Move to Jagran APP

नागाडीह में घर कर गई अभिशप्त वीरानी

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : नागाडीह गांव आज दहशत का पर्याय बन गया है। इस गांव में अब भी वीरानी

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Jun 2017 02:47 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jun 2017 02:47 AM (IST)
नागाडीह में घर कर गई अभिशप्त वीरानी
नागाडीह में घर कर गई अभिशप्त वीरानी

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : नागाडीह गांव आज दहशत का पर्याय बन गया है। इस गांव में अब भी वीरानी है। बच्चा चोर कहकर जिस गांव में 18 मई को चार लोगों की हत्या कर दी गई, उस गांव के गलियारों में अब कुछ बच्चे खेलते तो दिखते हैं, लेकिन उन चंद बच्चों की ओर देखने..उनकी ओर नजरें घुमाने तक के लिए हिम्मत जुटानी पड़ती है। नागाडीह में पसरी रहस्यमयी वीरानी अजीब सा डर आज भी समेटे हुए है। सच कहें तो नागाडीह से होकर गुजरने वाली सड़क से एक बार गुजर जाइए तो लगता है जैसे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। अचानक वह दर्दनाक मंजर मन-मस्तिष्क में कौंध जाता है जब सैकड़ों की भीड़ ने चार लोगों को घेर कर पीट-पीट कर मार डाला। वो चबूतरा। वो पत्थर। अब भी उसे देख दिल में दहशत का ज्वार सा उठ जाता है।

loksabha election banner

18 मई से अब 18 जून तक गुजर गया। गांव अब भी वैसा ही सूना है, जैसा 19 मई की सुबह को सूना था। चारों वीरानी। घटना के बाद से इस गांव में एक भी पुरुष सदस्य नहीं रह रहा है। महीने भर बाद भी हालात वैसे के वैसे ही हैं। सोमवार को भी गांव में एक भी पुरुष सदस्य नहीं दिखा। चहल पहल से गांव का जैसे नाता ही टूट गया है। इक्का-दुक्का महिलाएं आंगन में बैठीं दिखीं, जो हर आने-जाने वाले की आंखों में झांक गांव के प्रति उस आने-जाने वाले के नजरिए को टटोलने की कोशिश करतीं। हमारी आंखों में भी उन्होंने गांव के प्रति हमारे नजरिये को टटोलने की कोशिश की। पूछने पर कुछ कहतीं नहीं। पता नहीं है कह कन्नी काट घर के भीतर चली जातीं। बूढ़े-बुजुर्ग हैं जो किसी के गांव में आने पर ऐसे व्यवहार दिखाने का प्रयास करते कि उन्हें इस बात से कोई मतलब ही नहीं कि कौन आया-क्यों आया। ऐसे ही एक बुजुर्ग नागाडीह गांव के अंतिम घर में मिले। पैर से दिव्यांग यह बुजुर्ग पानी भरने खुद बैसाखी के सहारे सड़क किनारे के नल तक पहुंचे। खुद पानी भरा और बैसाखी के सहारे पानी भर वापस चले गए। यह पूछने की कोशिश की कि घटना के बाद क्या गांव में हालात सामान्य हुए..? जवाब में पहले तो कुछ मिनट सवालिया नजरों से घूरते रहे, फिर बोले..गांव में अभी कोई है ही नहीं। कोई नहीं लौटा। उस बुजुर्ग से नाम पूछना चाहा, लेकिन जवाब में इन्कार मिला। पूरे गांव में इस बुजुर्ग के अलावा जो भी मिला, कोई बात करने को तैयार न हुआ। गांव से पुरुष सदस्यों के फरारी का आलम यह है कि गांव में एक गृह निर्माण कार्य चल रहा है, उस निर्माण कार्य में एक भी पुरुष सदस्य नहीं। बुनियाद खोदने वाली भी महिलाएं और रेजा का काम करने वाली भी महिलाएं। सहज समझिए कि गांव में पुरुष सदस्य अबतक नहीं लौटे। अधिकतर घरों के किवाड़ (दरवाजे) पर भी ताले अब तक लटके हुए हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.