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पहले नोटबंदी की मार, अब आलू सड़ने से व्यवसायी बेहाल

लोहरदगा : केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी को लेकर लोहरदगा ही नहीं बल्कि पूरे देश का व्यापार प्रभावित है

By Edited By: Published: Sun, 27 Nov 2016 07:42 PM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2016 07:42 PM (IST)
पहले नोटबंदी की मार, अब आलू सड़ने से व्यवसायी बेहाल

लोहरदगा : केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी को लेकर लोहरदगा ही नहीं बल्कि पूरे देश का व्यापार प्रभावित है। नोटबंदी की मार से परेशान लोहरदगा के आलू व्यवसायी अब आलू के सड़ने से परेशान हैं। जिससे वे काफी परेशान हैं। व्यवसायी अपने पूंजी बचाने के डर से सब्जी और बीच के आलू को आधे दाम में ब्रिकी करने के लिए तैयार हैं, परंतु नोटबंदी की मार के कारण खरीददार नहीं मिल रहे हैं। एक ओर जहां व्यवसायी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले की सराहना करते नहीं थक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कारोबार के लिए जमा पूंजी के डूबने के भय से परेशान हैं।

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बाजार में आलू के ग्राहक काफी मुश्किल से मिल रहे हैं। जिसके कारण आधे भाव में आलू की ब्रिकी करनी पड़ रही है। ब्रिकी में कमी आने के कारण सब्जी वाले आलू में जड़ निकलने लगा है, तो बीज वाले आलू सड़न के कागार पर पहुंच चुके हैं।

मनोज कुमार, आलू व्यवसायी।

नोटबंदी के बाद एक बात अच्छी रही है कि आलू अब रांची से लोहरदगा के बाजार में आ रहा है। पहले नागपुर, कोलकाता और लखनऊ से सब्जी और आलू बीज आता था। अब रांची से ही लोहरदगा के बाजार में आलू आ रहा है, जिससे आलू के ज्यादा दिन तक टिकते की उम्मीद नजर आ रही है। 20 रुपए किलो में खरीदी गई आलू खुदरा बाजार में 10 रुपए किलो के भाव में भी लेने वाला नहीं है।

उमेश कुमार, आलू व्यवसायी।

नोटबंदी के बाद किसानों के पास नगदी राशि में कर्मी आई है। जिसके कारण बाजार व्यवसाय पर असर पड़ा है। किसान अपनी पुरानी नोट को अभी तक न तो बैंक में जमा कर पाएं है और न हीं उसकी बदली ही कर सके हैं। जिसके कारण वैसे किसानों को खरीद-ब्रिकी करने में काफी दिक्कत आ रही है।

राजेश कुमार, आलू व्यवसायी।

पहले जहां दुकानदार एक बार में पांच ¨क्वटल आलू का उठाव करते थे, अब वे आलू का उठाव कम मात्रा में कर रहे हैं। किसान आलू का उठाव शीघ्र नहीं करते हैं तो जहां फसल पिछड़ जाएगा। ऐसे में आलू के थोक व्यवसायियों को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।

सुधीर कुमार, आलू व्यवसायी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन के विरुद्ध देशहित में 500-1000 के नोट बंद कर बेहतर काम किया है। पर खुदरा पैसे की कमी के कारण आज हमारा व्यवसाय पूरी तरह से बर्बाद होता नजर आ रहा है। बाजार में अगर खुदरा पैसा होता तो आलू व्यवसायी इस परेशानी में नहीं फंसते। धान की फसल तो अच्छी हुई ही है अगर नोटबंदी नहीं होती तो आलू की पैदावार भी बंपर होती।

प्रवीण कुमार, आलू व्यवसायी,


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