ग्रामीण चुप हैं, पुलिस निश्शब्द
रांची : यहां सब लाल है। लाल माटी, धूल के गर्द में भी लालिमा और इसी कारण आंखें भी लाल। आगे जंगल में पलाश के सैकड़ों पेड़ पर मौसम में लाल फूल भी खिलते हैं। लेकिन शनिवार को इन्हीं लाल आंखों के पीछे असीम दर्द था, अश्रुधाराओं से जन्मा भय और इसके ऊपर चुप रहने की मजबूरी थी। कोई कुछ बोल नहीं पा रहा। तीन-तीन नाबालिगों की हत्या कर दी गई और किसी पर शक तक नहीं। घर से सौ मीटर दूर तक बच्चों को ले भी गए लेकिन एक आवाज तक नहीं आई। सभी चुप, निश्शब्द, स्तब्ध!
बेड़ो पहुंचने के ठीक पहले जरिया मोड़ से लगभग चार किमी अंदर मासू गांव जंगल के मुहाने पर है। हाथी गांव में नियमित रूप से प्रवेश करते रहते हैं। सो, बेमौसम पटाखे छूटना सामान्य सी बात है। कुछ कदमों की दूरी पर 'जंगलराज' है जिस कारण गोलियों की आवाज भी यहां के लोग खूब सुनते हैं। शुक्रवार की रात भी सुनाई दी। किसी को अपने कानों पर शक भी नहीं हुआ, सभी जानते थे कि गोलियों की आवाज है। आवाज सुनने के बाद वही किया जो यहां रहते-रहते सीख गए हैं। न दरवाजा खोला, न रोशनी की, कुछ जानने-सुनने की कोशिश भी नहीं। जंगल में रहनेवालों से कोई पंगा नहीं लेना चाहता और इसके लिए जिन्हें अधिकृत किया गया है उनको कुछ पता ही नहीं। पुलिस बुलाने पर ही आती है। न अलसुबह आएगी और न देर शाम। शनिवार को भी ऐसा ही हुआ। लोग अलसुबह चार-पांच बजे के आसपास ही जान गए थे कि गांव में तीन बच्चों की लाशें मिली हैं। पुलिस पहुंची लगभग चार घंटे बाद, नौ बजे। सड़क जाम से मुक्त कराने की औपचारिकता निभाने के साथ ही पुलिस लौट भी गई। खाली हाथ।
गांव में रिश्तेदारों से लेकर आसपास के लोग तक कुछ बोलना, बताना नहीं चाहते। जानते भी नहीं। भय और आतंक से उन्होंने चुप रहना सीख लिया है। मां रोती-चिल्लाती है लेकिन उसे भी कुछ पता नहीं चल रहा, लोगों से पूछती है, क्या हुआ था, कोई कुछ नहीं बोलता। पुलिस तो और कुछ नहीं जानती। अधिकारी नए हैं सो उनके सूत्र भी नहीं। पूछने पर चार शब्द 'जांच चल रही है' सुना दिया जाएगा। रटा-रटाया जवाब। छोटे से लेकर बड़े तक। ऐसे में पुलिस की जांच किसी मुकाम तक पहुंचने की संभावनाएं क्षीण हैं। कुछ अधिकारी कयास लगा रहे तो कुछ तुक्का।