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एक ही मंडप में हुई पिता-पुत्र की शादी, पोता बना गवाह

live in. झारखंड में लिव इन में रह रहे 132 जोड़ों को सामाजिक मान्यता मिल गई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 06:57 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 02:53 PM (IST)
एक ही मंडप में हुई पिता-पुत्र की शादी, पोता बना गवाह
एक ही मंडप में हुई पिता-पुत्र की शादी, पोता बना गवाह

जागरण संवाददाता, रांची। कभी हालात के कारण और कभी पैसे नहीं होने की वजह से कई जोड़े बिना शादी किए एक-साथ रहने लगते हैं। कई वर्षों तक साथ रहने के बाद इनमें से कई जोड़ों के बच्चे भी हो जाते हैं। मुंडा समाज के लिव इन में रहने वाले जोड़ों के लिए सोमवार का दिन बहुत ही खास रहा। 132 जोड़ों को सामाजिक मान्यता की दिशा में पहल की गई। निमित्त फाउंडेशन ने एचपीसीएल व प्रदान की मदद से इनकी शादी करवाई। इन जोड़ों को आशीर्वाद देने के लिए समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में विधानसभा के स्पीकर दिनेश उरांव मौजूद रहे।

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इनके साथ ही कांके विधायक जीतू चरण राम, एनएचआइडीसीएल के एमडी एनएन सिन्हा, सीसीएल से अनुपम, उपविकास आयुक्त दिव्यांशु झा, निमित्त की सचिव निकिता सिन्हा आदि भी उपस्थित रहे।मौके पर दिनेश उरांव ने कहा कि आज यह शादी करा कर निमित्त बहुत ही अच्छा काम कर रही है, इससे इन जोड़ों को समाज में पहचान मिलेगी। उन्हें हर तरह का अधिकार मिल सकेगा, इसमें सरकार को भी आगे आना चाहिए। निकिता ने बताया कि बुड़ानाग नाम के एक व्यक्ति ने उन्हे ऐसे जोड़ों की शादी कराने की प्रेरणा दी, हालांकि उनकी शादी अभी तक नहीं हो पाई है।

लिव इन में रहने के बाद शादी के बंधन में बंधा बुजुर्ग जोड़ा।

लिव इन रिलेशनशिप जैसा ही है धुकुआ विवाह
लिव इन रिलेशनशिप महज पाश्चात्य संस्कृति का ही हिस्सा नहीं है। झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा आदि जगहों के आदिवासी समूह में भी लिव इन रिलेशनशिप की परंपरा बरसों से प्रचलित है। इस परंपरा को धुकुआ कहा जाता है। धुकुआ दंपती को समाज से दूर रखा जाता हैं क्योंकि इनका विवाह परंपरागत तरीके से नहीं हुआ है। भारत में लिव इन रिलेशनशिप कानूनी होने के बावजूद समाज की नजरों में यह पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है। इन जोड़ों में पत्‍‌नी को कोई कानूनन अधिकार प्राप्त नहीं होता। इतना तक की मरने के बाद भी इनका अंतिम संस्कार गांव से कहीं दूर किया जाता है। सोमवार को निमित्त फाउंडेशन ने खूंटी, तोरपा, बसिया आदि जगह पर रहने वाले आदिवासियों की शादी करवा कर उनके संबंध को समाज में एक पहचान दिलाई है, इसमें सरना के लोगों के साथ-साथ हिंदू एवं ईसाई भी शामिल थे।

कई साल से रह रहे थे साथ
आज जो जोड़े विवाह बंधन में बंधे उनमें से अधिकतर जोड़ों की आयु 21 से 50 वर्ष के बीच के हैं। बहुत से जोड़ों के बच्चे भी हैं। लिव इन रिलेशन में रहने वाली मोनिका पांच साल से बिना शादी किए रह रहीं थीं। उनकी बच्ची भी है जिसकी उम्र दो साल है। वहीं जगदीश और रीना पिछले 10 साल से साथ हैं और उनकी संतान भी हैं। उनका रिश्ता कानूनी हो जाएगा। इसकी उन्हें बहुत खुशी है।

रांची में विभिन्न कारणों से लंबे समय से बिना विवाह किए साथ रह रहे 132 जोड़ों की जब कुछ सामाजिक संगठनों की पहल पर धूमधाम से शादी कराई गई तो नजारा देखने लायक था। वर-वधू के जोड़ों में कुछ 20-25 साल के थे कुछ 50-55 साल के थे। एक कुनबा ऐसा भी था, जिसमें तीन पीढ़ियां इस सामूहिक विवाह की गवाह बनी थीं। नन्हें पोते ने जब अपने माता-पिता और दादा-दादी को एक साथ विवाह के जोड़े में बंधते देखा तो उसकी खुशी भी देखने लायक थी।


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