Tantra ke gan : ये हैं झारखंड के प्रेमचंद, प्रभावी तरीके से कर रहे डायन कुप्रथा पर प्रहार
Tantra ke gan. वर्ष 1991 की एक घटना ने उन्हें और उनके साथियों को अंदर से हिला दिया। तब जमशेदपुर के मनीकुई गांव में एक महिला को डायन होने के आरोप में पीटा जाने लगा।
जमशेदपुर, दिलीप कुमार। अंधविश्वास आधारित कुरीति डायन कुप्रथा के खिलाफ कड़ा कानून बनवाने में अहम भूमिका निभाने वाले जमशेदपुर, झारखंड के प्रेमचंद इस लड़ाई में लंबे समय से रत हैं और प्रभावी तरीके से आवाज उठा रहे हैं। प्रेमचंद की संस्था फ्लैक (फ्री लीगल एड कमेटी) ने ही बिहार सरकार को डायन कुप्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1995 का ड्राफ्ट सौंपा था। इसी के आधार पर बिहार सरकार ने 1999 में कानून बनाया था। देश में यह पहली सरकार थी, जिसने डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनाया।
बाद में इसी कानून को सात राज्यों ने अपनाया। जिसमें बिहार के अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र,असम और ओडिशा शामिल हैं। अब भी जहां कहीं भी डायन के नाम पर हत्या या उत्पीडऩ की शिकायत मिलती है, प्रेमचंद वहां पहुंच जाते हैं। वह पीडि़त की मदद करने के साथ प्रताड़ित करने वालों को सजा दिलाने और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए भी तत्पर रहते हैं। हाल ही में उन्होंने अंधिवश्वास के खिलाफ जागरूकता को कक्षा छह से लेकर पीजी तक के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए विभाग को पत्र लिखा है।
अंधिवश्वास के खिलाफ जागरुकता जरूरी
प्रेमचंद कहते हैं कि डायन कळ्प्रथा का अस्तित्व अशिक्षा और अंधिवश्वास के कारण है। जागरूकता इसके खिलाफ एक बड़ा हथियार है। झारखंड में डायन-बिसाही के नाम पर महिला-पुरुषों को प्रताड़ित करने और पीट-पीट कर मार डालने की घटनाएं आम हैं। अमानवीय प्रताड़ना का सिलसिला आज भी जारी है। हिंसा की सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही होती हैं। आम लोगों के सहयोग से ही इसपर पूरी तरह अंकुश लग सकता है। राज्य में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम, 2001 बना, बावजूद इसके डायन-बिसाही के नाम पर प्रताड़ना और हत्या के मामलों में कमी नहीं आ रही है, लेकिन इस कानून ने पीड़ितों को सहारा जरूर दिया है।
राष्ट्रीय कानून की वकालत
प्रेमचंद कहते हैं कि यह सामान्य नहीं, सामाजिक मनोविज्ञानिक समस्या है। इसे खत्म करने के लिए मिशन आधारित कार्यक्रम चलाना होगा। सरकार को राष्ट्रीय कानून बनाना चाहिए। ग्रासरूट से लेकर ऊपर के स्तर तक काम करने, इसके रोकथाम के लिए सभी में इच्छाशक्ति का संचार होना चाहिए। ओझा-गुनी की प्रतिभा का सकारात्मक उपयोग किए जाने की जरूरत है ताकि वे कळ्प्रथाओं को बढ़ावा देने केबजाय इनके उन्मूलन में सहायक बनें। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक रूप से जड़ी- बूटियों के जानकार लोगों की काबिलियत को सही दिशा में मोड़कर उनका लाभ उठाने, गांवों में हर्बल पार्क विकसित करने जेसी रणनीति भी मददगार साबित हो सकती है।
संघर्ष के बाद मिली सफलता
प्रेमचंद बताते हैं कि वर्ष 1991 की एक घटना ने उन्हें और उनके साथियों को अंदर सेहिला दिया। तब जमशेदपुर के मनीकुई गांव में एक महिला को डायन होने के आरोप में पीटा जाने लगा, बचाव करने पर उसके पति व एक बेटे को भी पीट-पीट कर मार डाला गया। इस घटना के बाद मैंने तय कर लिया कि डायन कुप्रथा केखिलाफ जो भी हो सके, करना है। प्रेमचंद उम्मीद जताते हैं कि आधुनिक समाज एक दिन अवश्य चेतेगा क्योंकि ऐसी क्रूरता किसी सभ्य समाज में कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती है।
चार जिलों में मिले थे 176 मामले
वर्ष 2000 में यूनिसेफ के साथ मिलकर फ्लैक संस्था ने झारखंड के चार जिले पूर्वी सिंहभम, रांची, बोकारो और देवघर में जन-जागरण और सर्वेक्षण का काम किया। चार जिलों के 26 प्रखंड की 191 पंचायतों और 332 गांवों में सघन अभियान चलाकर डायन-बिसाही के कुल 176 मामलों का पता लगाया गया। चारों जिलों में 176 महिलाओं पर प्रताडऩा का मामला अपने आप में बड़ा मामला था। प्रेमचंद कहते हैं कि इस आधार पर पूरे राज्य में यह आंकड़ा हजारों में होगा। टीम के लोगो अिभयान में लगातार मिल रही सफलता से उत्साहित हैं। प्रेमचंद बताते हैं कि हमारा सपना झारखंड को इस कळ्प्रथा से मुक्त बनाने का है।
ये है मांग
फ्लैक संस्था ने इस विषय को कक्षा छह से स्नातकोत्तर तक की पाठ्य पुस्तकों में शामिल करने की मांग की है, ताकि इसकी भयावहता को विद्यार्थी जान सकें। टीवी सीरियल और फिल्मों में भूत-पिचाश और डायन आदि के प्रदर्शन पर रोक लगाना भी जरूरी है। ओझा गुनी को ही गांव में इसकी रोकथाम की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। प्रेमचंद, सामाजिक कार्यकर्ता, जमशेदपुर