हर महीने 200 करोड़ की बिजली चोरी
प्रदीप सिंह, रांची : हर साल रिसोर्स गैप के नाम पर सरकार से लगभग 750 करोड़ लेने वाला बिजली महकमा यूं ह
प्रदीप सिंह, रांची : हर साल रिसोर्स गैप के नाम पर सरकार से लगभग 750 करोड़ लेने वाला बिजली महकमा यूं ही फटेहाल नहीं है। इस बड़े घाटे के सबसे बड़े जिम्मेदार खुद इसके कुछ पदाधिकारी हैं जो सरकारी राजस्व को चूना लगाते हैं। हर महीने राज्य सरकार विभिन्न माध्यमों से लगभग 480 करोड़ की बिजली खरीदती है लेकिन वसूली का आंकड़ा इस भारी-भरकम राशि का आधा भी नहीं होता। हालांकि एक वर्ष पहले इसमें आंशिक उछाल आया था लेकिन फिर से सबकुछ पुराने ढर्रे पर आ गया। महकमे की 200 करोड़ की बिजली हर माह चोरी हो जाती है। इसके अलावा संचरण वितरण ह्रास का खामियाजा भी महकमे को उठाना पड़ता है।
घाटे के जिम्मेदार ऊर्जा वितरण निगम के वैसे पदाधिकारी हैं जिनके ऊपर चोरी की रोकथाम की जिम्मेदारी और वसूली बढ़ाने की जिम्मेदारी है। जब नकेल कसी जाती है तो दिखावे के नाम पर फौरी एक्शन होता है। थोड़े वक्त के लिए रेवेन्यू बढ़ भी जाती है मगर इसका स्थायी निदान आजतक नहीं निकाला जा सका है। पूर्व में राज्य विद्युत नियामक आयोग ने निर्देश दिया था कि हर ट्रांसफार्मर पर डिजिटल मीटर लगाया जाए और उससे आपूर्ति की जाने वाली बिजली का हिसाब रखा जाए। इससे यह पता चल पाएगा कि अमुक पदाधिकारी के क्षेत्र में लगे ट्रांसफार्मर वाले इलाके में कम वसूली हो रही है लेकिन यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई। बिजली चोरी के टिप्स भी कुछ भ्रष्ट अधिकारी बताते हैं। जिसमें मीटर से छेड़छाड़, सीधे नंगे तार से कनेक्शन, क्षमता से कम भार का आकलन आदि शामिल है।
आज बिजली अफसरों की क्लास लेंगे सीएम
मुख्यमंत्री रघुवर दास गुरुवार को राज्य ऊर्जा विकास निगम के मुख्यालय जाएंगे। उन्होंने निगम के तमाम वरीय पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है। उक्त बैठक में मुख्यमंत्री मौजूदा स्थिति की समीक्षा करेंगे। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने पूर्व में ही कहा था कि संताल परगना के दौरे से लौटने के बाद वे बिजली पर ही अपना ध्यान केंद्रित करेंगे। मुख्यमंत्री बिजली राजस्व की कम वसूली पर खासे नाराज हैं। इसे वे घाटा का सबसे बड़ा कारण बताते हैं। मुख्यमंत्री की शिकायत पर ऊर्जा निगम ने एक्शन लेते हुए छह कार्यपालक अभियंताओं को निलंबित कर दिया। इन पदाधिकारियों पर राजस्व वसूली में लापरवाही का आरोप है।
अयोग्य शख्स बन बैठा मेंबर फाइनेंस
तत्कालीन राज्य विद्युत बोर्ड में मेंबर फाइनेंस के पद पर आलोक शरण की बहाली नियमों को दरकिनार करते हुए कर दी गई। बोर्ड के विखंडन के बाद भी उन्हें निदेशक (वित्त) का अहम पद मिल गया। नियमानुसार इस पद के लिए वित्त क्षेत्र का अनुभव और किसी सरकारी उपक्रम में पदाधिकारी होना चाहिए। लेकिन आलोक शरण यहां ज्वाइन करने के पहले एक निजी कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी करते थे। तीन माह पहले ही उन्हें सरकार ने पद से चलता किया लेकिन फर्जी तरीके से बहाली मामले में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनके खिलाफ अनियमितता के भी आरोप हैं।
आइएएस अफसरों को साबित करना चाहते नाकाम
रघुवर सरकार ने कार्यकाल संभालते ही सबसे पहले राज्य ऊर्जा विकास निगम के एमडी समेत वितरण, उत्पादन और संचरण निगम के एमडी को चलता किया। सारे पदों पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरीय अफसरों की तैनाती की गई। ऊर्जा विभाग के प्रधान सचिव एसकेजी रहाटे ऊर्जा विकास निगम के सीएमडी बनाए गए तो राहुल पुरवार को वितरण, उत्पादन और सुनील कुमार को संचरण निगम की जिम्मेदारी दी गई। इससे अपना सिंडिकेट चला रहे कुछ इंजीनियरों को झटका लगा। ऐसी ही पदाधिकारियों का एक समूह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को नाकाम साबित करने पर तुला हुआ है। वरीय अधिकारियों द्वारा नकेल कसे जाने से यह स्थिति पैदा हुई है।