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प्रशासनिक अदूरदर्शिता से चलानी पड़ी गोली

अश्विनी कुमार, छतरपुर,पलामू: अब इसे प्रशासनिक शिथिलता कहें या अदूरदर्शिता। शब्द जो भी हो मायने सिर्

By Edited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 07:52 PM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2015 07:52 PM (IST)
प्रशासनिक अदूरदर्शिता से चलानी पड़ी गोली

अश्विनी कुमार, छतरपुर,पलामू: अब इसे प्रशासनिक शिथिलता कहें या अदूरदर्शिता। शब्द जो भी हो मायने सिर्फ यही है कि टाल-मटोल के कुख्यात पुलिसिया रवैये के इतर यदि समय पर यथोचित कार्रवाई की गई होती तो मंगलवार को सरईडीह में न गोली चलती और न ही किसी की मौत होती।

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सरईडीह भूत मेला का आयोजक भगत रमेश भुइयां कोई शातिर ओझा-गुणी नहीं था। जन्माष्टमी से पहले तो वह गांव-गांव मजदूरी करता था। जन्माष्टमी के दिन उसने दावा किया कि उससे भगवान ने कहा है कि झरिवा नदी में नाग देवता हैं और लोगों की समस्याओं का समाधान करते हैं। वैसे इस क्षेत्र में वर्षो से देवास या भूत मेला लगाने का रिवाज रहा है। इसके बाद उसने नदी के किनारे हनुमानजी का झंडा लगाकर डेरा जमा लिया। कई लोगों ने नदी में सांप देखा। इसके बाद यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई। एक गांव से दूसरे गांव व एक राज्य से दूसरे राज्य झारखंड, बिहार व छत्तीसगढ़ से प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग आने लगे। ओर अपना-अपना भूत झड़वाने लगे। शांत सा रहने वाला सरईडीह प्रतिदिन हजारों लोगों के आने से अचानक गुलजार रहने लगा। इस समय भी पुलिस नहीं चौंकी। स्थानीय लोगों को रोजगार मिल गया। साथ ही गांव-गांव में झमेला शुरू हो गए। छतरपुर के कई गांव में ओझा-डायन को लेकर मारपीट के मामले बढ़ गए। हालात यह हो गया कि विवाद सुलझाने कई गांवों के लोग झरिवा भूत मेला में जाने लग। वहां समस्याएं सुलझाने के बजाए उलझने लगी।

प्रशासन को शुरू से पता था कि वहां प्रतिदिन हजारों की भीड़ जुट रही है। बावजूद उसे पर नियंत्रण का कोई प्रयास नहीं किया। अखबारों में खबर छपने के बाद जब प्रशासन की नींद खुली तो बाबू सीधे कार्रवाई पर उतर आए। प्रशासन ने भगत की गिरफ्तारी का समय भी गलत चुना। इससे लोगों की आस्था भंजाने वालों को मौका मिल गया और बा बिगड़ गई।

रमेश को नहीं मिला कुछ

भूत मेला स्थल पर प्रतिदिन हजारों रुपये का चढ़ावा आने लगा। एक कमेटी बनाकर लोग उसे खर्च करते थे। गांव के लोगों को रोजगार मिल गया। छोटे-मोटे होटल, चाय-पकौड़े के दुकान खुल गए। गांव की स्थिति भले ही सुधरी लेकिन भगत रमेश भुइयां की हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। चढ़ावे से उसे कुछ भी नहीं मिलता वह सिर्फ भूत झाड़ने में लगा रहा और रुपये अचानक उसके हमदर्द बन बैठे लोग खर्च करने लगे।


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