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पुणे में इंजीनियरों का हो रहा शोषण : पटवर्धन

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : ग्लोबलाइजेशन हुआ कि डी-ग्लोबलाइजेशन हुआ। हमारा औद्योगिक पि

By Edited By: Published: Sun, 04 Dec 2016 03:09 AM (IST)Updated: Sun, 04 Dec 2016 03:09 AM (IST)
पुणे में इंजीनियरों का हो रहा शोषण : पटवर्धन

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर :

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ग्लोबलाइजेशन हुआ कि डी-ग्लोबलाइजेशन हुआ। हमारा औद्योगिक परिवेश किस ओर जा रहा है। इससे लोगों का मूवमेंट कम हुआ, जबकि बाजार बढ़ गए। स्लोअर ग्रुप पैदा हुआ, वहीं कर्मचारियों की कटौती बड़े पैमाने पर हुई। आज हालात ऐसे हैं कि पुणे की कंपनियों में स्थायी कर्मचारियों से ज्यादा ट्रेनी हैं। सैकड़ों डिप्लोमा इंजीनियर 6-8 साल तक प्रशिक्षु के रूप में ही काम कर रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग 11,000 है।

ये बातें देश के विख्यात एक्जीक्यूटिव कोच व एचआर कंसल्टेंट विवेक पटवर्धन ने शनिवार को कहीं। एक्सएलआरआइ-जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में आयोजित दो दिवसीय एचआर-आइआर नेशनल कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पटवर्धन ने कहा कि 'डिजिटाइजेशन इन-पीपुल आउट' का सिद्धांत चल रहा है। प्रतिष्ठानों में उत्पादन बढ़ा, लेकिन कर्मचारी कम हो गए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रेमंड के सीइओ संजय बनर्जी का बयान आया था कि अगले तीन साल में उन्हें 10,000 कर्मचारियों की कटौती करनी है। 150 से ज्यादा स्टार्टअप शुरू होने से पहले बंद हो गए। पटवर्धन ने कहा कि आज हर आर्गेनाइजेशन में इनोवेशन की बात हो रही है। यह अच्छी बात है, लेकिन यह मानव श्रम की कीमत पर नहीं होना चाहिए। आज कंपनियों में सीनियर एक्जीक्यूटिव को सामान्य कर्मचारियों से 400 गुणा तक ज्यादा वेतन मिल रहा है। इतना असंतुलन क्यों है। इन परिस्थितियों में यूनियन की भूमिका भी बदली है, जो महत्वपूर्ण है। मुंबई की एक यूनियन को तो आइएसओ:9000 सर्टिफिकेट मिला है। यूनियनों ने भी उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता को स्वीकार किया, यह सकारात्मक है। कुल मिलाकर औद्योगिक परिदृश्य में तेजी से बदलाव हुआ, जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव मानव श्रम पर पड़ा।

इससे पूर्व 'डायनामिक्स ऑफ एचआर-आइआर : रि-एलाइनिंग स्किल्स, सिस्टम्स एंड प्रैक्टिसेस इन द फेस ऑफ ग्लोबलाइजेशन' विषयक सेमिनार में कोलकाता से आए सुबेश कुमार दास (डायरेकटर जेनरल, एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, प. बंगाल) ने एचआर (मानव संसाधन) प्रबंधन के इतिहास पर प्रकाश डाला। दास ने बताया कि एचआर की शुरुआत 18वीं सदी में हुई। हालांकि तब ज्यादातर कामगार कृषि या निर्माण के क्षेत्र में होते थे, जिनका एक सरदार होता था। प्रबंधन की ओर से सरदार ही मजदूरों से काम कराते थे, उनका वेतन भुगतान से लेकर सुविधाएं मुहैया कराते थे। इसी तरह पर्सनल मैनेजमेंट 19वीं सदी के अंत में आया, जब ग्लोबलाइजेशन का दौर शुरू हुआ। इसके आने के बाद कंपनियों-प्रतिष्ठानों में होड़ मच गई कि कैसे कर्मचारियों की संख्या घटाई जाए। आइटीसी, कोलकाता के प्रतिष्ठान में जहां 18,000 कर्मचारी थे, घटकर 2000 तक आ गए। सभी नन-कोर एक्टीविटी को आउटसोर्स कर दिया गया। कांट्रैक्ट लेबर की संख्या बढ़ी। शॉप फ्लोर में भी वीआरएस-इएसएस जैसी स्कीम आई। वहीं क्वालिटी सर्किल का कांसेप्ट आया। कुल मिलाकर इस दौर में क्वालिटी और प्रोडक्टीविटी पर जोर दिया गया। यूनियन की रणनीति भी बदली, जो महत्वपूर्ण रही। कर्मचारी और नियोक्ता के संबंधों पर काम होने लगा। इसमें जापान, अमेरिका समेत अन्य देशों के पैटर्न अपनाए गए, लेकिन अंत में भारतीय पैटर्न ही बेहतर माना गया।

