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'महात्मा गांधी के चश्मे की नहीं नजरिये की जरूरत'

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : गाधी शांति प्रतिष्ठान व जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज की ओर से शुक्रवार को कॉलेज

By Edited By: Published: Sat, 03 Oct 2015 01:43 PM (IST)Updated: Sat, 03 Oct 2015 01:43 PM (IST)
'महात्मा गांधी के चश्मे की नहीं नजरिये की जरूरत'

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : गाधी शांति प्रतिष्ठान व जमशेदपुर वीमेंस कॉलेज की ओर से शुक्रवार को कॉलेज परिसर सभागार में महात्मा गाधी की 146 वीं जयंती मनायी गई। इस अवसर पर सर्व प्रथम महात्मा गाधी एवं लाल बहादुर शास्त्री के चित्र पर माल्यार्पण किया गया तथा उपस्थित लोगों एवं छात्राओं ने पुष्पाजलि अर्पित की। समारोह का उद्घाटन कोल्हान विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति डा. शुक्ला मोहंती ने किया।

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इस अवसर पर आयोजित सभा में राजनीति विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ. पूर्णिमा कुमार ने कहा कि गाधी कर्म - सिद्धात के जनक हैं। वे जो सोचते थे, उसे पहले खुद अमल में लाते थे, तब उसे सूत्र के रूप में समाज के सामने पेश करते थे। इसलिए उनकी कही गई बातें असंदिग्ध रूप से प्रामाणिक हुआ करती थी। सभा में डा. मोहंती ने कहा कि सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। आज के दौर में गाधी के चश्मे का भी बाजारीकरण हो गया है जबकि दुनिया को गाधी के नजरिये की जरूरत है। गाधी को नोट पर नहीं बल्कि अपने दिलों में उतारने की आवश्यकता है। उन्होंने कस्तूरबा गाधी बालिका विद्यालयों की दुर्गति पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि इसके संचालन में ईमानदार बुद्धिजीवियों एवं गाधीजनों को भागीदार बनाना चाहिए।

गाधीवादी विद्वान प्रो. जगदीश मिश्र ने कहा कि सीरिया में आतंकवाद का कहर ढाया जा रहा है। अफरा-तफरी मची हुई है और लाखों लोग शरणार्थी हो गये हैं। यह कौन सा धर्म है, पूछने का समय आ गया है। आतंकवाद का आधार न तो धर्म है, न देश और न ही कोई वैचारिक दर्शन। आतंकवाद मानवता के खिलाफ एक जघन्य अपराध है।

गाधी शान्ति प्रतिष्ठान के संयोजक अरविंद अंजुम ने कहा कि जहा लाल बहादुर शास्त्री सादगी और साहस के प्रतीक हैं तो वहीं गाधी व्यापकता और बदलाव के। उन्होंने रेखाकित किया कि गाधी पहले ईश्वर सत्य है, कहते थे पर बाद में उन्होंने कहा कि सत्य ही ईश्वर है। गाधी ने धर्मनिष्ठा से सत्यनिष्ठा को सर्वोपरि माना।

सभा के प्रारम्भ एवं अंत में गाधी जी के प्रिय भजन गाये गये। सभा में प्रो. मुदिता, प्रो. संध्या, दिनेश शर्मा, सुख चंद झा, राजश्री, मंथन, अशोक, आलोक कुमार, जवाहर लाल शर्मा, आसुतोष, ओमप्रकाश, संतोष, अंकित, मदन मोहन, कुमार दिलीप, जगत सहित बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित थीं।


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