कोई भेदिया तो था वहां!
रांची : शुक्रवार की रात करीब सवा नौ बजे बादल गरज रहे थे और बूंदा-बांदी भी हो रही थी। तभी पटाखे सी दो आवाज ग्रामीणों के कानों में गूंजी। सबने सोचा, फिर जंगल की ओर से हाथी आया होगा और उसे भगाने के लिए पटाखे फोड़े गए होंगे, लेकिन यह आवाज तो कुछ और ही निकली। यह गोलियों की आवाज थी। कुछ लोग जान भी गए थे लेकिन कोई यह नहीं जान पाया है कि आखिर अपराधी तीनों बच्चों तक सीधे कैसे पहुंच गए। तीनों जहां सोए थे उस जगह पर इसके पूर्व कभी नहीं सोने गए थे। बाहर से आए अपराधी सीधे दो दरवाजों के बाद इस कमरे तक पहुंच जाएं, यह संभव नहीं लगता। इसके बाद घरों के बीच से निकालकर जिस प्रकार से बच्चों को ले जाया गया उससे भी कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं कुछ ताकतें थीं जिसके कारण शोर तक नहीं हुआ मौत होने तक।
शनिवार को पूरे गांव में कोहराम मचा था। हर किसी की आंखों में आंसू थे। दहशत भरे चेहरों पर थी घटना की भयावह तस्वीर। सवाल भी तरह-तरह के उठ रहे थे कि गांव के बीचोबीच से तीन-तीन किशोर का अपहरण किया गया और कुछ दूरी पर ले जाकर गोलियां मार दी गई और किसी को भनक कैसे नहीं लगी। वह भेदिया भी कौन था, जिसे यह पता था कि तीनों दोस्त एक ही कमरे में सो रहे हैं। पूरी वारदात चौंकाने के लिए काफी थे।
जिस कमरे में तीनों साथी जीतपाहन महतो, आदित्य गोप व उपेंद्र महतो सोए थे, उस घर की कुंडी को तोड़ा गया, लेकिन अगल-बगल के घरवालों को इसकी भनक तक नहीं लगी। अपराधियों ने तीनों किशोरों को घर से बाहर निकाला और बीच गांव से लेकर खेत तक पहुंचे, लेकिन ग्रामीणों को इसकी भनक तक नहीं लगी। गोलियां भी चली, लेकिन सभी अनभिज्ञ थे। शनिवार की सुबह गांव के तीन-तीन लड़कों का शव देखकर रात की आवाज पर ग्रामीणों का ध्यान गया। उन्हें लगा था कि जंगल से फिर हाथी आ गए होंगे, जिन्हें भगाने के लिए पटाखे फोड़े गए होंगे।