विकास की भेंट चढ़ रहे पेड़
रांची : झारखंड में विकास की कीमत पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है। राज्य की आधारभूत संरचना के विकास के ल
रांची : झारखंड में विकास की कीमत पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है। राज्य की आधारभूत संरचना के विकास के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई हो रही है। इन पेड़ों के एवज में कहीं एक भी पेड़ नहीं लगाया गया है। वन विभाग के प्रावधान के अनुसार पेड़ काटने के एवज में क्षतिपूरक वन रोपन का नियम है, लेकिन झारखंड में ऐसा कहीं नहीं हो रहा है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि रांची-टाटा मार्ग के चौड़ीकरण के सिलसिले में 1500 विशाल वृक्ष काटे गए हैं। यहां क्षतिपूरक वनरोपण के तहत एक भी पेड़ नहीं लगाया गया है। रांची-टाटा पथ तो बानगी मात्र है। अन्य राजमार्ग के निर्माण के दौरान भी कुछ ऐसा ही हुआ है। मसलन, गोबिंदपुर (धनबाद) -साहिबगंज पथ निर्माण के भेंट 1000 पेड़ चढ़े हैं। शिवपुरी टोरी रेल लाइन निर्माण के दौरान 3500 पेड़ काटे गए हैं। हजारीबाग-बरही सड़क चौड़ीकरण के दौरान 102 हेक्टेयर भूमि पर लगाए गए वृक्षों की कटाई हुई है। रणगांव-महुलिया चौड़ीकरण के दौरान 9 हेक्टेयर भूमि पर पेड़ों की कटाई हुई है। क्षतिपूरक वन रोपण न होने के बावजूद वन विभाग यूजर एजेंसी को मात्र पत्र लिखने की औपचारिकता भर निभा रहा है। एजेंसियां इन पत्रों का जवाब तक देना उचित नहीं समझती है।
मामले को झारखंड उच्च न्यायालय ने गंभीरता से लेते हुए सरकार और यूजर एजेंसी से जवाब-तलब किया है। पूरे मामले को लेकर वन विभाग और यूजर एजेंसी एक दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं। उच्च न्यायालय में दायर जवाब में एनएचआइ ने कहा है कि उसने क्षतिपूरक वन रोपण के एवज में सरकार के खाते में राशि जमा कर दी है जबकि वन विभाग की मानें तो उससे पेड़ काटने की अनुमति तक नहीं ली गई है। इस बाबत वन विभाग ने उच्च न्यायालय में शपथ पत्र भी दाखिल किया है।
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