बालटाल हिंसा से बच कर रांची लौटे श्रद्धालु
रांची : रांची से अमरनाथ यात्रा पर गए चुटिया गोसाई टोली के तीन श्रद्धालु रमेश शर्मा, सुनील कुमार व घनश्याम मौत के मुंह से निकल कर सुरक्षित लौट आए हैं। तीनों 18 जुलाई को अमरनाथ यात्रा के रास्ते में बालटाल में हुई हिंसा और भगदड़ में फंस गए थे। बर्फानी बाबा के दर्शन के साथ मौत का सामना कर लौटे श्रद्धालुओं का कहना है कि बाबा की कृपा से ही सुरक्षित लौटे हैं। हिंसा के दौरान यदि सीआरपीएफ के जवानों ने मदद नहीं की होती, तो जान नहीं बचती। शुक्र है जवानों का कि हमलोग फिर से अपने परिजनों के पास लौट आए हैं। सोमवार को दैनिक जागरण को बालटाल हिंसा की आपबीती सुनाई गोसाई टोली चुटिया निवासी सुरेश शर्मा ने।
उन्होंने बताया कि 17 जुलाई की रात तीनों साथी अमरनाथ गुफा से बर्फानी बाबा का दर्शन कर बालटाल लौटे। रात यहीं गुजरी। सुबह आठ बजे एक लंगर में नाश्ता करने गए। इसी बीच अचानक हिंसा भड़क उठी। चारों तरफ से पत्थर बरसने लगे। भगदड़ मच गई। लोग इधर-उधर जान बचाने के लिए भागने लगे। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या? अब जाएं कहा? पत्थरबाजी और तेज होती गई। उपद्रवियों की संख्या सैकड़ों में थी। वे पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। पत्थरबाजी के बाद वहां लगे लंगरों को तोड़ा जाने लगा। मारपीट, लूटपाट और आगजनी शुरू हो गई। लंगर जला दिए गए। चारों तरफ कोहराम मचा हुआ था।
वे आगे बताते हैं, हमलोग लंगर में बने एक अस्थाई शेड में जाकर छिप गए। हिंसा करनेवाले यहां भी आ पहुंचे। ऐसा लगा कि अब जान नहीं बचेगी। इसी बीच सीआरपीएफ के जवान आए। जवान सभी को बलवाइयों से बचाकर अपने कैंप में ले गए। हजारों श्रद्धालुओं को कैंप में लाया गया। थोड़ी देर बाद यहां भी हमला हो गया। सभी लोग बुरी तरह फिर घिर गए थे। जान संकट में फंसा देख श्रद्धालुओं ने भी पत्थरबाजी करने लगे। दोनों तरफ से जमकर पत्थरबाजी हुई। जवाबी कार्रवाई के बाद बलवाई पीछे हटे। हिंसा के दौरान जम्मू-कश्मीर की पुलिस मूक दर्शक बनी हुई थी। 10-12 घंटे तक लगातार हिंसा होती रही। सारे लंगर और सभी दुकानें जला दी गई। लंगर से खाने-पीने की चीजें भी नष्ट कर दी गई। करोड़ों की लूट और संपत्ति जलाई गई। एक लंगर वाले ने बताया कि उसे ढाई करोड़ का नुकसान हुआ है। लंगर संचालकों को दान के रूप में जो पैसे मिले थे, वह भी लूट लिए गए। हिंसा शांत होने के बाद वहां खाने-पीने के सामानों की कमी हो गई। सीआरपीएफ के जवानों ने किसी तरह श्रद्धालुओं को खाना खिलाया। संकट में फंसे श्रद्धालुओं की संख्या चार-पांच हजार के करीब थी। 15 घंटे बाद वहां से जवानों ने बाहर निकाला। रमेश ने बताया कि भय से हमलोगों ने परिवार को कोई सूचना नहीं दी। मोहल्ले के एक दोस्त को घटना की जानकारी दी थी, ताकि हिंसा में मारे गए तो परिजनों को बाद में पता चल सके। रमेश, सुनील और घनश्याम रांची लौट कर काफी खुश हैं।