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चौराहों पर लगती इनकी बोली, बिकती मेहनत

मो. तौफिक रजा, जमशेदपुर ये रोज सरे बाजार बिकने के लिए खड़े होते हैं और इनकी बोली

By JagranEdited By: Published: Mon, 01 May 2017 02:48 AM (IST)Updated: Mon, 01 May 2017 02:48 AM (IST)
चौराहों पर लगती इनकी बोली, बिकती मेहनत
चौराहों पर लगती इनकी बोली, बिकती मेहनत

मो. तौफिक रजा, जमशेदपुर

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ये रोज सरे बाजार बिकने के लिए खड़े होते हैं और इनकी बोली लगाई जाती है। बिक गए तो खुद के पेट के साथ परिवार के बाकी सदस्यों के पेट में भी निवाला आ जाए और नहीं तो फिर कहना ही क्या। इनकी तादात अच्छी-खासी है।

ये शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर सुबह-सुबह आकर खड़े हो जाते हैं। ये हैं प्रतिदिन काम की तलाश में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों से रोज आनेवाले मजदूर जो मुंह अंधेरे घर से निकल पड़ते हैं। बोली लगने के स्थान भी निश्चित हैं। जमशेदपुर के मानगो चौक, जुगसलाई नया बाजार, साकची के सरकार बिल्डिंग के पास, गोलमुरी के आकाशदीप प्लाजा चौक समेत अन्य चौक-चौराहों पर इन ग्रामीण मजदूरों की भीड़ काम की तलाश में जुटती है।

सोमवार को मानगो चौक में रेवड़ा से आई मजदूर पानो कुंटिया, शंकोसाई की सोनाता, कोड़ा मुंडी ने बताया कि नोटबंदी के बाद से रोज काम मिलना मुश्किल हो गया है।

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पैदल चलकर जमशेदपुर के मानगो चौक हर रोज सुबह 7 बजे काम की तलाश में आते हैं। एक दिन काम नहीं मिलने से परेशानी होती है। गांव में रोजगार नहीं है। मजबूरन शहर में काम की तलाश में आना पड़ता है।

पानो कुंटिया, रेवड़ा।

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मनरेगा के तहत काम नहीं मिला। इससे शहर में रेजा-कुली का काम कर गुजारा कर रही हूं। नोटबंदी के बाद से रेजा-कुली का काम बड़ी मुश्किल से मिल रहा है। पहले काम हर रोज मिलता था। अब महीने में लगभग 10 दिन काम नहीं मिल पाता है।

सोनाता, शंकोसाई।

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काम की तलाश में हर सुबह मानगो चौक जाती हूं। कभी-कभी काम नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है। रेजा-कुली का काम कर हर रोज 250 रुपये मिलते हैं। जिससे जिंदगी का गुजारा हो रहा है।

कोड़ा मुंडी, शंकोसाई।

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काम की तलाश में हर सुबह चौक पर आता हूं। काम मिलने पर मिस्त्री के साथ जाते हैं। कभी-कभी काम नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है।

प्रणव राउत, मुंशी मोहल्ला।

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नोटबंदी के बाद से काम पर असर पड़ा है। अब बिल्डिंग बनने का काम कम हो गया है। पहले की तरह हर रोज काम मिलना मुश्किल हो रहा है।

कृष्णा ठाकुर, बैकुंठ नगर।


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