon, 05 Dec 2016 01:48 AM (IST)
ठंड की शाम कान्हा ने रचाया रास

रांची : मोरहाबादी के मैदान में पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक छटा बिखेरता विशाल मंच। मध्य में पुआल की झोपड़ी। उसके ऊपर धनेश पक्षी। पूरी रंग-बिरंगी रोशनी और आकाश के एक कोने से निहारता चांद। पांच दिवसीय आक्टेव का यह पहला दिन था। नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने दीप जलाकर इसकी औपचारिक शुरुआत की।

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सिक्किम के कलाकारों का संगिनी नृत्य

सिक्किम के कलाकारों ने संगिनी नृत्य पेश किया। शिव-पार्वती की पौराणिक कथा। जय गारा गणेश जय दुर्गा की वंदना। फिर सीता, सिंधु और गंगा भी। सिक्किम की स्मृतियों में गंगा भी है और सिंधु नदी भी। पर संगिनी नृत्य में एक स्त्री की पीड़ा भी है। दूर देश में ब्याही स्त्री अपने नैहर नहीं जा पाती। इसलिए, वह गाकर-नृत्य कर, पूजा कर अपना समय काटती है। पिता से कहती है, मुझे कबूतर दे देना। क्यों, इसलिए कि वह कम से कम सुबह में जगा देगा। सधे कदमों के साथ माथे पर तांबे के लोटे के ऊपर दीप सजाकर नृत्य कर रही थीं किशोरियां।

दिसंबर की शाम में उतरा बसंत

दूसरा नृत्य, मणिपुर का था। दिसंबर की शाम में बसंत उतर आया था। कृष्ण रास रचा रहे थे। बसंत की पूर्णिमा। मणिपुर का खास पहनावा। मणिपुर में पांच तरह के रास होते हैं। यह बसंत रास था। यह कृष्ण और राधा के उत्कृष्ट प्रेम और गोपियों की भगवान के प्रति आदर्श भक्ति पर आधारित है। चैत्र माह में पूर्णिमा की रात को श्री कृष्ण पहले से तय किसी कुंज में आते हैं और राधा के नेतृत्व में गोपियां उनकी पुकार के प्रयुत्तर में आती है और एक साथ नृत्य करती हैं। वे रंग और अबीर से होली खेलते हैं और अंत में उनका संयुक्त मिलन श्रृंगार रास होता है।

गीत-नृत्य का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते आगे बढ़ता है। मणिपुर से असम की ओर बढ़ते हैं तो कामरूप क्षेत्र के आदिवासी तिवा नृत्य पेश करते हैं। इसे आप मछुआरा नृत्य भी कह सकते हैं। यहां सौंदर्य के उपमान बदल गए थे। मछली मारने की गुमनी के साथ कलाकार नृत्य कर रहे थे। इस नृत्य और वाद्य पर बगल में बैठे झारखंड के मशहूर गायक-कलाकार मुकुंद नायक भी ताली बजाकर उत्साहवर्धन कर रहे थे। उनके पांव भी थिरकने लगे थे। कला-संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक विजय पासवान समझा रहे थे, यह मछुआरों का नृत्य है। मछली मारते समय भी नृत्य हो सकता है। यह आदिवासी जीवन दर्शन में ही संभव है। आदिवासी समाज से सीख सकते हैं कि सौंदर्य केवल बनावटी चीजों में नहीं होता। वह हमारे आस-पास बिखरा है। जैसे कबीर अपनी कविता के लिए बाहर से प्रतीक नहीं चुनते। ताना-बाना से ही काम चला लेते हैं। वैसे ही ये मछुआरे बस मांदर-झाल और गुमनी से काम चला लेते हैं।

सत्रिया और कथक की जुगलबंदी

असम के ही दूसरे कलाकारों ने सत्रिया और कथक की जुगलबंदी पेश की। बांग्ला बोल पर। त्रिपुरा की टीम ने होजागिर नृत्य पेश किया। होजागिर नई फसल के समय किया जाता है। मिजोरम के कलाकारों ने अपना नृत्य पेश किया। माथे पर वकीरिया और गले में कोरचेई।

हर पल को किया कैमरे में कैद

अग्रिम पंक्ति में बैठी डॉ सुष्मिता पांडेय लगातार अपने मोबाइल कैमरे से मंच के खूबसूरत क्षणों को कैद रही थीं। इस मामले में वह अकेली नहीं थीं। नृत्य का यह कारवां आगे बढ़ता गया और लोग आनंद लेते रहे। प्रांगण में लगे मेले का भी लोग आनंद ले रहे थे। ठंड में बाटी-चोखा का स्वाद अलग आनंद दे रहा था।

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पूर्वोत्तर की संस्कृति को समझने का मिलेगा मौका : सीपी सिंह

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर की संस्कृति को समझने का मौका मिलेगा। इस आयोजन से हम वहां के लोगों की संस्कृति, समाज और नृत्य-संगीत से रूबरू होंगे। यह भी पता चलेगा कि वह हमारा ही हिस्सा है। 132 करोड़ की आबादी में हमारा पूर्वोत्तर भी है। हमारे प्रधानमंत्री सबका साथ-सबका विकास की बात करते हैं। इसमें देश की पूरी आबादी समाहित है। सभी जाति, धर्म, मजहब के लोगों के विकास की बात करते हैं। एक भारत-श्रेष्ठ भारत की बात करते हैं। सीपी सिंह ने कहा कि जब विस अध्यक्ष थे, तब पूर्वोत्तर जाने का मौका मिलता था। पर, आज यहां पूर्वोत्तर आया है। हम इनका स्वागत करते हैं।

शॉल व बुके देकर किया सम्मानित

कार्यक्रम में पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र कोलकाता के निदेशक डॉ ओम प्रकाश भारती ने सबको शॉल व बुके देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में कांके विधायक जीतू चरण राम, कला-संस्कृति विभाग के सचिव राहुल शर्मा, निदेशक अशोक कुमार सिंह, मुकुंद नायक, कमल कुमार बोस, सुशील अंकन, सुष्मिता पांडेय, ओडिशा के समाजसेवी संतोष अमात्य आदि उपस्थित थे। डॉ भारती ने सबका स्वागत किया और बताया कि यहां पूर्वोत्तर के छह सौ कलाकार आए हैं। झारखंड के भी छह सौ कलाकार अखड़ा में कार्यक्रम पेश करेंगे। कार्यक्रम में पुरातत्व विभाग के सहायक निदेशक डॉ अमिताभ कुमार, एसडी सिंह, अजय मलकानी, गार्गी मलकानी सहित काफी संख्या में कला प्रेमी उपस्थित थे।

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प्रवेश निश्शुल्क

दिन के 11 बजे से रात नौ बजे तक।

सांस्कृतिक कार्यक्रम संध्या चार से आठ बजे तक।


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