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मिड डे मील को स्वादहीन बना रहे सरकारी आंकड़े

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 01:00 AM (IST)
मिड डे मील को स्वादहीन बना रहे सरकारी आंकड़े

रांची : सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्र सरकार के सहयोग से संचालित मिड डे मील योजना की झारखंड में अच्छी स्थिति नहीं है। बच्चों के पोषण के लिए संचालित इस योजना के सरकारी आंकड़े ही इसे स्वादहीन बना रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा योजना के क्रियान्वयन को लेकर केंद्र सरकार को सौंपे गए 2014-15 के बजट प्रस्ताव के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में नामांकित बच्चों में अभी भी लगभग आधे बच्चे योजना का लाभ नहीं ले पाते। आंकड़ों के अनुसार, नामांकित बच्चों के विरुद्ध प्राइमरी स्कूलों में 55 तथा अपर प्राइमरी स्कूलों में 53 फीसद बच्चों को ही मध्याह्न भोजन मिला। पिछले वित्तीय वर्ष इन स्कूलों में क्रमश: 51 तथा 53 फीसद तथा 2011-12 में 61 तथा 60 फीसद बच्चों को इस योजना से जोड़ा गया था। इस तरह बच्चों के कवरेज में 2011-12 के बाद से भारी कमी आई है। पिछले वित्तीय वर्ष भी इसमें कोई खास सुधार नहीं हो सका। सबसे बड़ी बात यह कि राज्य के छह-सात जिले ऐसे हैं, जहां आधे से भी कम बच्चों को योजना का लाभ मिल पाता है। इनमें अधिकांश संताल परगना प्रमंडल के जिले हैं। राज्य सरकार ने पिछले वर्ष बिहार के एक स्कूल में हुई बड़ी घटना से भी सीख नहीं ली। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के बावजूद चालू वित्तीय वर्ष के बजट में आपात चिकित्सा योजना का कोई भी प्रस्ताव नहीं दिया गया।

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किचेन निर्माण के 51.76 करोड़ हैं पड़े

स्कूलों में किचेन सह स्टोर निर्माण के 51 करोड़ 76 लाख रुपये 2007-08 से ही खर्च नहीं हुए हैं। इस राशि से 3,566 स्कूलों में किचेन का निर्माण होना था। राशि खर्च नहीं होने से केंद्र सरकार ने अन्य स्कूलों में किचेन के निर्माण की स्वीकृति देने से इन्कार कर दिया है।

निगरानी पर मात्र 21 फीसद खर्च

केंद्र सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष योजना की निगरानी एवं मूल्यांकन के लिए जो राशि दी थी, उनमें मात्र 21 फीसद ही राशि खर्च हो सकी। शेष राशि धरी रह गई। इसके बावजूद राज्य सरकार ने इस बार बड़ी राशि की मांग केंद्र से की है। राज्य में पिछले वित्तीय वर्ष मात्र 45 फीसद स्कूलों का ही निरीक्षण हो सका। केंद्र सरकार खाद्यान्न के उठाव के लिए भाड़ा मद में बड़ी राशि देती है। इस राशि में मात्र सात फीसद राशि ही खर्च हो सकी। खाद्यान्न स्कूलों तक नहीं पहुंचाने पर भी केंद्र ने नाराजगी प्रकट की है। खाद्यान्न स्कूलों में ले जाने की जवाबदेही शिक्षकों को ही दे दी जाती है।

2013-14 में खर्च (आंकड़े प्रतिशत में)

खाद्यान्न : 61

कुकिंग कास्ट : 62

रसोइए का मानदेय भुगतान : 60 प्रतिशत

ट्रांसपोर्टेशन : 7

निगरानी एवं अनुश्रवण : 21 प्रतिशत

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इन जिलों की बदतर स्थिति

जिला -बच्चों ने नहीं खाया भोजन

प्राइमरी स्कूल

पाकुड़ 66 प्रतिशत

साहिबगंज 59 प्रतिशत

पलामू 59 प्रतिशत

गिरिडीह 55 प्रतिशत

देवघर 53 प्रतिशत

दुमका 50 प्रतिशत

अपर प्राइमरी स्कूल

दुमका 62 प्रतिशत

पाकुड़ 62 प्रतिशत

साहिबगंज 61 प्रतिशत

गिरिडीह 57 प्रतिशत

देवघर 54 प्रतिशत

गढ़वा 53 प्रतिशत

गोड्डा 50 प्रतिशत


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