मेरे जीवन का यादगार लम्हा : ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित सिलवानुस
राष्ट्रपति के हाथों ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जागरण से बात करते हुए हॉकी स्टार रहे सिलवानुस डुंगड़ुंग ने कहा कि आज मेरा जीवन सार्थक हो गया।
जागरण संवाददाता, रांची। नई दिल्ली में सोमवार को राष्ट्रपति के हाथों ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जागरण से बात करते हुए हॉकी स्टार रहे सिलवानुस डुंगड़ुंग ने कहा कि आज मेरा जीवन सार्थक हो गया। वो दो मिनट मेरे जीवन का यादगार लम्हा बन गया जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खुद अपने हाथों से मुझे यह सम्मान व प्रशस्ति पत्र दिया। सच कहूं, खुशी इतनी कि मन में समा ही नहीं रहा। यह सम्मान जीवनभर मेरे दिल में रहेगा। आज लग रहा है कि मेरा जीवन सार्थक हो गया। प्रस्तुत है सिलवानुस डुंगडुंग से जागरण से बातचीत का अंश:-
जब सम्मान के लिए आपको बुलाया गया तो कैसा लगा?
पुरस्कार के लिए जब मेरा नाम पुकारा गया तो कुछ देर के लिए मैं नर्वस सा हो गया। फिर अचानक मेरे कदम उस दिशा में बढ़ गए जहां मंच पर राष्ट्रपति थे। दिन के 2.59 बजे मुझे पुरस्कार में पांच लाख रुपये, मोमेंटो और प्रमाण पत्र मिला। मेरे लिए यह सब सपना की तरह लग रहा था। दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में यही सोच रहा था कि मैं सपने की दुनिया में खोया हुआ हूं। लेकिन पुरस्कार मिलते ही सपने हकीकत बन चुके थे। यह पुरस्कार झारखंड के लोगों को समर्पित।
इसके पहले इतनी खुशी कब मिली थी?
इससे पहले मास्को ओलंपिक (1980) में जब हमारी टीम ने स्वर्ण पदक जीता था। तब स्पेन के खिलाफ फाइनल में उनकी शानदार स्ट्राइक के बल पर सुरेन्द्र सिंह सोढ़ी ने खेल समाप्त होने के महज 10 सेकेंड पहले गोल दाग कर भारत का राष्ट्रीय ध्वज लहराया था। इसके बाद आज जब मुझे ध्यानचंद पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो खुशी इतनी हो रही है कि इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता।
रियो ओलंपिक में भारतीय टीम के प्रदर्शन पर आप क्या कहना चाहेंगे?
रियो ओलंपिक में भारतीय टीम और बेहतर कर सकती थी। लेकिन अंतिम समय मे दबाव में आ जाने का विरोधी टीमों ने पूरा लाभ उठाया। गोल करने के बाद रक्षात्मक होना हमारी गलती रही। हमारी टीम दबाव में नहीं आती तो पदक निश्चित था।
झारखंड में हॉकी के बारे में आपकी क्या राय है?
झारखंड में जितनी प्रतिभा है, उसे अगर सही तरीके से तराश दिया जाए तो हम यहां से कई बेहतर खिलाड़ी देश को दे सकते हैं।