दलमा में कभी हुआ करते थे चाय के बगान
मनोज सिंह, जमशेदपुर : अंग्रेजों का शासन काल में दलमा पहाड़ पर चाय के बगान हुआ करते थे
मनोज सिंह, जमशेदपुर :
अंग्रेजों के शासन काल में दलमा पहाड़ पर चाय के बगान हुआ करते थे। दलमा का मौसम चाय की खेती के लिए पूरी तरह उपयुक्त था। बगानों की देखभाल के लिए कई मकान, कुंए, घोड़ों के लिए अस्तबल आदि भी बनाये गए थे। इसके अवशेष आज भी दलमा जंगल के अंदर मौजूद हैं।
दलमा के पर्यटक जब पिंड्राबेड़ा गेस्ट हाउस से बड़का बांध होते हुए निचला बांध की ओर जाते हैं तो अस्तबल, मकान एवं कुंआ के अवशेष मिलते हैं। गांव के बुजुर्ग चाय की खेती के बारे में दादा-परदादा से सुने किस्से भी सुनाते मिले जाते हैं। कहते हैं कि 1850 के आसपास दलमा में चाय की खेती शुरू की गई थी, जो लगभग 30 साल तक होती रही। यहां की चाय घोड़ों पर लादकर नीचे लायी जाती थी। जब अंग्रेज यहां से चले गए तो उनके खाली घरों का उपयोग इलाके के जमींदार करने लगे। कहा जाता है कि अंग्रेज अपने साथ बेली फूल के पौधे भी लेकर आये थे, जो आज पूरे दलमा में बहुतायत में हैं।
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सोरसोबाड़ी में रहते थे अंग्रेज
दलमा पहाड़ पर चाय की खेती करवाने वाले अंग्रेज सोरसोबाड़ी में रहते थे। स्थानीय निवासी जगत बताते हैं कि इसे सोरसोबाड़ी इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके आसपास पहले सरसों की खेती बहुतायत में होती थी। दलमा के ही मुन्ना व फॉरेस्टर कालेश्वर महतो के मुताबिक दलमा के बीहड़ों में डोपूडेरा नामक स्थान पर भी मकान, पानी की टंकी, कुंआ आदि के अवशेष मिले हैं। दलमा में ही निचला बांध के पास स्थित कलमारी नामक स्थान पर भी कुछ घर तथा कुंए थे।
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दलमा में अंग्रेजों के जमाने में बड़े पैमाने पर चाय की खेती की जाती थी। जिसकी देखभाल के लिए दलमा के जंगलों में कई स्थानों पर रहने के लिए मकान, पानी के लिए कुंआ व घोड़ों के लिए अस्तबल बनाया गया था। दलमा में ठंड काफी रहती थी, जो चाय की खेती के लिए अनुकूल मौसम था। आज भी ठंड के दिनों में दलमा में न्यूनतम तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है।
-सुशील उरांव, सीसीएफ, वन विभाग