इन महिलाओं ने लिखी संघर्ष की स्याही से स्वावलंबन की कथा
महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से एसबीआइ ने वर्ष 2009 में प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की थी।
पाकुड़, जागरण संवाददाता। विकट परिस्थिति में भी हालात अपने अनुकूल किए जा सकते हैं। हौसला बुलंद हो तो मंजिल की राह आसान हो सकती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है जिले की करीब तीन हजार महिलाओं ने। ये परिश्रम के दम पर रोजगार से जुड़कर क्षेत्र आत्मनिर्भरता की कहानी लिख रही है। महिलाओं की इस सफलता में ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) की अहम भूमिका रही है।
महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से एसबीआइ ने वर्ष 2009 में प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की थी। इस संस्थान से अब तक 2950 महिलाओं को सब्जी की खेती, बकरी-सुअर पालन, बहुफसली खेती, डेयरी, कैटरिंग आदि का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। प्रशिक्षण प्राप्त कर वे समृद्ध हो रही हैं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
संभालती हैं कैटरिंग का काम
रुरल सेल्फ इंपलायमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (आरसेटी) ने पाकुडिय़ा प्रखंड की पत्थरडांगा निवासी रेखा देवी, महेशपुर रोलाग्राम निवासी फुलमुनी हेंब्रम, पाकुड़ प्रखंड की प्यादापुर निवासी रीमा मंडल, हिरणपुर प्रखंड की तारापुर निवासी आशा देवी व उनकी सहयोगियों को कैटरिंग की ट्रेनिंग दी गई है। ग्रुप की महिलाएं सरकारी संस्थानों और गांवों में कैटरिंग का काम संभाल रही हैं।
आरसेटी का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है। अब तक करीब तीन हजार महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जा चुका है। महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए कई योजनाएं हैं।
डॉ. अजीत कुमार पांडेय, निदेशक, आरसेटी, पाकुड़।
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