पति की दीर्घायु के लिए महिलाओं ने रखा वट सावित्री व्रत
वट सावित्री व्रत को सौभाग्य, दीर्घायु और आरोग्य प्रदान करने वाला व्रत माना जाता है।
जमशेदपुर, जेएनएन। झारखंड में आज वट सावित्री पर्व मनाया जा रहा है। महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूजा की। सुबह से मंदिरों और वट वृक्षों के पास रौनक रही।
वट सावित्री व्रत को सौभाग्य, दीर्घायु और आरोग्य प्रदान करने वाला व्रत माना जाता है। हिंदूू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो भी स्त्री वट सावित्री व्रत रखती है, उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और पति को दीर्घायु मिलती है। इस व्रत की मान्यता करवा चौथ व्रत के सामान ही है। यह व्रत आज देश के अधिकतर हिस्सों में मनाया जा रहा है।
वट सावित्री व्रत कथा:
भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। राजा और रानी बहुत चिंतित रहते थे। उन्होंने पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए सावित्री का जप किया। उनके जप से सावित्री ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा। राजा ने उनसे पुत्र की याचना की।
सावित्री ने कहा, राजन तुम्हारे भाग्य में पुत्र तो नहीं है, पर तुम्हें एक पुत्री की प्राप्ति होगी और उसका नाम तुम मेरे नाम पर रखना। रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया और राजा-रानी ने पुत्री का नाम सावित्री रखा। धीरे-धीरे समय बीतता गया और वह समय भी आ गया जब राजकुमारी सावित्री विवाह के योग्य हो गई। राजा ने राजकुमारी को अपना वर खोजने का आदेश दिया। सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान को चुना। सत्यवान धुत्मसेन के इकलौते पुत्र थे।
राजा धुत्मसेन का राज्य रुक्मी ने छीन लिया था और वे अंधे होकर वन में कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे थे। नारद जी को जब यह बात पता चली कि सावित्री ने सत्यवान को वर के रूप में चुना है तो नारद जी ने महाराज से कहा महाराज, सावित्री ने अपने लिए योग्यतम वर को चुना है। वास्तव में सत्यवान बड़ा ही धर्मात्मा, गुणवान एवं रूपवान है।
वह सभी शास्त्रों का ज्ञाता है, किन्तु खेद है कि वह अल्पायु है और इस वर्ष के समाप्त होते ही उसका जीवन समाप्त हो जाएगा। राजा को सत्यवान की अल्पायु के बारे में ज्ञात होते ही उन्होंने सावित्री से कहा पुत्री, कोई दूसरा वर ढूंढ़ लो। सत्यवान अल्पायु है। अत: अल्पायु युवक से विवाह करना उचित नहीं है। तब सावित्री ने अपने पिता से कहा, मैंने जिसका एक बार वरण कर लिया है उसका त्याग मैं कदापि नहीं कर सकती। राजा ने पुत्री की बात मानकर सावित्री और सत्यवान का विवाह कर दिया।
ऐसे करें पूजा की तैयारी
वट सावित्री व्रत के दिन प्रात: काल पूरे घर की सफाई करें। स्नान के बाद घर को गंगाजल से पवित्र करें। एक बांस की टोकरी में वट सावित्री व्रत की पूजा की सामग्री, सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, चना, रोली, कपड़ा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र को व्यवस्थित कर लें। वट वृक्ष के आस-पास भी सफाई कर लें। अब वट सावित्री व्रत की पूजा आरंभ करें।
ऐसे करें वट सावित्री व्रत की पूजा
सर्वप्रथम पूजा स्थान पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, रोली, सिंदूर व दीप जलाकर पूजा करें। लाल रंग का कपड़ा सावित्री और सत्यवान को अर्पित करें और फूल समर्पित करें। बांस के पंखे से सावित्री और सत्यवान को हवा करें। पंखा करने के बाद वट वृक्ष के तने पर कच्चा धागा लपेटते हुए पांच, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें। परिक्रमा के पश्चात वट सावित्री व्रत की कथा सुनें और बांस की टोकरी में वस्त्र, फल, मिठाई आदि रखकर दान करें।
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