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एक भी फार्मासिस्ट का निबंधन वैध नहीं

नीरज अम्बष्ठ, रांची : झारखंड फार्मेसी ट्रिब्यूनल द्वारा राज्य में फार्मासिस्टों का अवैध रूप से निबंध

By Edited By: Published: Wed, 29 Jul 2015 01:27 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2015 01:27 AM (IST)
एक भी फार्मासिस्ट का निबंधन वैध नहीं

नीरज अम्बष्ठ, रांची : झारखंड फार्मेसी ट्रिब्यूनल द्वारा राज्य में फार्मासिस्टों का अवैध रूप से निबंधन किए जाने का सिलसिला जारी है। प्रदेश में अमूमन तीस हजार फार्मासिस्ट काम कर रहे हैं लेकिन किसी का भी निबंधन वैध नहीं है। निबंधन की जवाबदेही फार्मेसी कौंसिल की है, जो खुद ही अस्तित्व में नहीं है। इस हालत में ट्रिब्यूनल पिछले पंद्रह वर्षो से फार्मासिस्टों के निबंधन व उसका रिन्यूअल कर रहा है। झारखंड बनने के बारह साल बाद फार्मेसी कौंसिल के गठन के लिए बायलॉज तो बनाया गया, लेकिन उसके बाद तीन साल में भी कौंसिल के अध्यक्ष व सदस्यों का चुनाव नहीं हुआ।

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फार्मेसी एक्ट, 1948 के प्रावधान के अनुसार, जिस राज्य में एजुकेशन रेगुलेशन लागू है वहां फार्मासिस्टों का निबंधन और रिन्यूअल फार्मेसी कौंसिल द्वारा किया जाएगा। लेकिन एजुकेशन रेगुलेशन लागू होने के बाद भी यह काम झारखंड स्टेट रजिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल द्वारा किया जा रहा है। एक्ट के अनुसार, रजिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल का काम सिर्फ फ‌र्स्ट रजिस्टर तैयार करना है न कि नया निबंधन करना। ट्रिब्यूनल निबंधन का नवीकरण भी नहीं कर सकता। राज्य गठन के बाद फार्मेसी कौंसिल बनाने के बजाय 2001 में एक अधिसूचना के तहत ट्रिब्यूनल का गठन कर दिया गया। बाद में इस अधिसूचना की झारखंड हाई कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी, जिसमें कोर्ट ने यह कहते हुए ट्रिब्यूनल गठन से संबंधित अधिसूचना को निरस्त कर दिया कि फार्मेसी एक्ट के सेक्शन 30 के तहत राज्य में अलग से फ‌र्स्ट रजिस्टर तैयार करने की जरूरत नहीं है। संयुक्त बिहार में तैयार फ‌र्स्ट रजिस्टर ही राज्य में लागू होना चाहिए। बता दें कि एक्ट के मुताबिक फ‌र्स्ट रजिस्टर वहीं तैयार होता है जहां एजुकेशन रेगुलेशन लागू नहीं है। फ‌र्स्ट रजिस्टर में उन्हीं का नाम होता है जिन्होंने एजुकेशन रेगुलेशन लागू होने के पहले फार्मासिस्ट का कोर्स किया हो।

एफसीआइ ने भी की थी आपत्ति

फार्मेसी कौंसिल आफ इंडिया की एक कमेटी द्वारा झारखंड दौरे के बाद सौंपी गई रिपोर्ट में भी कहा गया था कि जब राज्य में एजुकेशन रेगुलेशन लागू है तो फ‌र्स्ट रजिस्टर तैयार करने की कोई जरूरत नहीं है और न ही इसके लिए ट्रिब्यूनल की आवश्यकता है। कमेटी ने तुरंत नियमावली बनाकर कौंसिल के गठन की अनुशंसा की थी।

जुलाई 2012 में ही बन चुका है बायलॉज

राज्य सरकार ने जुलाई 2012 में ही कौंसिल के गठन को लेकर बायलॉज पर कैबिनेट की स्वीकृति ली थी। लेकिन इसके लागू होने के तीन साल बाद भी अध्यक्ष व सदस्यों के चुनाव नहीं होने से इसका गठन नहीं हो सका। स्वास्थ्य विभाग ने इतने समय बाद इसी साल मई में चुनाव के लिए निर्वाची पदाधिकारी तो नियुक्त किया, लेकिन बिना अधिसूचना के निर्वाची पदाधिकारी नियुक्त किए जाने के भूल के कारण इसे संशोधित करते हुए नए सिरे से अधिसूचना जारी करनी पड़ी। निर्वाची पदाधिकारी द्वारा कौंसिल के गठन की प्रक्रिया कब तक पूरी की जाएगी, इसका कोई उल्लेख इसमें नहीं है।

कोट

2006 से ही बायलॉज बनाने के लिए मैं विभाग को लिखता रहा। 2012 में यह बना भी तो अब मुझे कौंसिल के अध्यक्ष व सदस्य के चुनाव के लिए निर्वाची पदाधिकारी नियुक्त किया गया है। काम चालू है। पांच-छह माह में इसका गठन हो जाएगा।

-कौशलेंद्र कुमार

निबंधक सह सचिव, झारखंड फार्मेसी ट्रिब्यूनल


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