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हर जोखिम को बौना बनाया शकील ने

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : हमारा मन बड़ा ही अजीब होता है। वह किसी भी परिस्थिति को लेकर अलग-अलग तर

By Edited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 01:05 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 04:38 AM (IST)
हर जोखिम को बौना बनाया शकील ने

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर :

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हमारा मन बड़ा ही अजीब होता है। वह किसी भी परिस्थिति को लेकर अलग-अलग तरह के विचार सामने रख देता है। इनमें से कई विचार जोखिम भरे रहते हैं। सफल व्यक्ति वही होता है जो इस तरह के विचारों को भी ध्यान में रखकर आगे बढ़ता है। वैसे जोखिम को उठाने की हिम्मत करना प्रत्येक के वश की बात नहीं है। लेकिन ये हिम्मत गोलमुरी के शाहिद शकील ने की। उनकी राह में कई बार असफलता तो कई बार निराशा हाथ लगी लेकिन असफलताओं से सीखकर वे आगे बढ़े और आज जमशेदपुर के कारोबारी जगत में उनकी अलग पहचान है।

शाहिद शकील के दादाजी 1925 के आसपास प्रतापगढ़ से जमशेदपुर आए। तब जमशेदपुर शहर बस ही रहा था। टिनप्लेट में ड्राइवर का काम किया और कारोबार जगत में अपनी अलग पहचान के लिए भी प्रयास जारी रखा। अंग्रेजों के जमाने में दो ट्रक से ट्रांसपोर्ट का बिजनेस शुरू किया। चार बेटे इजरायल खान, एमजे खान, अब्दुल मजीद खान व रहमत खान को पाला-पोसा। चारों बेटों ने शुरुआत में नौकरी की। टाटा मोटर्स से सेवानिवृत्त रहमत खान नौकरी के अलावा ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में भी भाग्य आजमाते रहे लेकिन उनको यह कारोबार नहीं भाया और दूध का व्यापार शुरू कर दिया। टिनप्लेट अस्पताल में दूध की सप्लाई होती रही। 1973 में टुइलाडुंगरी में छोटा सा मकान खरीदा। बेटे शाहिद शकील, अरशद परवेज खान व बिटिया शाहिदा यास्मीन को अच्छी शिक्षा दी। पेशे से फुटबॉलर शाहिद शकील ने शुरू से ही जोखिम लिया और उन्हें यह जज्बा खेल से मिला था। एक दिन शकील ने पिता रहमत खान को होटल व्यवसाय की ओर अपने रुझान के बारे में बताया तो पिताजी उनके इस विचार से सहमत नहीं दिखे। शकील ने उन्हें समझाया। कहा-कोई न कोई काम हर किसी को पहले ही करना पड़ता है। शुरुआत में अब्दुल बारी कॉलेज के पास एसटीडी व जेरॉक्स की दुकान खोली। शकील के विश्वास के आगे अब्बा भी नतमस्तक हो गए। 25 हजार रुपये में साकची सरकार बिल्डिंग में दिल्ली दरबार नाम से होटल खोला गया। मेहनत और हिम्मत रंग लाई और होटल चल पड़ा। दिल्ली दरबार अब वृहद रूप ले रहा था। बिष्टुपुर में सप्लाई सेंटर खोला गया। शकील की खासियत यह है कि हर नये काम को चुनौती के रूप में लेते हैं। फिर होटल व्यवसाय से हटकर मॉल कल्चर में हाथ आजमाया। दिल्ली दरबार के बगल में पार्टनरशिप में शॉपर्स स्क्वायर खोला। झारखंड में पहली बार डी डमास ज्वैलरी का शोरूम खोला। यह भी अलग धंधा था, लेकिन शकील व उनके भाई अरशद परवेज खान की कारोबारी सूझबूझ ने सफलता की राह दिखा दी। उधर, होटल व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने दस्तर खान नामक दुकान खोली जो उच्च वर्गीय लोगों के लिए है। हाल ही में दिल्ली दरबार की एक नई शाखा बिष्टुपुर में खोली गई। शकील जिस भी व्यवसाय में हाथ लगाते हैं, सोना उगलता है। कभी पिता रहमत खान ने कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में भाग्य आजमाया था। बेटे ने पिता की हसरत पूरी करने के लिए इस क्षेत्र में कोशिश की और आज मानगो में मुगल गार्डेन जैसी बिल्डिंग खड़ी है।


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