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समय पर कार्रवाई होती तो राजधानी में नहीं भड़कता तनाव

रांची : राजधानी रांची में बीते सितंबर के आखिरी सप्ताह में भड़के सांप्रदायिक तनाव के मामले में रांची प

By Edited By: Published: Wed, 07 Oct 2015 01:45 AM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2015 01:45 AM (IST)
समय पर कार्रवाई होती तो राजधानी में नहीं भड़कता तनाव

रांची : राजधानी रांची में बीते सितंबर के आखिरी सप्ताह में भड़के सांप्रदायिक तनाव के मामले में रांची पुलिस और प्रशासन की पोल खुल गई है। यह पोल राज्य की खुफिया एजेंसी विशेष शाखा ने ही खोली है। एडीजीपी अनुराग गुप्ता ने डीजीपी डीके पांडेय को विस्तृत जांच रिपोर्ट सौंपी है। जिसमें उन्होंने कहा है कि 25 सितंबर की रात डोरंडा में हुई घटना के बाद जब प्रशासन घटनास्थल पर पहुंचा तो उस समय पुलिस द्वारा अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई। यदि उसी समय वांछित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया होता तो दूसरे दिन रांची शहर में विधि व्यवस्था की समस्या ही नहीं उत्पन्न होती। 26 सितंबर को हिनू चौक से हिन्दू संगठनों द्वारा निकाले गए जुलूस को रोक दिया जाना चाहिए था। उसे थाना के मुख्य द्वार से होते हुए पत्थल रोड, झंडा चौक होते हुए युनूस चौक तक नहीं जाने देना चाहिए था। उस समय थाना प्रभारी उपस्थित थे, पर्याप्त पुलिस बल भी था। विशेष शाखा बार-बार सूचना देता रही, लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। विश्व हिन्दू परिषद के प्रमोद मिश्रा द्वारा बंद बुलाए जाने के बाद डोरंडा क्षेत्र सहित शहर में पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती नहीं की गई। उपद्रवी माहौल को अशांत करते रहे। जिन स्थानों पर पुलिस की तैनाती थी, वहां पर भी टायर जला कर दहशत फैलाई गई और तोड़फोड़ की गई। बहुबाजार और खूंटी रोड में इस तरह की वारदात सामने आई। एडीजी ने पूरे प्रकरण में जिन अफसरों ने समय पर कार्रवाई नहीं की उनकी पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है। धार्मिक स्थलों की पहचान कर वहां सीसीटीवी कैमरा लगाने को भी कहा है।

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जांच पूरी किए बिना दर्जनों लोगों को भेजा जेल

अनुराग गुप्ता ने इस कांड में लोगों को जेल भेजे जाने पर भी सवाल खड़ा किया है। कहा है कि इस पूरे प्रकरण में जिन व्यक्तियों को जेल भेजा गया, उनकी पूर्ण रूप से जांच तक नहीं की गई। फुटेज पि्रंट, फोटो प्रिंट में विशेष रूप से चिह्नित किए गए या पाए गए दंगाइयों के विरुद्ध भी कार्रवाई नहीं की गई, जबकि बिना पहचान के दर्जनों व्यक्तियों को जेल भेज दिया गया। इससे दोनों समुदाय के लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है।

कायरता दिखाते हैं पुलिस पदाधिकारी :

एडीजीपी ने कहा है कि अक्सर पाया जाता है कि दंगाइयों द्वारा पुलिस की गाड़ियां क्षतिग्रस्त कर दी जाती हैं। लेकिन गाड़ियों पर सवार पुलिसकर्मियों को खरोंच तक नहीं आती। इससे स्पष्ट है कि संबंधित पुलिस वालों को सूझ-बूझ और दक्षता के साथ भीड़ को नियंत्रित करने की जानकारी नहीं है। सरकारी संपत्ति को बचाने में उनकी रूचि नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में पुलिस पदाधिकारियों द्वारा कायरता दिखाई जाती है। कुछ माह पूर्व डोरंडा क्षेत्र में ही आर्मर सेवा के वाहन को जलाने की घटना सामने आई थी। इस तरह के मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। अगर दोषियों के खिलाफ संबंधित अफसर कार्रवाई नहीं करते हैं तो उन पर ही कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

प्रतिबंधित मांस के कारोबार पर जिला प्रशासन का नियंत्रण नहीं

गुप्ता ने कहा है कि डोरंडा, लोअर बाजार और हिन्दपीढ़ी थाना क्षेत्र में प्रतिबंधित मांस का कारोबार चलता है। इस पर जिला प्रशासन का किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं है। यदि जिला प्रशासन द्वारा पूर्व से ही उचित नियंत्रण किया जाता तो डोरंडा की घटना नहीं होती। घटना होने के बाद भी जिला प्रशासन के स्तर से रोकथाम के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई गई है। एडीजीपी ने जानकारी मिलने की बात बताते हुए कहा है कि डोरंडा क्षेत्र में प्रतिबंधित मांस के कारोबार में डोरंडा थाना प्रभारी और कर्मी भी लाभान्वित होते हैं, इसकी विस्तृत जांच की जानी चाहिए।

अपराधियों पर भी पुलिस की मजबूत पकड़ नहीं :

एडीजीपी ने कहा है कि शातिर अपराधी सोनू इमरोज और उसका भाई मोनू और उससे जुड़े अन्य अपराधी तबरेज, सारूख उर्फ पप्पू और कासिम आदि के द्वारा भी सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया गया। इससे प्रतीत होता है कि अपराधियों पर रांची पुलिस की मजबूत पकड़ नहीं है। हाल ही में सोनू इमरोज जेल से जमानत पर निकला है। वह किस उपाय से जेल से बाहर निकला, उसको रोकने के लिए पुलिस ने क्या किया, इसकी भी जांच होनी चाहिए।


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