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आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने वाले दस नक्सलियों ने अपनी आपबीती सुनाई है।

By Sachin MishraEdited By: Published: Thu, 27 Apr 2017 09:44 AM (IST)Updated: Thu, 27 Apr 2017 09:45 AM (IST)
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की कहानी, उन्हीं की जुबानी
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

राकेश सिन्हा/विक्रम चौहान, लोहरदगा। पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर अपने जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाले दस नक्सलियों ने जो आपबीती सुनाई है, वह नक्सलवाद के असली चेहरे को उजागर करता है। नक्सलियों ने गरीबी और बेबसी का लाभ उठाकर इन युवाओं को नक्सलवाद के दलदल में धकेल दिया। किसी को जबरन उठाकर ले गए तो किसी को खुशहाल जीवन का सपना दिखाकर।

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विशाल को जंगल से उठाकर ले गए थे नक्सली:

नक्सली विशाल खेरवार का कहना है कि वह गरीब मजदूर किसान परिवार से ताल्लुक रखता है। जंगल से लकड़ी काटकर परिवार का गुजारा करता था। वर्ष 2012 में रोजगार की तलाश में गुजरात भी गया, परंतु वापस आ गया। वर्ष 2014 में वह एक दिन जंगल में था कि नक्सलियों ने उसे धमकाया और अपने संगठन से जोड़ लिया। वर्ष 2015 में विशाल को एरिया कमांडर बनाया गया। नक्सलियों की हिंसावादी और विकास विरोधी नीति से वह तंग आ गया था।

माता-पिता को धमकाकर मुझे ले गए थे जबरदस्ती:

कलेश्वर खेरवार का कहना है कि गरीबी की वजह से वह बिल्कुल नहीं पढ़ पाया। वर्ष 2013 में माओवादियों ने मां-बाप को धमकाकर उसे जबरन संगठन में शामिल कर लिया। प्रशिक्षण देकर हथियार दिया गया। कलेश्र्वर नकुल यादव, कामेश्वर यादव, नवीन यादव के साथ भी काम कर चुका है। सरकार की आत्मसमर्पण नीति नई दिशा से प्रभावित होकर यह आत्मसमर्पण कर रहा है।

नक्सलियों के अत्याचार से तंग आ गया था:

हरेंद्र उरांव उर्फ हरिविलास ने आठवीं तक ही पढ़ाई की है। कुमारी गांव में वर्ष 2013 में नक्सलियों ने इसके माता-पिता को धमकाकर संगठन में शामिल कर लिया था। इस दौरान वह कई नक्सली कांडों में शामिल रहा। इसके काम से प्रभावित होकर इसे एरिया कमांडर बना दिया गया था। आर्थिक परिस्थितियों की वजह से पढ़ाई अधूरी रहने और उसकी गरीबी का नक्सलियों ने फायदा उठाया। दो माह पहले ही इसे सब जोनल कमांडर बनाया गया था। इसने अत्याचार से तंग आकर संगठन छोड़ा।

हर घर से एक बच्चा देने का था फरमान:

चंदेश्वर उर्फ चंदू उरांव का कहना है कि माओवादियों ने इसे वर्ष 2013 में जबरन उठाकर संगठन में शामिल कर लिया था। नक्सलियों का फरमान था कि प्रत्येक घर से एक बच्चे को संगठन में देना होगा, नहीं तो उसके परिवार को अंजाम भुगतना होगा। इसी भय से उसके पिता उसे संगठन में शामिल करने को मजबूर हुए। वह कई हिंसात्मक कार्रवाई में शामिल रहा है।

गरीब-बेसहारों को घर-जंगल कहीं से भी उठा लेते हैं नक्सली:

जितेंद्र गंझू बेहद गरीब और असहाय गंझू परिवार से ताल्लुक रखता है। वह भी अपने पिता की तरह लकड़ी बेचकर परिवार का गुजारा करता था। वर्ष 2015 में जंगल में उसकी मुलाकात रवींद्र गंझू से हुई। रवींद्र गंझू ने उसे डरा-धमकाकर और प्रलोभन देकर संगठन में शामिल कर लिया था। उसे हथियार देकर दस्ता का सदस्य बनाया गया था।

जंगल उजाड़ने का आरोप लगा कर लिया संगठन में शामिल:

सुखराम खेरवार का कहना है कि वह लकड़ी बेचकर और खेती-बारी कर अपने परिवार का गुजारा करता था। इसी क्रम में वर्ष 2013 में नकुल यादव अपने दस्ते के साथ उसके गांव आया और इन पर जंगल उजाड़ने का आरोप लगाते हुए दबाव डालकर संगठन में शामिल कर लिया। तभी से यह नकुल यादव के साथ दस्ता सदस्य के रूप में काम कर रहा था। इस दौरान वह कई नक्सली घटनाओं में शामिल रहा।

नकुल की निजी सेवा में लगी रहती थी मीना:

मीना उरांव को वर्ष 2013 में डरा-धमकाकर माओवादी कमांडर बलराम उर्फ संजीवन ने दस्ता में शामिल कर लिया था। बाद में यह नकुल के साथ रहने लगी थी। मीना नकुल की निजी सेवा, भोजन और कपड़े का इंतजाम करती थी। इस दौरान वह कई नक्सली मुठभेड़ में भी शामिल रही है। मीना ने शोषण से तंग आकर आत्मसमर्पण किया है।

विधवा सीमा को दिया गया प्रलोभन, बेबसी का उठाया फायदा:

सीमा उरांव अपने पति की मौत के बाद टूट चुकी थी। वर्ष 2010 में जोगी यादव ने पैसे का प्रलोभन व बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का लालच देकर उसे संगठन में शामिल कर लिया था। यह सात सालों तक संगठन में रही। इस दौरान इसे रायफल भी दिया गया था। यह ज्यादातर दस्ता का खाना बनाने का काम करती थी।

चावल लाने गई थी दुकान, उठा ले गए नक्सली:

सुशांति उरांव लोहरदगा में रहकर पढ़ाई करती थी। वर्ष 2014 में वह अपने गांव चावल और पैसा लाने के लिए गई थी। तभी नक्सली धमकाकर उसे अपने साथ ले गए। नक्सलियों ने धमकी दी कि गांव के हर घर से एक बच्चा ले रहे हैं। यह ढाई साल तक नकुल के दस्ते में रही। वह काफी दिनों से भागने की फिराक में थी, परंतु सफल नहीं हो पा रही थी।

सामान ढोने से लेकर रायफल चलाने तक का काम:

सुखलाल नगेसिया गरीब परिवार से है। वर्ष 2012 में माओवादियों ने जबरन धमकाकर इसे संगठन में शामिल कर लिया था। काफी दिनों तक यह संगठन में बिना हथियार के ही सामान ढोने का काम करता था। हाल में ही इसे प्रशिक्षण देकर 3.15 बोर का रायफल दिया गया था। प्रताड़ना से तंग आकर इसने आत्मसमर्पण कर दिया।

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