अनुशासन की उड़ीं धज्जियां, जिम्मेवार कौन
रांची : खेलगांव में गुरुवार की देर रात का हंगामा। कुछ वर्दी में, कुछ सिविल ड्रेस में लाठियां चटकाते हुए। हाथों में असलहे। किसी के सिर, किसी की पीठ पर लाठियां।
रांची लोकतंत्र के महापर्व पर हुए इस हंगामे को शायद ही भूल पाए। इसलिए कि अनुशासन की धज्जियां उड़ीं। लोकतंत्र अनुशासन से चलता है और जिसके जिम्मे यह व्यवस्था हो वही उसकी सीमाएं लांघ जाए तो क्या होगा? झारखंड के लिए बड़ा सवाल यहां के सिस्टम पर। पुलिस ने राजनीतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। मीडिया को भी नहीं छोड़ा। अपने उच्चाधिकारियों के सामने कहते रहे, हां पीटेंगे। यह दुस्साहस भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के किसी भी हिस्से में कोई नहीं कर सकता है। लेकिन यहां हुआ। एसएसपी का तर्क सुनिए, कंफ्यूजन हो गया होगा। पहली बार कंफ्यूजन हो सकता है, लेकिन वही कंफ्यूजन बार-बार हो तो उसे क्या कहा जाएगा। एक राजपत्रित महिला पदाधिकारी जब यह कहने पर विवश हो जाए कि नहीं करनी हमें इस जिल्लत की नौकरी तो फिर कुछ कहने-सुनने को बाकी नहीं रह जाता है। खेलगांव में यह सब हुआ तो निश्चित रूप से प्रशासन के वरीय अधिकारी जवाबदेह हैं, जिन्होंने जवानों को या तो अनुशासन का पाठ नहीं पढ़ाया या आंखें मूंदे रहे। यह रुख लोकतांत्रिक व्यवस्था में, किसी भी समाज में खतरनाक है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के सामने भी जवानों की जुबान चलती रही तो उसे क्या कंफ्यूजन कहेंगे, जैसा कि एसएसपी बता रहे हैं। उपायुक्त को हंगामे की आशंका होती है और वे खुद घटनास्थल पर ढाई घंटे बाद पहुंचते हैं। उस समय तक खेलगांव रणभूमि में तब्दील हो चुका होता है। इस बात से भी कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि ईवीएम से छेड़खानी के कथित आरोपों के बीच हंगामा देख उस समय जवान बाहर निकल आए। सुरक्षा के ख्याल से उन्होंने बल प्रयोग भी किया। इसे भी जायज ठहराया जा सकता है, कंफ्यूजन हो सकता है कि पता नहीं हंगामा करने वाले कौन हैं। लेकिन जब वरीय अधिकारी पहुंच गए और उन्होंने मना किया, उसके बाद फिर से वही घटनाक्रम दुहराया गया तो जाहिर है यह सिर्फ कंफ्यूजन नहीं। बहरहाल, अगर उच्चाधिकारियों के आदेश की अवहेलना हुई है तो क्या उन जवानों को चिह्नित कर कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए जिम्मेवार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।