झारखंड को दें विशेष राज्य का दर्जा : नीतीश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की ही तरह झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की वकालत कर इस पुराने मुद्दे को नया राजनीतिक राग छेड़ दिया है।
राज्य ब्यूरो, रांची। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की ही तरह झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की वकालत कर इस पुराने मुद्दे को नया राजनीतिक राग छेड़ दिया है। भूमि अधिग्रहण और विस्थापन विषय पर झाविमो और जदयू द्वारा सोमवार को यहां हुए साझे कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री ने यह राग छेड़ा।
उन्होंने कहा कि झारखंड से उनका भावनात्मक लगाव रहा है। विशेष राज्य का दर्जा इसकी जरूरत है। बिहार का विभाजन झारखंड की बेहतरी के लिए किया गया था, परंतु 16 साल में भी तमाम मुद्दे यथावत हैं। झारखंड और बिहार के तथाकथित विवादों को लेकर तकरार उनका मकसद नहीं। राज्यहित में उन्होंने झारखंड को उसके कैडेस्टल नक्शे देने का फैसला लिया है। अन्य विवाद भी शीघ्र सुलझाने के वे पक्षधर हैं। इस मसले पर दोनों राज्यों के मुख्य सचिव वार्ता करेंगे, फिर दोनों सरकारें मिल बैठकर सकारात्मक हल ढूंढ लेंगी। अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्रित्व काल में बिहार ने इस दिशा में पहल की थी, परंतु तब बात आई गई हो गई।
नीतीश ने कहा कि खासतौर पर विस्थापन झारखंड की बड़ी समस्या है। अधिग्रहीत जमीन पर न तो प्लांट लगे, न विस्थापितों को मुआवजा मिला और न ही उनका पुनर्वास हुआ। सामान्य तौर पर ऐसी भूमि मूल रैयतों को लौटा देनी चाहिए, परंतु एचइसी जैसी कंपनियां उसे बेच रही हैं और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है।
उन्होंने इस मसले को सुलझाने के लिए विस्थापन एवं पुनर्वास नीति आयोग के साथ-साथ ग्रामीणों की सहमति से लीज पर जमीन लेने की सशक्तनीति बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि आयोग अधिकार संपन्न हो, जिसकी बात सरकार सुने, न कि वह सरकार के इशारे पर चले।
बिहार के मुख्यमंत्री ने विस्थापन के मुद्दे पर झाविमो-जदयू के साझा आंदोलन पर अपनी रजामंदी जताई। उन्होंने कहा कि नक्शे देने के उनकी घोषणा पर झारखंड के मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना चाहिए था लेकिन वे अनाश-शनाप बोल रहे हैं।
नीतीश ने इस बात पर अफसोस जताया कि बिहार में लागू शराबबंदी को अधिक प्रभावकारी बनाने के लिए उन्होंने झारखंड सरकार से सीमावर्ती क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की गुजारिश की तो झारखंड सरकार ने शराब का कोटा 35 फीसद बढ़ा दिया। उन्होंने आगाह किया रघुवर सरकार जनहित में काम करे नहीं तो जनता बाहर का रास्ता दिखा देगी।
उन्होंने झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को झारखंड की आवाज करार दिया तथा राज्य को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए बाबूलाल की सरकार बनाने की दिशा में झाविमो-जदयू कार्यकर्ताओं को जुट जाने को कहा।
बिहार के जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने झारखंड सरकार पर आरोप लगाया कि वह पूंजीपतियों के हित मेें काम कर रही है।
झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने अपने संबोधन में कहा कि 1950 से 1996 के बीच 211 छोटे-बड़े उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहित की गई। 1996 में जारी रिपोर्ट के अनुसार तब 30 लाख लोग विस्थापित हुए थे, जिन्हें आज तक उचित मुआवजा नहीं मिला।
मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं, परंतु नेतरहाट नामांकन घोटाले का पर्दाफाश करने में उनका पसीना छूट रहा है। इस बीच बंधु तिर्की ने रांची विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए हालिया सर्वे के हवाले से बताया किराज्य में विस्थापितों की संख्या एक करोड़ को पार कर गई है। सम्मेलन में राज्यसभा सांसद हरिवंश, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो, प्रदेश प्रभारी श्रवण कुमार, संतोष कुमार, रामचंद्र केशरी, भगवान सिंह, संजय सहाय, सबा अहमद, केके पोद्दार, सुनील साहू, जफर कमाल, सरोज सिंह आदि ने भी अपनी बातें रखी।
अधिकार के सवाल पर रघुवर सरकार लगाती है गुंडा एक्ट : बाबूलाल
झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड में भू-अधिग्रहण के मामले में यहां के रैयतों का बहुत ही खराब अनुभव रहा है। यही कारण है कि अब वे जमीन देने से कतराते हैं और सड़क पर उतर आते हैं। अगर लोग अपने अधिकार को लेकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं तो उनपर गुंडा एक्ट लगा दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार अधिग्रहीत की जानेवाली जमीन की कीमत कारपोरेट घरानों के इशारे पर तय करती है। राज्य की विधि व्यवस्था चौपट हो गई है। बुनियादी सुविधाओं के लिए लोग तरस रहे हैं, आइआइएम में दो साल से निदेशक नहीं है। सरकार इन समस्याओं को दूर करने के बजाय कारपोरेट घरानों को उपकृत करने में जुटी है।