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एक मुट्ठी चावल से फैला रहे उजियारा

भूदेव चंद्र मार्डी, डुमरिया : आज समाज में ऐसे भी लोग हैं जो अपने समाज को शिक्षित करने का बीड़ा उठाए ह

By Edited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 01:09 AM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 01:09 AM (IST)
एक मुट्ठी चावल से फैला रहे उजियारा

भूदेव चंद्र मार्डी, डुमरिया : आज समाज में ऐसे भी लोग हैं जो अपने समाज को शिक्षित करने का बीड़ा उठाए हुए हैं। समाज को सुशिक्षित करने के लिए वे नि:स्वार्थ भाव से अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। ऐसी ही एक संस्था है जिसके बैनर तले नक्सल प्रभावित क्षेत्र पूर्वी सिंहभूम के डुमरिया प्रखंड के भागाबांधी में काम कर रही है। यह कोई नामी गिरामी संस्था नहीं बल्कि एक ऐसी संस्था है जो किसी तरह विद्यालय सरना धर्मावलंबियों के सहयोग से चला रही है। इसका नाम है ऑल इंडिया सरना धर्म बिंदु चांदान आवासीय उच्च विद्यालय समिति। आवासीय होने के कारण यहां भोजन-पानी की सबसे बड़ी समस्या है। इस विद्यालय के बच्चों के लिए भोजन में सहयोग के लिए सरना धर्मावलंबी को मानने वाले आदिवासी लोग विद्यालय के लिए एक-एक मुट्ठी चावल देते हैं। यही चावल संग्रहित कर छात्रावास में आता है। अभिभावक भी चावल देते हैं और उसी से विद्यालय चलता है। यही इस विद्यालय की मुख्य आय है, इसी से खाना भी बनता है। यहां पूरी तरह से झारखंड बोर्ड के नियमानुसार पढ़ाई होती है। इसमें काम करने वाले शिक्षक किसी तरह की कोई राशि नहीं लेते हैं। मात्र सेवा भाव से ही यह विद्यालय इस क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। यहां के बच्चे भी शिक्षकों के पठन कार्य में पूर्ण सहयोग करते हैं।

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2001 में हुई थी विद्यालय की स्थापना

समिति के सौजन्य से डुमरिया के भागाबांधी में वर्ष 2001 में बिदु चांदान आवासीय उच्च विद्यालय की स्थापना की गई थी। उस समय यहां 60 बच्चे थे। आज 250 बच्चे नामांकित है। इस विद्यालय से अब तक छह बैच मैट्रिक की परीक्षा दे चुके हैं। इस विद्यालय को कोई सरकारी सहयोग नहीं मिलता है। आदिवासी छात्र होते हुए भी यहां पढ़ने वाले छात्रों को कोई छात्रवृत्ति नहीं मिलती है। इस कारण यहां के छात्र मैट्रिक की परीक्षा मुसाबनी स्थित गिरीश चंद्र झूरो देवी उच्च विद्यालय से देते हैं। यहां प्रवेश से लेकर दसवीं तक की पढ़ाई होती है।

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दो जर्जर सामुदायिक भवन में चलता है स्कूल

सबसे आश्चर्य की बात है कि यह विद्यालय सरकारी रूप से जर्जर हो चुके दो सामुदायिक भवनों में चलता है। पूर्व सांसद स्व. सुनील महतो जब सांसद थे तो उन्होंने अपनी निधि से एक कमरे का हॉल बनवा दिया था। इसमें कुछ बच्चे वहां रहते हैं। झोपड़ी में खाना बनता है। यहां के शिक्षकों व अभिभावकों ने मिलकर यहां विद्यालय में एक पत्तल बनाने की मशीन लगाई है। जिससे पत्तल बनाकर उसी पत्तल में यहां के बच्चें खाना खाते हैं तथा शिक्षा ग्रहण करते हैं।

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साक्षर नहीं शिक्षित बनाना लक्ष्य : शिक्षक

डुमरिया के भागाबांधी स्थित बिदु चांदान आवासीय उच्च विद्यालय के शिक्षक एक तरफ जहां नि:स्वार्थ व निश्शुल्क पढ़ाते हैं। वहीं दूसरी तरफ इन शिक्षकों का लक्ष्य भी अलग है। शिक्षक सिमाल हेम्ब्रम प्राचार्य, उदय मुर्मू ए, उदय मुर्मू बी, ठाकुरदास मुर्मू, मानसिंह हांसदा, रुक्मिणी हेम्ब्रम, भोगला मुर्मू, राहुल मार्डी, दुलाल सोरेन और कारु मुर्मू का कहना है कि हम यहां बच्चों को संस्कार से लेकर किताबी पढ़ाई तक का ज्ञान देते हैं। हमारा लक्ष्य बच्चों को साक्षर नहीं बल्कि शिक्षित करना है।

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-विद्यालय सरना धर्मावलंबियों के सहयोग से चलता है। इस सभी परिवार के सदस्य एक मुट्ठी चावल प्रदान करते हैं। हम उसे संग्रहित कर लाते हैं। इसी से बच्चों को खाना खिलाया जाता है। सरकार की और से कोई सहयोग नहीं मिलता है। -अंपा मुर्मू, अध्यक्ष, ऑल इंडिया सरना धर्म बिदु चांदान आवासीय उच्च विद्यालय समिति। फोटो : 3


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