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खाली पेट कैसे बनेंगे खिलाड़ी

संजीव रंजन, रांची प्रदेश की सरकार खिलाड़ियों को खाली पेट रखकर ही खिलाड़ी बनाने पर तुली है। अगर ऐस

By Edited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 01:47 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 01:47 AM (IST)
खाली पेट कैसे बनेंगे खिलाड़ी

संजीव रंजन, रांची

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प्रदेश की सरकार खिलाड़ियों को खाली पेट रखकर ही खिलाड़ी बनाने पर तुली है। अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले एक साल से ना आवासीय सेंटरों को राशि मिलनी बंद होती और ना मेस चलाने वाले खिलाड़ियों को खाना खिलाने से मना करते। सरकार की इसी उपेक्षा का परिणाम है कि प्रदेश में सरकार द्वारा संचालित आवासीय सेंटर के सभी मेस एक अप्रैल से बंद हो जाएंगे। जब खिलाड़ियों को खाना ही नहीं मिलेगा तो वे सेंटर में कैसे रहेंगे। कई सेंटर एकीकृत बिहार के समय से चल रहे हैं। बरियातु हॉकी सेंटर उन्हीं में से एक है जहां से अब तक लगभग 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय महिला हॉकी खिलाड़ी निकल चुकी हैं।

सूत्रों ने बताया कि कई सेंटरों को पिछले एक साल से सरकार द्वारा कोई राशि उपलब्ध नहीं करायी गई है। जिस कारण खिलाड़ियों का मेस उधार पर चल रहा था। सेंटर के प्रशिक्षक अपने स्तर से मेस संचालन करने वाले मान मनौव्वल कर मेस चलवा रहे थे। लेकिन 31 मार्च को जब सेंटर के लिए फंड रिलीज नहीं हुआ तब उन्होंने भी सेंटर से चूल्हा-चौकी उठा कर ले जाने का निर्णय ले लिया है। खूंटी, सिमडेगा, गुमला, गिरिडीह, बुंडू, देवघर सेंटर को पिछले अप्रैल से राशि नहीं दी गई है। जिस कारण उक्त सेंटर की हालत पहले से ही खराब थी। इनमें से कई सेंटर से खिलाड़ी पहले से निकल गए थे। जबकि अन्य जिलों के सेंटर को पिछले आठ माह से राशि नहीं मिली है।

सेंटर के प्रशिक्षकों ने इस संबंध में कई बार विभागीय अधिकारियों से राशि निर्गत करने की अपील की। लेकिन सरकार के उपेक्षापूर्ण रवैये का परिणाम यह हुआ कि आज तक पैसा निर्गत नहीं किया गया। उधार देने वालों ने सेंटर के प्रशिक्षकों को स्पष्ट कर दिया कि अपना पेट जला कर वे दूसरों का पेट नहीं भर पाएंगे। चूंकि यहां खिलाड़ियों की बात थी इसलिए हमलोगों ने एक साल तक इंतजार किया, लेकिन जब इस बार भी राशि मिलने की उम्मीद नहीं है तो हम आगे मेस नहीं चला सकते। सभी सेंटर के प्रशिक्षक भी अब कुछ करने में असमर्थ हैं उनलोगों ने भी कहा कि अब हमारे हाथों में कुछ नहीं है।

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आयोजन पर करोड़ो खर्च :

पिछली सरकारों ने आयोजन पर करोड़ो खर्च किए हैं। पिछले एक साल में स्कूल नेशनल गेम्स, महिला खेल महोत्सव जैसे आयोजनों पर लाखों खर्च किए लेकिन आवासीय सेंटर की याद किसी को नहीं आई। पिछली सरकार में खेल का बजट 84 करोड़ था। इसमें अधिकांश राशि आयोजनों पर खर्च हुई। ना तो खिलाड़ियों को छात्रवृति दी गई और ना ही नकद राशि। खिलाड़ियों में किट भी नहीं बंटे।

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एक सेंटर में 25 खिलाड़ी :

एक आवासीय सेंटर में 25 खिलाड़ियों का चयन किया जाता है। उनके रहने खाने व पढ़ने का खर्च सरकार वहन करती है। एक खिलाड़ी पर प्रतिदिन सौ रुपये खाने पर, 25 हजार शिक्षा पर (सालाना), अन्य व्यय पर 12500, मेडिकल पर 300 रुपए खर्च किया जाता है। प्रदेश में अभी कुल 36 आवासीय सेंटर हैं लेकिन 22 सेंटर ही चालू अवस्था में थे।

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आपने ध्यान दिलाया है तो इस पर जरूर संज्ञान लिया जाएगा। खिलाड़ियों की बेहतरी के लिए इस मसले का हल निकालने की पूरी कोशिश होगी।

अमर बाउरी, खेलमंत्री

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