जेएसइबी के तत्कालीन चेयरमैन और आरपीसीएल पर चार्जशीट
प्रणव, रांची : भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने एपीडीआरपी (एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्
प्रणव, रांची : भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने एपीडीआरपी (एक्सलेरेटेड पावर डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म्स प्रोग्राम) के तहत जमशेदपुर जिले में पैकेज-डी के कार्य में 10.89 करोड़ रुपये का घालमेल पकड़ा है। उसकी जांच में यह बात साबित हुई है। इस कांड के अप्राथमिकी अभियुक्त जेएसइबी (झारखंड स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड) के पूर्व चेयरमैन बृज मोहन वर्मा और मेसर्स आरपीसीएल (रामजी पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड) के सीएमडी अशोक कुमार सिंह के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया है। वर्मा फिलहाल सी/275, शेख सराय, फेज वन, न्यू दिल्ली में रहते हैं। उनका अस्थायी पता कुमार निवास, ब्राइट लेन, कोकर, रांची है। वे मूल रूप से बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा, चपरा के निवासी हैं। यह कांड 20 जनवरी 2011 को दर्ज किया गया था।
चार्जशीट में एसीबी ने कहा है कि केंद्र प्रायोजित एपीडीआरपी पैकेज-डी 33.13 करोड़ रुपये का था। इस पैसे से जमशेदपुर जिले में विद्युत आपूर्ति बेहतर करने के साथ डिस्ट्रीब्यूटर तार और पोल का अपग्रेडेशन करना था। इसके लिए 2003 में विभाग ने निविदा निकाली थी। शर्त यह थी कि काम करने वाली एजेंसी तय समय में इसे पूरा करेगी और इस्टीमेटेड राशि में वृद्धि नहीं की जाएगी। निविदादाता तीन एजेंसियों में से आरपीसीएल का चयन विभाग द्वारा किया गया था। कांट्रेक्ट और एग्रीमेंट के मुताबिक आरपीसीएल को आठ माह के अंदर यानी 26 सितंबर 2005 काम पूरा कर देना था। विभाग ने काम करने वाली एजेंसी को मैटेरियल खरीद और निर्माण के मद में 28.90 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। जांच में यह पाया गया कि 27 दिसंबर 2006 तक आरपीसीएल ने कोई काम नहीं किया। रिपोर्ट के मुताबिक एजेंसी को मैटेरियल खरीद के लिए 27.93 करोड़ रुपये दिया गया, जो प्रोजेक्ट मैटेरियल कॉस्ट का 91.11 फीसद था। निर्माण के लिए उसको 2.35 करोड़ रुपये दिये गये थे, जो प्रोजेक्ट कॉस्ट का 46.16 फीसद था। समय पर काम नहीं करने के बाद संवेदक कंपनी के अनुरोध पर नवंबर 2006 में तत्कालीन मुख्य अभियंता द्वारा जुलाई 2007 तक कार्य अवधि का विस्तार कर दिया गया लेकिन इस तारीख तक भी काम पूरा नहीं हुआ। इसके बाद तत्कालीन जेएसइबी अध्यक्ष शिवेंदु ने संवेदक का कांट्रेक्ट टर्मिनेट करने का प्रस्ताव बोर्ड के समक्ष रखने का निर्देश दिया था।
अनुसंधानकर्ता आनंद जोसेफ तिग्गा ने कहा है कि निविदा में टर्म एंड कंडीशन, वर्क आर्डर, एग्रीमेंट और प्राक्कलित राशि में बढ़ोतरी की स्पष्ट मनाही के बाद भी साजिश के तहत जिम्मेवार अधिकारियों ने संचिका में टिप्पणी अंकित करना शुरू किया। रामायण पांडेय को आर्बिटेटर नियुक्त करने के बाद उनके द्वारा इनटरिम आवार्ड मेसर्स आरपीसीएल के पक्ष में दिया गया। इसके बाद तत्कालीन जेएसइबी चेयरमैन बृज मोहन वर्मा ने झारखंड के तत्कालीन महाधिवक्ता से चार बिंदुओं पर राय मांगी। उनके द्वारा दिया गया मंतव्य पूर्ण रूप से आरपीसीएल के पक्ष में था। उन्होंने आर्बिटेटर के पारित अवार्ड के खिलाफ अपील में नहीं जाने की सलाह दी थी। एसीबी ने इसको सरासर गलत माना क्योंकि आर्बिटेटर एक्ट के मुताबिक आर्बिटेटर द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील दायर की जा सकती है। जांच रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि बाद में खानापूर्ति के लिए अपील दायर की गई। इसके पहले ही आरपीसीएल को राशि का भुगतान कर दिया गया था। इसमें चेयरमैन वर्मा ने गलत तथ्यों के आधार पर बोर्ड के अधिकारियों को अंधेरे में रख आरपीसीएल को लाभ पहुंचाया। कैग आडिट के मुताबिक आरपीसीएल को 10.89 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया गया। यह विद्युत बोर्ड का साफ नुकसान था।
इस मामले में जेएसइबी के तत्कालीन वित्त नियंत्रक उमेश कुमार, वीरेंद्र प्रताप दुबे, वरीय प्रबंधक देवाशीष महापात्रा, सतीश चंद्र श्रीवास्तव, निरंजन रा, डब्ल्यू एनके होरो के खिलाफ 27 जुलाई 2015 को और कार्यपालक अभियंता पुष्पेंद्र कुमार सिन्हा के खिलाफ आठ जनवरी 2016 को चार्जशीट दाखिल किया जा चुका है।