वहीं टाटा स्टील के वाइस प्रेसीडेंट (एचआरएम) सुरेश दत्त त्रिपाठी ने एचआरएम या मानव संसाधन प्रबंधन को रिश्ता विकास प्रबंधन का रूप बताया। उन्होंने कहा कि इसमें प्रबंधन-कर्मचारी एक-दूसरे की क्षमता पहचानने और संवर्धित करने पर काम करना चाहिए। आज यूनियन भी बदल रही है। उनकी मांगें बदल रही हैं, वे भी संस्थान के विकास में योगदान करना चाहते हैं। आज कर्मचारियों का बोनस भी उत्पादकता पर निर्भर हो गया है।

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टेक्नोलॉजी से एचआर पर पड़ा प्रभाव

एचआर-आइआर कांफ्रेंस के दूसरे चरण में पैनल डिस्क्शन हुआ, जिसमें वक्ताओं ने 'चेंजेस इन टेक्नोलाजी एंड इट्स इफेक्ट्स ऑन एचआर' पर परिचर्चा हुई। एक्सएलआरआइ के को-आर्डिनेटर प्रोफेसर ग्लोरिसन आरबी चलिल की अध्यक्षता में हुए कार्यक्रम में पैनलिस्ट टाटा स्टील के चीफ (केपेबिलिटी डेवलपमेंट आफिसर) डॉ. शिवकुमार सिंह, स्पाइर टेक्नोलाजिस के सीएमओ नीरज सनन व एमएसपी स्टील एंड पावर लि. के वीपी-कारपोरेट एचआर एंड एडमिनिस्ट्रेशन जॉर्ज थॉमस ने अपने विचार रखे। सनन ने सिस्टम की खामियों को पहचानने पर जोर दिया, जबकि डॉ. शिवकुमार सिंह ने टाटा स्टील में अपनाए जा रहे 'रिवर्स मेंट¨रग' प्रोग्राम के बारे में बताया, जिसमें नए कर्मचारी पुराने कर्मचारियों का तकनीकी ज्ञान विकसित कर रहे हैं।

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टाटा स्टील में मैनेजमेंट ट्रेनी से सीख रहा मैनेजमेंट : त्रिपाठी

टाटा स्टील में मानव संसाधन प्रबंधन विभाग अनूठा प्रयोग कर रहा है। इसमें कंपनी का शीर्ष प्रबंधन मैनेजमेंट ट्रेनी से नवीनतम तकनीक व ज्ञान सीख रहा है। टाटा स्टील के वाइस प्रेसीडेंट (एचआरएम) सुरेश दत्त त्रिपाठी ने बताया कि हमने 16 मैनेजमेंट ट्रेनी चुने हैं, जो प्रबंधन के शीर्ष अधिकारियों को तकनीकी रूप से अपडेट करते हैं। इसमें फायदा यह होता है कि हम उनसे बेझिझक कुछ भी पूछ सकते हैं, जबकि सीनियर या बाहरी कंसल्टेंट से छोटी-मोटी बात पूछने में हिचकते हैं। यह मानव में स्वाभाविक गुण या दुर्गुण होता है। हम एक बात पूछते हैं, तो वे हमें पांच नई चीजें भी बता देते हैं। इससे हम जान पाते हैं कि हम प्रोडक्टिीविटी कैसे बढ़ा सकते हैं। प्रोडक्टीविटी बढ़ेगी, तो प्रोडक्ट का कॉस्ट कम होगा। हम व‌र्ल्ड मार्केट में लो प्राइस प्रोड्यूसर बने रहेंगे, तो हमेशा प्रोफिटेबल रहेंगे। इससे हम कर्मचारियों को ज्यादा बोनस-पैसा दे पाएंगे। तकनीक की बात पर त्रिपाठी ने कहा कि रोबोट का इस्तेमाल हम भी कर सकते हैं, लेकिन करेंगे नहीं। टाटा स्टील के लिए यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी उचित नहीं होगा। उन्होंने बताया कि भारत ही एक ऐसा देश है, जो जितना उत्पादन करता है, उतना खपत करने की भी क्षमता रखता है।


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