मनरेगा के अर्थशास्त्र से गांवों का 'टीवी कनेक्शन'
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : एक गरीब किसान। सुखाड़ में बेरोजगार। परिवार कैसे चलाए इसकी चिंता। इस बीच म
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : एक गरीब किसान। सुखाड़ में बेरोजगार। परिवार कैसे चलाए इसकी चिंता। इस बीच मनरेगा ने 100 दिन का रोजगार दिया। परिवार की क्रय शक्ति बढ़ी। उसके घर टीवी आया। टीवी से जागरूकता बढ़ी। सुदूर गांव के उस किसान का बेटा आज आइएएस बनने तक के सपने बुन पा रहा है और कुछ किसान के बेटो ने तो इस सपने को साकार तक कर लिया। यह है मनरेगा का पोजिटिव इम्पैक्ट और 10 साल पुरानी इस योजना को देखने का सकारात्मक दृष्टिकोण। हालांकि इस दृष्टिकोण से देश के कई नामी अर्थशास्त्री इत्तेफाक नहीं रखते। सवाल करते हैं कि क्या वाकई मनरेगा निर्धनता निवारण का सफल माध्यम है? क्या इस योजना को अब समाप्त नहीं कर देना चाहिए? देश के 28 अर्थशास्त्रियों, जिन्होंने प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मनरेगा को भविष्य में भी जारी रखने की गुजारिश की है, का समर्थन करते हुए रमेश चंद्र नंदराजोग जवाब देते हैं-'बिल्कुल नहीं।' टाटा स्टील के वाइस प्रेसीडेंट (फाइनेंस) रह चुके रमेश चंद्र नंदराजोग सोमवार को 'जागरण विमर्श' में विचार व्यक्त कर रहे थे। दैनिक जागरण सभागार में आयोजित जागरण विमर्श में मनरेगा को निर्धनता निवारण का सफल माध्यम बताते हुए नंदराजोग ने कहा कि आज गांव की बदली तस्वीर इस योजना की सफलता की तस्दीक करती है।
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जरूरत : मॉनिट¨रग सिस्टम में सुधार
गांवों से निर्धनता समाप्त करने के लिए यह कारगर योजना तो है ही, लेकिन इसकी पारदर्शिता कई बार सवालों में रहती है। जो रकम ग्रामीणों तक पहुंचनी चाहिए उन्हें वह कई बार नहीं मिल पाती। ऐसा मॉनिट¨रग कमेटी के सशक्त व स्पष्ट नहीं होने के कारण होता है। मॉनिट¨रग कमेटी दो से तीन सदस्यों की हो और जिम्मेदारी स्पष्ट हो तो इसे पारदर्शी व भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जा सकता है। इसके भी कार्यान्वयन में दिक्कत है तो इसकी रफ्तार भी उम्मीद से कम।
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असर : देश में ढांचागत बदलाव शुरू
मनरेगा का ही असर है कि देश में ढांचागत बदलाव शुरू हो गया। गांवों में इससे हो रहे बदलाव दिख भी रहे हैं। आज गांवों तक सेटेलाइट टेलीविजन व मोबाइल फोन की पहुंच इसी का असर है, क्योंकि इस योजना से ग्रामीणों की क्रय शक्ति बढ़ी है और उनके पास कुछ पैसा बच रहा है। ग्रामीण जागरूक भी हो रहे हैं नतीजा गांवों से निकल रही प्रतिभाओं में दिख रहा है। इससे ग्रामीण कुश बन रहे हैं और वे बेहतर रोजगार के लिए तैयार हो रहे हैं।
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परिचय : रमेश चंद्र नंदराजोग
टाटा स्टील में 1999 में बतौर वाइस प्रेसीडेंट (फाइनेंस) सेवा दे चुके रमेश चंद्र नरंदराजोग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 1966 के बीएससी इंजीनिय¨रग के रैंक होल्डर रह चुके हैं। एक्सएलआरआइ से 1975 में बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई भी कर चुके हैं तो एसएनटीजे से स्टील मेकिंग में पोस्ट ग्रेजुएट कर चुके नंदराजोग ने 1966 में ही बतौर ग्रेजुएट ट्रेनी टाटा स्टील ज्वाइन की। सर्किट हाउस एरिया में रह रहे अब एक्सएलआरआइ में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में पढ़ाते हैं तो वर्तमान में कोलकाता के नियो मेटालिक्स के बोर्ड मेंबर भी हैं।
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प्रश्न उत्तर
प्र. मनरेगा में भ्रष्टाचार रोकने के लिए क्या होना चाहिए?
उ. मॉनिट¨रग कमेटी को दुरुस्त करने की जरूरत है। निर्धारित जिम्मेदारी बांटी जाए और मॉनिट¨रग कमेटी छोटी की जाए।
प्र. क्या मनरेगा से कृषि कार्य के लिए मजदूर मिलना मुश्किल हो रहा है?
उ. मैं ऐसा नहीं मानता। इससे सिर्फ कृषि पर निर्भर रहने वाले लोग कुशल बन रहे हैं।
प्र. क्या मनरेगा के तहत स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए?।
उ. बिल्कुल, बल्कि कई ट्रेनिंग इस योजना के तहत चलाए भी जा रहे, जिससे महिलाएं भी कुशल बन रही हैं।
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मनरेगा : दो फरवरी 06 को शुरू
महात्मा गाधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (मनरेगा) की शुरुआत 2 फरवरी, 2006 को ग्रामीण क्षेत्रों में की गई। इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इसके तहत हर परिवार के एक वयस्क सदस्य को एक साल में कम से कम 100 दिनों का रोजगार दिए जाने की गारंटी है। इसके तहत प्रतिदिन 220 रुपये की सर्वाधिक न्यूनतम मजदूरी पर ग्रामीणों को अकुशल मजदूरी कराई जाती है। इसका एक लक्ष्य टिकाऊ परिसंपत्तियों का सृजन करना भी है।
रोचक तथ्य
- दो फरवरी 2016 को मनरेगा ने कुल 10 साल पूरे किये।
- पहले चरण में मनरेगा को देश के 200 जिलों में लागू।
- दूसरे चरण में वर्ष 2007-08 में 130 और जिले शामिल।
- एक अप्रैल 2008 से इसका विस्तार पुरे देश में किया गया।
- मनरेगा पर अभी तक 3.14 लाख करोड़ रुपए खर्च किये।
- 3.14 लाख का 71 फीसदी रकम मजदूरी के भुगतान में दिया।
- मनरेगा रोजगार उपलब्ध कराने वाली दुनिया की सबसे बड़ी योजना।
- इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन से देश में गरीबी 32 प्रतिशत घटी।
- इससे एक करोड़ 40 लाख लोग गरीबी की चपेट में आने से बचे हैं।