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इतिहास लेखन को तैयार करें बिबिलियोग्राफी

रांची : इतिहास लेखन के लिए बिबलियोग्राफी (ग्रंथसूची संदर्भिका) तैयार करना जरूरी है, जिसमें प्राचीन औ

By Edited By: Published: Mon, 30 Nov 2015 01:00 AM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2015 01:00 AM (IST)
इतिहास लेखन को तैयार करें बिबिलियोग्राफी

रांची : इतिहास लेखन के लिए बिबलियोग्राफी (ग्रंथसूची संदर्भिका) तैयार करना जरूरी है, जिसमें प्राचीन और मध्यकालीन से लेकर आधुनिक इतिहास शामिल हों। जिस काल में जो काम हुआ है, उसकी तालिका बनाएं। ये बातें रवींद्र भारती विवि से आए डॉ. ¨हतेंद्र पटेल ने कहीं। वे रविवार को इतिहास विभाग में झारखंड के इतिहास के पुनर्लेखन पर आयोजित दो दिनी सेमिनार के समापन पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर बिबिलियोग्राफी तैयार होगा, तो किसी विषय पर जानकारियां एक ही जगह मिल जाएंगी। इससे लोगों को जोड़ने की बात हो। बिहार-बंगाल में जो काम हुए है,ं उसे देखें। वहां से भी कई जरूरी बातें सामने आएगी। मंच संचालन डॉ. डीके शरण ने किया।

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मौके पर आयोजक सचिव डॉ. आइके चौधरी, डॉ. एके सेन, परीक्षा नियंत्रक डॉ. आशीष झा, डॉ. दिवाकर मिंज, डॉ. एमपी सिंह, विभागाध्यक्ष डॉ. रघुनाथ यादव, डॉ. गीता ओझा सहित अन्य थे।

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इतिहास लिखाने का काम सरकार का नहीं

डॉ. पटेल ने कहा कि इतिहास लिखने-लिखाने का काम सरकार का नहीं है। इतिहास हमारी जैविक आवश्यकता है। इसके लिए बैचेनी पैदा करनी होगी। हमें इतिहास चाहिए। यह रोटी- पानी की तरह है। हम भूखे रहकर इतिहास लिखेंगे। इसके लिए सरकार से करोड़ों की मदद नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें यह समझना होगा कि नेशन पहले बनता है, नेशनलिज्म बाद में आता है।

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वोकेशनल में पढ़ाई भी जरूरी

इतिहास में शोध करनेवाले छात्रों की संख्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि एक बार परीक्षा के समय वे विभाग में पहुंचे थे। उस समय वोकेशनल कोर्स आर्केलॉजी व म्यूजोलॉजी की परीक्षा चल रही थी। छात्रों का कहना था कि उन्होंने नामांकन तो ले लिया, लेकिन पढ़ाई ही नहीं होती है, तो उत्तर कैसे लिखें। जब पढ़ाई नहीं होती है, तो ऐसे वोकेशनल कोर्स के संचालन का क्या फायदा है।

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इतिहास से जुड़ा है भविष्य

कार्यक्रम के सभाध्यक्ष इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एचएस पाडेय ने कहा कि आर्थिक सहायता मिले या न मिले, लेकिन इतिहास लेखन का कार्य हमें ही करना है। इससे हमारा भविष्य जुड़ा है। यह हमारा दायित्व और धर्म है। लेखन में जहां-जहां कार्य हो रहे हैं उनके बीच समन्वय बैठाने की जरूरत है। शोध कार्य करके उसे आलमीरा में रखने से लाभ नहीं होगा। झारखंड के इतिहास लेखन में पूर्णता नहीं है। रांची कॉलेज के प्रो. एके चट्टोराज ने कहा कि इतिहास लेखन की प्रक्रिया रांची विवि से शुरू हो तो यह ऐतिहासिक होगा। इतिहास विभाग में आदिवासी शोध संस्थान बने।

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यूजीसी को भेजें प्रस्ताव

भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सदस्य सचिव डॉ. केपी शुक्ला ने कहा कि झारखंड के इतिहास के लेखन के लिए प्रत्येक विवि का मॉडल लेकर यूजीसी को प्रस्ताव बनाकर भेजा जाना चाहिए। इसमें सभी के समन्वय से तथ्यों में सत्यता होगी। हमें अपने भविष्य को लेकर जागरूक रहना होगा। यह इतिहास की सही जानकारी से संभव है। डॉ. दिवाकर मिंज ने कहा कि इतिहास लेखन में आदिवासी शब्द का प्रयोग होना चाहिए। इसके अध्ययन के लिए एक संस्था बने।

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94 पेपर की प्रस्तुति

आयोजक सचिव डॉ. आइके चौधरी ने कहा कि दो दिनी सेमिनार में कुल 94 पेपर प्रस्तुत होंगे। छात्रों की शोध के प्रति रुचि बढ़ी है। डॉ केके ठाकुर ने कहा कि जो पेपर प्रस्तुत किए गए हैं, उनमें कई में सिर्फ खानापूर्ति की गई है। जब तक पूरा टेक्स्ट नहीं हो, सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना चाहिए।

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