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दामन में दर्द समेट बन गई दवा

जागरण विशेष -दुर्घटना के शिकार पति बिस्तर पर, फिर भी परित्यक्ता बेटी के साथ मिलकर करती ब

By Edited By: Published: Tue, 24 Jan 2017 02:48 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jan 2017 02:48 AM (IST)
दामन में दर्द समेट बन गई दवा
दामन में दर्द समेट बन गई दवा

जागरण विशेष

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-दुर्घटना के शिकार पति बिस्तर पर, फिर भी परित्यक्ता बेटी के साथ मिलकर करती बेसहारों की सेवा

-लाचार-बीमार की सेवा और परिवार खर्च चलाने के लिए बेटी संयुक्ता ने खोल रखा है स्कूल

राजेश चौबे, घाटशिला : सर्वागिनी गांगुली और संयुक्ता गांगुली। रिश्ते में मां-बेटी। वक्त ने दोनों के कितने इम्तिहान लिए, पूछिए मत। इकलौती बेटी की शादी कर सर्वागिनी खुश थी कि सड़क दुर्घटना में पति की कमर टूट गई और उन्होंने विस्तर पकड़ लिया। उधर, बेटी की दुनिया में आग लग गई, जब अंतहीन प्रताड़ना के बाद पति ने साथ छोड़ दिया। इसके बाद भी मां-बेटी ने इकट्ठे होकर खुद को संभाला और दामन में दर्द समेट कर उनलोगों के लिए दवा बन गई जो वक्त के कुछ ज्यादा ही मारे थे। इनमें दिव्यांग से लेकर बेसहारा शामिल हैं। इनकी मुस्कान देखकर मां-बेटी को सुकून मिल रहा है और इन्हें अपना दर्द याद नहीं रहता।

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देवला, संटू और कमलेश को मिली नई जिंदगी

बराजुड़ी गांव की देवला हेम्ब्रम को नई ¨जदगी मिली है। वह दोनों आंखों से देख नहीं पाती थी। देवला बचपन से सूर नहीं थी। गांव में जादू-टोना के चक्कर में उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। सर्वागिनी गांगुली को पता चला तो बेटी संयुक्ता की मदद से उसे अपने पास ले आई। लगातार योग व प्राणायाम कराया और परिणाम यह है कि देवला को अब थोड़ा-बहुत दिखने लगा है। गुड़ाबांदा का संटू राय भी उन खुशनसीबों में शामिल है जिसे सर्वागिनी और संयुक्ता के स्नेह की छांव मिली है। पेड़ से गिर जाने के कारण संटू विकलांगता का शिकार हो गया था। मां-बेटी उसे अपने पास ले आई और तीन वर्ष की देखरेख का नतीजा है कि संटू अपने पैरों पर पूर्व की तरह खड़ा हो चुका है। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के चाकडूबा गांव के कमलेश मुंडा को लें। सोराइसीस और एग्जिमा की बीमारी ने कमलेश को जकड़ लिया। उसके पूरे शरीर में घाव होकर मवाद भर गया। घाव से काफी दुर्गंध आती थी। दूसरों की कौन कहे, परिवार के लोग भी उससे कन्नी कटाने लगे। मां-बेटी को पता चला तो उसे लेकर अपने पास ले आई और देखरेख करने लगी। कमलेश अब पूर्णत: स्वस्थ है और सामान्य जिंदगी जीने लगा है। कमलेश अब घर वापस लौटने का इरादा नहीं रखता। कहता है-जिसने जिंदगी बख्शी, जिंदगी उसी के नाम। साथ रहेगा और सुख-दुख में हाथ बंटाएगा।

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स्कूल से होता पैसे का जुगाड़

32 वर्षीय संयुक्ता की शादी पुलिस पदाधिकारी से हुई थी। कोई 12 वर्ष पूर्व की बात है जब पति से अलग होने का फैसला लेना पड़ा। संयुक्ता गर्भवती थी और उसपर पति गर्भपात के लिए दबाव बना रहा था। जब वह तैयार नहीं हुई तो जबरन पारा पिला दिया गया। मां को खबर मिली तो मौत से संघर्ष कर रही बेटी को साथ ले आई और साथ रखने का ही फैसला लिया। संयोग से पारा पिला दिए जाने के बाद वह मौत के मुंह में तो चली गई पर गर्भपात नहीं हुआ। आज वह 12 वर्ष के बेटे की मां है। संयुक्ता अर्थोपार्जन के लिए गोपालपुर में अपने आवास पर ही द नाईटेंगल नाम से अंग्रेजी स्कूल चलाती है और इसकी की आमदनी से परिवार चलाने के साथ ही पास रखे गए बच्चों की देखरेख भी करती है।

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पिता से मिला सेवा का भाव

सर्वांगिनी गांगुली को सेवा भाव पुलिस इंस्पेक्टर पिता से मिला। सर्वांगिनी बताती हैं कि पाकिस्तान से युद्ध के समय पश्चिम बंगाल की सीमा पर दिनहाटा में आर्मी कैंप बना था। रेडक्रॉस की कैडर के तौर पर 15 वर्ष की आयु में युद्ध में घायलों की सेवा की थी। पिता दिनहाटा में ही तैनात थे। उसके बाद मदर टेरेसा के सेवा संस्थान निर्मल हृदय से भी जुड़ी रही। बाद में योग की शिक्षा ली और योग से लोगों को निरोग बनाने के अभियान में जुटी रहीं।

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15 वर्ष पूर्व पड़ी वक्त की मार

60 वर्षीय सर्वागिनी गांगुली पर वक्त की मार तब पड़ी जब दुर्गापुर स्टील प्लांट में कार्यरत पति सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। उनकी कमर टूट गई और उन्होंने विस्तर पकड़ लिया। पति 15 वर्षो से विस्तर पर ही हैं। पति की देखरेख के साथ ही सर्वागिनी बेसहारों की भी देखरेख करती हैं।

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सर्वागिनी दीदी और संयुक्ता मैडम का शुक्रिया अदा करने को मेरे पास शब्द नहीं हैं। यह जीवन उन्हीं का दिया हुआ है। यहां अपनों से ज्यादा प्यार व दुलार मिलता है। घर की कमी कभी नहीं खलती। हम सभी परिवार की तरह एक साथ यहां रहकर पढ़ाई भी कर रहे हैं।

-कमलेश मुंडा।


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