बिजली घाटे का झटका नहीं सहेगी सरकार
प्रदीप सिंह, रांची : राज्य सरकार बिजली आपूर्ति मद में हर वर्ष होने वाले भारी-भरकम घाटे को अब बर्द
प्रदीप सिंह, रांची : राज्य सरकार बिजली आपूर्ति मद में हर वर्ष होने वाले भारी-भरकम घाटे को अब बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है। राज्य ऊर्जा वितरण निगम को घाटा शून्य करने की कवायद के तहत तमाम निपटारे के बाद सरकार सभी प्रकार की वित्तीय सहायता बंद कर देगी। स्पष्ट तौर पर यह ताकीद कर दी गई है कि तमाम सुधारात्मक उपायों को अपनाकर ऊर्जा वितरण निगम अपने घाटा का समायोजन कर ले। उदय योजना के तहत केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के साथ हुए समझौते में भी इसका जिक्र है। कहा गया है कि अपनी क्षमता के सुधार के बिंदुओं पर ऊर्जा वितरण निगम दृढ़तापूर्वक कार्रवाई करेगा। हर माह इसकी सख्ती से समीक्षा होगी। इसका दारोमदार वित्त विभाग पर होगा। वित्त विभाग मासिक समीक्षा के तमाम बिंदुओं से मुख्यमंत्री को अवगत कराएगा। समझौते के बिंदु में इसका जिक्र है कि विद्युत निगम को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाना पड़ेगा। ऐसा न हो कि फिर से घाटे की स्थिति पैदा होने लगे। ऐसे में कुछ वर्षो बाद फिर से वित्तीय स्थिति लचर होगी। स्पष्ट किया गया है कि भविष्य में विद्युत निगम को घाटा होता है तो वैसी स्थिति में इसकी पूरी जिम्मेदारी विद्युत निगम की होगी। निगम अपनी क्रेडिट रेटिंग कराकर बांड निर्गत करेगा। उसे बाजार से पैसे की उगाही कर घाटे को पाटना होगा।
राज्य सरकार रिसोर्स गैप के मद में हर वर्ष करोड़ों रुपया ऊर्जा वितरण निगम को उपलब्ध कराती है। इसी के बूते सारा कामकाज चलता है। वित्तीय वर्ष 2014-2015 में राज्य सरकार ने रिसोर्स गैप के मद में विद्युत निगम को 2000 करोड़ रुपए की सहायता दी थी। चालू वित्तीय वर्ष 2015-2016 में अभी तक निगम को 1600 करोड़ रुपए घाटे के मद में दिया जा चुका है जबकि वित्तीय वर्ष समाप्त होने में अभी चार माह शेष है।
2012 में ठुकराया था प्रस्ताव
भारत सरकार ने वर्ष 2012 में राज्य की ऊर्जा वितरण कंपनियों को वित्तीय तौर पर मजबूत करने के लिए एक योजना तैयार की थी। इसके तहत अल्प अवधि देनदारी का 50 प्रतिशत एकमुश्त सरकार को देना था और शेष राशि को रिशिड्यूल करना था। इसके लिए राज्य सरकार को बैंकों और वित्तीय संस्थानों से विशेष प्रतिभूति जारी कर पैसा इकट्ठा करना था। इसका ब्याज दर बाजार भाव के आसपास था। उस वक्त यह राशि आरबीआइ की तुलना में काफी ज्यादा थी। इस बिंदु पर वित्त विभाग ने समीक्षा के बाद प्रस्ताव को ठुकरा दिया और योजना में झारखंड शामिल नहीं हुआ।
एकमुश्त पड़ेगा 6050 करोड़ का ऋण भार
उदय योजना में शामिल होने से झारखंड को राजकोषीय लाभ तो होगा लेकिन सरकार पर एकमुश्त लगभग 6050 करोड़ रुपए के अतिरिक्त ऋण का भार पड़ेगा। नौ प्रतिशत की दर से हर साल सरकार को 544.50 करोड़ रुपए ब्याज मद में अदायगी करना होगा। वैसे यह पूर्व में होने वाली देनदारी से कम है। उक्त समझौते के मुताबिक सरकार को 13 प्रतिशत तक ब्याज चुकाना पड़ता।
कहां जाता है पैसा?
बिजली की खरीद (मासिक)- लगभग 480 करोड़।
उपभोक्ताओं से वसूली (मासिक) - लगभग 200 करोड़।
संचरण-वितरण घाटा - 32 प्रतिशत।
हर साल का घाटा - लगभग 2700 करोड़।
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