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दो रुपये में सपने बेच ठगते हजारों

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : मजदूरों के शहर लौहनगरी के फुटपाथों पर सपने बिकते हैं। नौकरियों के सपने।

By Edited By: Published: Tue, 19 May 2015 02:41 AM (IST)Updated: Tue, 19 May 2015 02:41 AM (IST)
दो रुपये में सपने बेच ठगते हजारों

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : मजदूरों के शहर लौहनगरी के फुटपाथों पर सपने बिकते हैं। नौकरियों के सपने। छात्रवृत्ति के सपने। बेरोजगार युवा दो रुपये में इन सपनों का फॉर्म खरीदते हैं, मगर धीरे-धीरे ऐसे फंसते हैं कि हजारों-लाखों की चपत लग जाती है। छात्रों को अधिकतर मामलों में हासिल कुछ नहीं होता मगर फॉर्म बेचकर शातिर करोड़ों रुपये कमा लेते हैं। युवाओं के सपने बस सपने ही रह जाते हैं। ठग बेरोजगारी और युवाओं की लापरवाही का भरपूर लाभ उठाते हैं।

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पिछले दिनों मर्चेट नेवी के नाम पर ठगी का मामला कुछ ऐसा ही था। रिजल्ट के मौसम में ऐसे फर्जी आवेदनों की संख्या और बढ़ जाती है। निर्धन छात्रों को भी छात्रवृत्ति देने के नाम से ठगा जाता है। ऐसे में जरूरी है सपनों के फॉर्म खरीदने से पहले उसकी जमीनी हकीकत समझने की।

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असली के साथ बिकते हैं फर्जी फॉर्म

शहर के किसी भी चौक-चौराहे पर खड़े जाइए। मर्चेट नेवी, छात्रवृत्ति योजनाएं, विभिन्न संगठनों में नियुक्ति, गार्ड, सुपरवाइजर की बहाली जैसे फॉर्म बड़ी मात्रा में देखने को मिल जाएंगे। इसमें असली फॉर्मो के साथ कई फर्जी फॉर्म भी शामिल होते हैं। फॉर्म इस खूबी से छापा जाता है कि पढ़े-लिखे बेरोजगार भी असली और नकली का फर्क नहीं पकड़ पाते। फॉर्म भरकर भेजते हैं और मोटी रकम गवा देते हैं। जब तक सच्चाई सामने आती है, तब तक संस्था के कार्यालय में ताला लटक चुका होता है। लाखों रुपये डकार चुके संचालक का नामोनिशान तक नहीं मिलता। ज्यादातर मामलों में ठगी के शिकार हुए लोग एफआइआर तक कराने में दिलचस्पी नहीं लेते। लिखित शिकायत नहीं होने के कारण पुलिस भी गोरखधंधा चलाने वालों को पकड़ने के लिए हाथ-पाव नहीं मारती। नतीजतन, पता-ठिकाना बदलकर ठग अपना कारोबार जारी रखते हैं।

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ट्रेनिंग के नाम पर वसूलते हैं पैसे

संचालक फॉर्म जाम कराने के बाद आवेदकों की परीक्षा भी लेते हैं। इसके लिए निजी स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाया जाता है। इसके बाद संस्था की वेबसाइट पर रिजल्ट प्रकाशित किया जाता है। अक्सर सभी आवेदकों को पास कर दिया जाता है। फिर उन्हें साक्षात्कार के लिए किसी होटल में बुलाते हैं। वहा उनसे ट्रेनिंग के नाम पर हजारों में फीस मागी जाती है। अधिकाश बेरोजगार युवा पैसे देने के लिए तैयार हो जाते हैं। मोटी रकम वसूलने के बाद संचालक उन्हें टहलाना शुरू कर देता है। जब आवेदक पैसे लौटाने का दबाव बनाने लगते हैं तो संस्था के दफ्तर पर ताला जड़ा मिलता है। लौहनगरी में इस तरह के मामले पहले भी कई थानों में दर्ज हुए हैं। साकची थाने में तो इस तरह के चार मामले दर्ज हैं। पुलिस की मानें तो ठग अपने शिकार के पास ऐसा कोई सुराग नहीं छोड़ते, जिससे वे कानून की गिरफ्त में आ सकें। ठग कंपनी के कागजात फर्जी आइडी पर बनवाते हैं, जिससे उन तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।

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कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं टारगेट

ठगों के टारगेट पर अक्सर कम पढ़े-लिखे और गाव के लोग होते हैं। वे एजेंटों से आग्रह करते हैं कि उनका फॉर्म शहर के सभी स्टॉलों पर मिले न मिले, लेकिन सुदूर इलाकों और गावों तक जरूर उपलब्ध हो ताकि वहा रहने वाले जब उनके कार्यालय की चमक-धमक देखें तो कोई सवाल न करें। बस शहर में नौकरी करने की लालसा बलवती रहे।

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50 पैसे छपाई चार्ज, 50 पैसे वितरण के

दफ्तर खोलने के बाद ठग फॉर्म की छपाई करने वाले एजेंटों से संपर्क करते हैं। एजेंट ऐसा हो जो फॉर्म छाप कर तमाम शहरों में उपलब्ध करा दे। शहर में दो-तीन नामी फॉर्म की छपाई कर बिक्री करने वाले एजेंट हैं। अक्सर वो 50 पैसे प्रति फॉर्म की छपाई और 50 पैसे प्रति फॉर्म वितरण की दर से संस्थाओं के संचालकों से वसूल करते हैं।

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पोस्टऑफिस में लेते हैं बॉक्स

फॉर्म के साथ आवेदकों से 100 से लेकर 500 रुपये तक का डिमाड ड्राफ्ट मंगवाया जाता है। इसके अलावा दो लिफाफे जिस पर 5-5 रुपये के स्टाप लगे हों। कुछ शातिर लोग संस्था के कार्यालय में फॉर्म मंगवाने के बजाए फर्जी तरीके से पोस्टऑफिस में बॉक्स ले लेते हैं और फॉर्म उसी में मंगवाते हैं।

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ऐसे बनाते हैं फर्जी संगठन

ठग फर्जी पहचान पत्र और आवास प्रमाण पत्र देकर सरकारी संगठनों से मिलते-जुलते नाम पर लेबर कोर्ट अथवा किसी सरकारी संगठन से निबंधन करवा लेते हैं। इसके बाद शहर के पॉश इलाके के किसी चर्चित इमारत में दो-तीन कमरे के फ्लैट में पूरे ताम-झाम के साथ दफ्तर खोल देते हैं। फर्जी पहचान पत्र पर मोबाइल कंपनियों से सिम कार्ड खरीदते हैं। संस्थान के नाम से आकर्षक वेबसाइट बनवाते हैं। सोशल साइट्स पर भी संस्था के नाम से पेज बनवा लेते हैं, ताकि अधिक युवा उनके झासे में आ जाएं। आकर्षण के लिए दफ्तर में एक महिला रिसेप्शनिस्ट और एसी जरूर लगवाते हैं।

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रिझाने को फॉर्म में इनका जिक्र

-बड़े अक्षरों में संस्था का नाम

-संस्था के नाम के नीचे राज्य अथवा केंद्र सरकार से मान्यता प्राप्त लिखना

-क्लासिफाइड कॉलम में दिए गए विज्ञापन की संख्या

-वेबसाइट का पता और फोन नंबर

-आवेदन की अंतिम तिथि के सामने परीक्षा की तिथि


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