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नौ गांव, 50 हजार लोग और सड़क के नाम पर पतली डोर का ही सहारा

झारखंड के नौ गांवों के लोग जिस परिस्थिति से दो-चार हैं देखकर आपकी आंखें फटी रह जाएंगी। करीब 50 हजार लोग डोर को पकड़कर डिब्बों से बनी नाव पर नदी पार करते हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 02:53 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 02:53 PM (IST)
नौ गांव, 50 हजार लोग और सड़क के नाम पर पतली डोर का ही सहारा
नौ गांव, 50 हजार लोग और सड़क के नाम पर पतली डोर का ही सहारा

जमशेदपुर [विश्वजीत भट्ट]। नौ गांवों के लगभग 50 हजार लोगों को एक पतली डोर ने 28 साल से प्रखंड सह अंचल मुख्यालय से जोड़ रखा है। रोड के विकल्प वाली डोर जोखिम भरी है। जान जोखिम में डालने वालों में हाई स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे के साथ गांव के लोग शामिल हैं। बीमारी की हालत में अपना इलाज कराने के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र आने वाले लोग भी इसी डोर का उपयोग करते हैं। दरअसल डोर को पकड़कर डिब्बों से बनी नाव पर नदी पार करते हैं।

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यह स्थिति है सरायकेला खरसावां जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी और चांडिल अनुमंडल मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर सीमा गांवों, लावा, पुराना लावा, बोढ़ाडीह, डुमरीटांड़, कल्याणपुर, किस्टोपुर, तिलाई टांड़, अंडा और हुटू गांव की। ये सभी गांव चांडिल की ओर से स्वर्णरेखा नदी के उसपार स्थित हैं। इस डोर के उपयोग से बचने के लिए लोगों को 10 किमी अतिरिक्त चलने की सजा भुगतनी पड़ेगी। ये सजा भोगते-भोगते, हर रोज जान खतरे में डालते-डालते लोग ऊब चुके हैं। इन्हें पिछले 28 वर्षो से सीमा गांव को स्वर्णरेखा नदी के दूसरे छोर पर स्थित अंडा मार्ग से जोड़ने के लिए एक अदद पुल का इंतजार है।

चांडिल डैम में जल भंडारण के कारण डूब गया पुल

लगभग 28 साल पुराना दर्द अब नासूर बन गया है। ये वही लोग हैं जो 1990 से पहले रघुनाथपुर-अंडा मार्ग में चलने वाली बस से बड़े आराम से रघुनाथपुर सहित जमशेदपुर तक पहुंच जाते थे। तब सीमा गांव को अंडा मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णरेखा नदी पर कल्वर्ट वाला लगभग सात फीट ऊंचा पुल था। 1990 में जब चांडिल डैम में जल भंडारण शुरू हुआ तो पुल डूब गया। उसके बाद से लोग अपने प्रखंड, अनुमंडल और जिला मुख्यालय से लगभग कट से गए हैं। तब रघुनाथपुर प्रखंड मुख्यालय से अंडा गांव की दूरी लगभग 10 किमी होती थी। अब मजबूरी में अंडा, कल्याणपुर, धातकीडीह, काशीडीह मोड़, डुंगरी टांड़, पहाड़धार, हेवेन, मुरुगडीह होते हुए रघुनाथपुर आने के कारण यह दूरी लगभग 20 किमी हो गई है। साल के आठ महीने इन तमाम गांवों के लोग पतली रस्सी के सहारे डब्बा नाव से जान हथेली पर लेकर स्वर्णरेखा नदी तो पार कर लेते हैं, लेकिन बरसात के चार महीने यह सहारा भी छिन जाता है।

1989 तक टाटा से दुलमी तक चलती थी बस 

 रघुनाथपुर से सीमा गांव, अंडा होते हुए दुलमी तक बस चलती थी। बस परिचालन 1989 में उस समय बंद हो गया जब स्वर्णरेखा डैम में जल भंडारण होने लगा और पुल डूब गया। अभी सीमा के स्वर्णरेखा नदी के छोर और स्वर्णरेखा के दूसरी ओर अंडा तक पिच सड़क है।

कभी भी हादसे में तब्दील हो सकता है ये खतरा 

 अभी पिछले शनिवार को शिक्षक हरेकृष्ण सिंह मुंडा नदी के दोनों छोर बंधी पतली रस्सी खींचते हुए और डब्बा नाव पर अपनी साइकिल लादे हुए सीमा गांव के छोर पर उतरे। उन्हें रघुनाथपुर स्थित बीआरसी भवन में कार्यालय संबंधी कार्य था। उन्होंने बताया कि नाव प्लास्टिक के डिब्बों से बनी है और दोनों ओर खूंटा गाड़ कर रस्सी बांधी गई है। डिब्बे कभी बिखर सकते हैं और खूंटा कभी भी उखड़ सकता है।

2008 में पुल के लिए हुआ था सर्वे, रिपोर्ट गायब

2008 में स्वर्णरेखा नदी पर पुल बनाने की अनुशंसा हुई थी। विभाग ने सर्वे भी किया था। तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री सुदेश महतो के ऑफिस से यह सर्वे रिपोर्ट और पुल निर्माण की फाइल कब और कैसे गुम हो गई, यह तो विभाग ही जाने।


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