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नदी, नाले सूखे, डाड़ी का पानी पी रहे ग्रामीण

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 01:00 AM (IST)
नदी, नाले सूखे, डाड़ी का पानी पी रहे ग्रामीण

बुढ़मू : अप्रैल का महीना अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि प्रखंड क्षेत्र के जलस्रोत सूख गए हैं। जो बचे भी हैं, वह सूखने के कगार पर पहुंच चुके हैं। पानी नहीं मिलने के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई है। ग्रामीण सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। पीएचइडी द्वारा गाड़े गए चापाकलों में भी अधिकतर खराब पड़े हुए हैं। मजबूरी में ग्रामीण डाड़ी का पानी पी रहे हैं।

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जलस्तर नीचे चले जाने के कारण नदी, नाले, कुएं व तालाब सूख चुके हैं। प्रखंड की प्रमुख नदिया भूर नदी व दामोदर सूख चुकी हैं। जलस्तर इतना गिर चुका है कि कहीं-कहीं 900-1000 फीट तक पानी नहीं मिल रहा है। 90 प्रतिशत कुएं बेकार हो चुके हैं। कमोबेश सरकारी चापाकलों की भी यही दुर्दशा है। सरकारी स्तर पर निकट भविष्य में समस्या से उबरने का कोई सार्थक प्रयास नजर नहीं आ रहा है। मनरेगा समेत विभिन्न योजनाओं के तहत किसानों को थोक के भाव में कुएं का आवंटन कर दिया गया है। इसमें करोड़ों की राशि खर्च की जा रही है, पर 35 फीट तक खुदाई होने वाले कुओं में पानी ही नहीं बचा है। इसी प्रकार सरकारी चापाकल नियमानुसार 210-220 फीट खोदा जा रहा है। इनमें से अधिकाश बेकार हो रहे हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार प्रखंड में कुल 1555 चापाकल खोदे गए हैं। इसमें 192 चापाकल एसआर प्वाइंट में हैं, जबकि 450 चापाकल खराब पड़े हैं। प्रखंड के कई गांवों में लोग एक से डेढ़ किमी की दूरी से पानी लाकर पीने को विवश हैं।

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मवेशियों को बेच रहे हैं पशुपालक

पेयजल संकट का सबसे ज्यादा असर पशुपालकों को हुआ है। पानी नहीं मिलने के कारण उनको पानी पिलाना व नहाना मुश्किल हो गया है। मजबूरी में पशुपालक अपने मवेशियों को औने-पौने दामों पर बेच रहे हैं।

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ग्रामीणों में नेताओं के प्रति आक्रोश

पेयजल संकट झेल रहे ग्रामीणों में नेताओं के प्रति भारी आक्रोश है। ग्रामीणों का कहना है कि नेता लोग ग्रामीणों की समस्याओं के समाधान का सिर्फ आश्वासन देते हैं। करते कुछ नहीं है। सबकुछ जानते हुए कुछ नहीं किया जाता है। प्रशासनिक अधिकारियों एवं नेताओं को मालूम है कि प्रत्येक वर्ष गर्मी के मौसम में पेयजल का संकट खड़ा होता है। इसके बावजूद इस समस्या के समाधान के लिए कारगर प्रयास नहीं किया जाता है। इस पर कोई जनप्रतिनिधि भी हल्ला नहीं मचाता है। छोटी-छोटी बातों पर धरना-प्रदर्शन करनेवाले ये नेता ग्रामीणों को इस समस्या के समाधान के लिए कुछ नहीं करते।

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