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ओडिशा की तर्ज पर सरकार चली तो दस माइंस का खेल खत्म

श्याम किशोर चौबे, रांची : झारखंड की जिन बहुचर्चित 21 लौह अयस्क खदानों के लीज नवीकरण का पेंच सुलझाने

By Edited By: Published: Sat, 05 Sep 2015 01:20 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2015 01:20 AM (IST)
ओडिशा की तर्ज पर सरकार चली तो दस माइंस का खेल खत्म

श्याम किशोर चौबे, रांची : झारखंड की जिन बहुचर्चित 21 लौह अयस्क खदानों के लीज नवीकरण का पेंच सुलझाने में सरकार लगी हुई है, उस पर यदि उसने ओडिशा की तर्ज पर काम किया तो दस खदानों का नवीकरण कतई संभव नहीं हो पाएगा। सरकार चूंकि यह मामला ओडिशा में अपनाई गई प्रणाली के अनुसार विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली अंतर्विभागीय समिति के हवाले कर चुकी है, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि यह समिति उसी राह पर चलेगी। माना जा रहा है कि अगले सोमवार को इस समिति की प्रस्तावित बैठक निर्णायक होगी, हालांकि इसके एक प्रमुख सदस्य खान सचिव संतोष कुमार शतपथी इलाज के नाम शुक्रवार को लंबी छुट्टी पर चले गए।

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केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए ताजा एमएमडीआर (माइन्स एंड मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) संशोधन एक्ट-2015 के प्रावधानों ने इन लौह अयस्क खदानों के लीज नवीकरण में पेंच फंसा दिया है। जिला उपायुक्त एवं खान उपनिदेशक की अध्यक्षता वाली उपसमिति अपनी अलग-अलग रिपोर्टो में इन खदानों के लिए काफी पहले सरासर नकारात्मक मंतव्य दे ही चुकी है।

21 लौह अयस्क खदानों में से पांच ऐसी हैं, जिनका नवीकरण सरकार ने पूर्व में अस्वीकृत कर दिया था। सरकार के निर्णय से प्रभावित मेसर्स जनरल प्रोड्यूस कंपनी (घाटकुरी) के अलावा मेसर्स कमलजीत सिंह अहलुवालिया तथा मेसर्स रेवती रमण प्रसाद-आनंद व‌र्द्धन प्रसाद अपनी दो-दो लीजों का यह मामला ट्रिब्यूनल/हाईकोर्ट में ले गए थे। अदालत ने खुद कोई आदेश देने के बजाय राज्य सरकार को ही विचार के लिए ये केस सौंप दिए थे। इसके अलावा दस लीजें दो वर्षो से अधिक अवधि से ऑपरेशनल नहीं हैं। ओडिशा सरकार ने दो वर्ष या इससे अधिक अवधि से बंद खदानों की लीज को 'लैप्स' की श्रेणी में रखकर चार दर्जन से अधिक लौह अयस्क खदानों के पट्टे को निरस्त कर दिया है। वहां के विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा विगत 25 अप्रैल को तय नीति के अनुसार उसने यह कार्रवाई विगत एक माह में की है।

सात खदानें अतिक्रमण के दायरे में

उल्लेखनीय है कि खान एवं खनिज प्रावधानों का उल्लंघन कर माइनिंग की प्राप्त शिकायतों की जांच के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित शाह आयोग ने सेटेलाइट चित्रों के आधार पर झारखंड की सात लौह अयस्क खदानों पर लीज होल्ड एरिया से इतर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया था। डीजीपीएस की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर इन खदानों की धरातल पर जांच अभी बाकी है। इन खदानों की पूर्व में लीज बंदोबस्ती मेसर्स पदम कुमार जैन, मेसर्स श्रीराम मिनरल्स, मेसर्स अनिल खीरवाल, मेसर्स शाह ब्रदर्स, मेसर्स चंद्रप्रकाश सारदा, मेसर्स खटाऊ लीलाधर ठक्कर और खुशल अर्जुन राठौर के नाम की गई थी। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि झारखंड में लौह अयस्क माइनिंग में अनियमितताओं पर शाह आयोग द्वारा तैयार की गई पूरी रिपोर्ट ही केंद्र सरकार ने जांच के लिए सीबीआइ को सौंप दी है।

दो वर्ष से अधिक समय से बंद खदानें

लीज धारक खदानों का विवरण

पदम कुमार जैन, राजाबेड़ा-41.639 हेक्टेयर 2011 से उत्पादन नहीं

रेवती रमण प्रसाद, इतरबालजोरी-33.70 हेक्टेयर 1996 से उत्पादन नहीं

रेवती रमण प्रसाद, नोवामुंडी/मेरालगाड़ा-62.43 हेक्टेयर 1994 से उत्पादन नहीं

निर्मल कुमार प्रदीप कुमार, नोवामुंडी-66.781 हेक्टेयर 2011 से उत्पादन नहीं

आर मैकडिल एंड कंपनी, करमपदा आरएफ-110.08 हेक्टेयर 1996 से उत्पादन नहीं

खटाऊ लीलाधर ठक्कर, कुमरिता-30.84 हेक्टेयर 2005 से उत्पादन नहीं

खुशल अर्जुन राठौर, नोवामुंडी पीएफ-31.97 हेक्टेयर 1999 से उत्पादन नहीं

चंद्रप्रकाश सारडा, इतरबालजोरी-142 हेक्टेयर 2011 से उत्पादन नहीं

जनरल प्रोड्यूस कंपनी, करमपदा आरएफ-70.68 हेक्टेयर 1976 से उत्पादन नहीं

जनरल प्रोड्यूस कंपनी, घाटकुरी आरएफ-163.90 हेक्टेयर 1965 से उत्पादन नहीं

एक विलक्षण केस

रांची : मेसर्स निर्मल कुमार प्रदीप कुमार के नाम आवंटित लौह अयस्क लीज (घाटकुरी-149 हेक्टेयर) का मामला एक विलक्षण केस है। पटना हाईकोर्ट ने 1993 में आदेश दिया था कि सरकार जबतक नए सिरे से लीज आवंटित नहीं कर देती, तबतक इस लीज होल्ड एरिया में माइनिंग ऑपरेशन बंद रखना होगा। लीज धारक ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी के माध्यम से चुनौती दी थी लेकिन 1994 में शीर्षस्थ अदालत ने भी पटना हाईकोर्ट के आदेश को ही बहाल रखा। इसके बावजूद माइनिंग ऑपरेशन जारी रहा। इस केस का विलक्षण पहलू यह है कि 14 अगस्त 2003 को हुई खान विभाग-झारखंड की सुनवाई में 149 हेक्टेयर के लीज होल्ड एरिया में से महज 13.98 हेक्टेयर क्षेत्र के लीज नवीकरण का आदेश जारी किया गया था। लीज क्षेत्र घटाने का यह आदेश 11 वर्षो तक दबा रहा। दिसंबर 2014 में लीज धारक और आइबीएम को सरकार ने इस आदेश की विधिवत सूचना भेजी थी। विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली समिति इस पर क्या निर्णय लेती है, इस पर सबकी निगाहें लगी रहेंगी।


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