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1000 किलोग्राम मोबाइल फोन से 350 ग्राम सोना निकालना हुआ संभव

1000 किलोग्राम मोबाइल फोन के पीसीबी से लगभग 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है।

By Edited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 07:05 AM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 03:20 PM (IST)
1000 किलोग्राम मोबाइल फोन से 350 ग्राम सोना निकालना हुआ संभव
1000 किलोग्राम मोबाइल फोन से 350 ग्राम सोना निकालना हुआ संभव

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : लगातार बदल रही तकनीक ओर उस हिसाब से बदलते तकनीकी उपकरणों के चलते इलेक्ट्रॉनिक्स वेस्ट (ई कचरा) की समस्या अपने देश में भयावह होती जा रही है। देश के कम ही लोग इस तथ्य को जानते होंगे कि ई कचरा सेहत के लिए कितना नुकसानदेह है। कैंसर सहित कई अज्ञात बीमारियों के बढ़ने का एक बड़ा कारण भी है।

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इस समस्या को चुनौती के रूप में लेनेवाले एनएमएल जमशेदपुर के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे लगातार बढ़ते ई कचरे की समस्या से न केवल निजात मिलेगी बल्कि उनका पुनर्चक्रण (रिसाइक्लिंग) कर सोना सहित उन तमाम उपयोगी धातुओं का उत्पादन किया जा सकेगा जो भारत में नहीं पाई जाती या बहुत कम मिलती हैं जरूरत के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत भारत सरकार के सहयोग से एनएमएल परिसर में पायलट प्रोजेक्ट के तहत अर्बन ओर रिसाइक्लिंग सेंटर तैयार किया गया है। शनिवार को सीएसआइआर के महानिदेशक व डीएसआइआर के सचिव डॉ. शेखर सी मांडे ने अर्बन ओर रिसाइक्लिंग सेंटर का उद्घाटन किया। ऐसा अनुमान है कि 1000 किलोग्राम मोबाइल फोन के पीसीबी से लगभग 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है।

केंद्र सरकार ने पायलट प्रोजेक्ट के दिए पांच करोड़

एनमएल स्थित रिसाक्लिंग सेंटर स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से फिलहाल पांच करोड़ रुपये दिए हैं। पायलट प्रोजेक्ट के सफलतापूर्वक काम करने पर और 15 करोड़ दिए जाएंगे।

क्या है ई कचरा

ई-कचरे अर्थात इलेक्ट्रोनिक कचरे के बारे में कहीं-कहीं बिल्कुल भी जानकारी नहीं है। आम जीवन व जनस्वास्थ्य के लिए खतरनाक बन चुका ई-कचरा आइटी कंपनियों, विद्यालयों और हमारे घरों से निकालने वाला वह कबाड़ है, जो तकनीक में आ रहे परिवर्तनों एवं आर्थिक उन्नति के कारण उपयोग में न होकर कचरे के रूप में इकट्ठा होता जा रहा है। जैसे पहले बड़े आकार के कंप्यूटर, मॉनीटर आते थे, अब उनका स्थान स्लिम और समतल स्क्रीन वाले छोटे मॉनीटरों ने ले लिया है। इस तरह पुरानी शैली के कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टेलीविजन, इलेक्ट्रोनिक खिलौने एवं अन्य उपकरण चलन से बाहर होकर कचरा बन चुके हैं। ये सभी चीजें ई-कचरे की श्रेणी में आती हैं। इन इलेक्ट्रोनिक सामानों को कबाड़ में फेंकने से न केवल उनमे मौजूद 38 अलग-अलग प्रकार के रासायनिक तत्व नुकसान पहुंचाते हैं पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत घातक हैं।

पहली बार देश में ई कचरे का पुनर्चक्रण संभव

भारत में राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला पहला अनुसंधान संगठन है जो ई-कचरा के पुनर्चक्रण के उद्योग उन्मुख विकास के लिए काम कर रहा है ताकि वह शून्य अपशिष्ट अवधारणा को पूरा किया जा सके। हानिकारक प्रभाव से बचाने और ऊर्जा तथा प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण करने के लिए, लौहनगरी स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने कबाड़ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से कीमती पदाथरें के निष्कर्षण हेतु संभव प्रौद्योगिकियों को सफलतापूर्वक विकसित किया है।

एइएस प्लांट में बनेगा एमोरफस स्टील, ट्रांसफारमर के लिए नहीं करना होगा आयात

नीलडीह स्थित एमोरफस इलेक्ट्रिकल स्टील (एइएस) के पायलट प्लांट का उद्घाटन भी सीएसआइआर के महानिदेशक डॉ. शेखर सी मांडे ने किया। यहां एक नई तरह की स्टील एमोरफस का उत्पादन होगा। एमोरफस एक मैग्नेटिक मैटीरियल है जिसका उपयोग खासतौर से बिजली ट्रांसफारमर में किया जाता है। भारत में बननेवाले ट्रांसफारमर में अबतक सिलिकॉन धातु का इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि यहां एमोरफस की उपलब्धता नहीं थी। उच्च गुणवत्ता वाले एमोरफस को सिलिकॉन की जगह इस्तेमाल किया जा सकेगा।


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