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विकास मॉडल जैव विविधता के लिए खतरा

रांची : वर्तमान में विकास का जो मॉडल है, इससे स्थानीय जैव विविधता को खतरा है। बहुत सारे ऐसे पौधे है

By Edited By: Published: Sat, 22 Oct 2016 06:34 PM (IST)Updated: Sat, 22 Oct 2016 06:34 PM (IST)
विकास मॉडल जैव विविधता के लिए खतरा

रांची : वर्तमान में विकास का जो मॉडल है, इससे स्थानीय जैव विविधता को खतरा है। बहुत सारे ऐसे पौधे हैं, जो किसी खास स्थान पर ही पाए जाते हैं। इसलिए ऐसे पौधों का संरक्षण जरूरी है। यह बातें शांति निकेतन से आए प्रो.समित राय ने कही। वह शनिवार को रांची विवि में के बॉटनी विभाग में आयोजित सिंपोजियम के दूसरे दिन टेक्निकल सेशन में बोल रहे थे।

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इसमें 21 वैज्ञानिकों ने अपने शोधकार्यो से सभी को अवगत कराया। 200 से अधिक शोधार्थियों ने पेपर प्रस्तुत किए। आयोजन सचिव प्रो.ज्योति कुमार ने सभी सेशन के चेयरमैन व रेपोर्टियर को मोमेंटो देकर सम्मानित किया। राची विवि के कुलपति प्रो.रमेश कुमार पांडेय ने सभी को बधाई दी।

वैद्यों ने बताया पारंपरिक इलाज

समरोह में झारखंड के सुदूर इलाके से करीब 20 वैद्यों को भी पारंपरिक इलाज के तौर-तरीके को बताने के लिए बुलाया गया था। वैद्य सत्यवान प्रधान ने प्राचीन तरीके से दर्द, बुखार, हृदय रोग का इलाज बताया। चतुर महतो ने शरीर में जहर फैलने पर उसे खत्म करने, चर्म रोग के प्राकृतिक इलाज के बारे में बताया। शोधार्थियों ने कई सवाल भी किए, जिनका जवाब इन लोगों ने सहजता से दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रो. अशोक चौधरी, डॉ.एचपी शर्मा, डॉ. आनंद ठाकुर, डॉ.कामिनी कुमार, सुमित, स्नेहा, संजय, उन्निता, स्नेहा सिंह, अजय कुमार, सुनील झा आदि का योगदान रहा।

फंगस पर्यावरण में परिवर्तन का सूचक

उस्मानिया विवि के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. सी मनोहराचारी ने कहा कि फंगस पर्यावरण में होनेवाले परिवर्तन का सूचक होता है। अलग-अलग इलाके में इसकी विविधता भिन्न-भिन्न होती है। रिसर्च करने वालों के लिए फंगस का उपयोग सबसे सस्ता और प्रभावी होता है। बायोटेक्नोलॉजी का अधिक रिसर्च फंगस पर ही हो रहा है।

पौधों के विभिन्न भागों से बनाएं कंपोस्ट

टेक्निकल सेशन में साउथ अफ्रीका से आईं प्रो.नम्रिता लाल ने पौधों में एंटी बैक्टीरियल एवं एंटी इनफ्लेमेशन पर कहा कि बहुत सारे पौधे बैक्टीरिया एवं एलर्जी से बचने के लिए अपनी व्यवस्था विकसित करते हैं। इसका उपयोग मेडिकल साइंस में किया जा सकता है। बनारस से आए प्रो.एनके दुबे ने एग्रीकल्चर में ग्रीन रसायनों पर कहा कि खेती में रासायनिक खाद का उपयोग बंद कर पौधों के ही अलग-अलग भागों का कंपोस्ट बनाकर उपयोग करने से फसल की उत्पादकता बढ़ने के साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।


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