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महुडंड के कई गांवों तक नहीं पहुंची हैं सड़कें

जयनंदन पांडेय,हुसैनाबाद : हुसैनाबाद अनुमंडल क्षेत्र के अतिनक्सल प्रभावित व उग्रवादियों के ठहरने क

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 01:01 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 01:01 AM (IST)
महुडंड के कई गांवों तक नहीं पहुंची हैं सड़कें
महुडंड के कई गांवों तक नहीं पहुंची हैं सड़कें

जयनंदन पांडेय,हुसैनाबाद : हुसैनाबाद अनुमंडल क्षेत्र के अतिनक्सल प्रभावित व उग्रवादियों के ठहरने का सेफ जोन महुडंड पंचायत के कई गांव आ भी पक्की सड़क से नहीं जुड़े हैं। यहां सड़क का निर्माण ही नहीं हो सका है। इस कारण महुडंड जाने के लिए लोगों को काफी लंबी दूरी तय कर पैदल पहुंचना विवशता बन गई है।

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यहां की स्थिति ऐसी है कि सड़क नहीं होने के कारण पंचायत के सलईया टीकर, लोहबंधा, फटिया आदि गांवों में लोकसभा व विधानसभा के चुनाव में कोई भी प्रत्याशी या उनके कार्यकर्ता तक प्रचार के लिए आजादी से अब तक नहीं पहुंचे हैं।

ऐसा नहीं है कि महुडंड पंचायत सड़क से जोड़ने के प्रयास नहीं हुआ है। बावजूद ये सभी अधूरे साबित हुए हैं। जपला-छतरपुर रोड से महुडंड तक लगभग 15 किमी सड़क का कार्य 12 वर्ष पूर्व शुरू किया गया था। उग्रवादियों के निशाने पर आने के कारण सड़क निर्माण बाधित हुआ। फिर चार साल पूर्व भी सड़क निर्माण कार्य शुरू कराया गया। इसे उग्रवादियों ने फिर से लेवी को लेकर रोक लगा दी। हालांकि तब ग्रामीणों ने उग्रवादियों के इस कार्रवाई का विरोध भी किया था। बावजूद निर्माण कार्य बंद हो गया। इसके बाद से इस सड़क पर कार्य शुरू करने की पहल अब तक नहीं की गई।

श्रमदान से बनाई गई थी दस किमी सड़क

चुनाव के समय सड़क को लेकर अक्सर चर्चा होने लगती है। बाद में इस चर्चा को ठंढे बस्ते में डाल दिया जाता है। जपला-छतरपुर रोड से 30 किमी की दूरी तय कर पहाड़ी रास्ते से होकर महुडंड पंचायत के गावों को जोड़ते हुए मोहम्मदगंज तक सड़क जाती है। हुसैनाबाद के तत्कालीन एसडीपीओ अजीत पीटर डुंगडुंग ने श्रमदान से मोहम्मदगंज से माहुर गांव तक दस किमी सड़क बनवाई थी। साथ ही ग्रामीणों के बीच कंबल, धोती आदि वस्त्रों का वितरण भी किया था। उनके इस प्रयास को ग्रामीण आज भी याद करते हैं। इसके बाद महुडंड पंचायत के गांवों को सड़क से जोड़ने का कोई सार्थक प्रयास नहीं हो रहा है।

बताते चलें कि महुडंड से विश्रामपुर प्रखंड मुख्यालय की दूरी महज 12 किमी है। इस सड़क को भी जनसहयोग से ही श्रमदान कर पहाड़ी को काट कर बनाया गया था। बावजूद यह भी अब तक उपेक्षित है। इन सभी सड़कों का निर्माण पूरा कर लिया जाता तो किसी भी तरफ से सड़क मार्ग के जरिए महुडंड जैसे उग्रवाद प्रभावित गांवों में पहुंचना पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के लिए सुगम हो जाता। साथ ही ग्रामीण भी सड़क मार्ग से जुड़ जाते।

इधर लंबी दूरी की गश्ती के लिए पुलिस को कोसो दूर चलकर महुडंड क्षेत्र में पहुंचना काफी मुश्किल बना हुआ है। पुलिस प्रशासन पैदल चलकर अपने ऑपरेशन को सफल बनाने में कामयाबी हासिल करता है। यह क्षेत्र जंगल व पहाड़ों से घिरा हुआ। यह क्षेत्र उग्रवादियों के ठहरने का सेफ जोन माना जाता है।

हुडंड पंचायत क्षेत्र के लोगों का कहना है कि कभी माओवादी तो कभी टीपीसी उग्रवादियों की घमक से महुडंड पंचायत के एक दर्जन गांव के लोगों का जीना मुश्किल हो जाता है। आखिर महुडंड पंचायत के लोग कब तक उग्रवादियों को अपना पेट काटकर भोजन कराते रहेंगे। यहां की जनता कब उग्रवाद से मुक्ति पाएगी।


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