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यहां सादगी से हो रही दुर्गापूजा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आज जहां चारों ओर दुर्गापूजा में आकर्षक पंडाल की धूम मची है, वहीं एक स्था

By Edited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 12:56 PM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 12:56 PM (IST)
यहां सादगी से हो रही दुर्गापूजा

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आज जहां चारों ओर दुर्गापूजा में आकर्षक पंडाल की धूम मची है, वहीं एक स्थान है ऐसा भी जहां सादगी से दुर्गोत्सव मनाया जा रहा है। बिष्टुपुर स्थित रामकृष्ण मिशन में देवी दुर्गा की आकर्षक प्रतिमा तो स्थापित है, लेकिन ना कोई पंडाल, ना लाउडस्पीकर और ना रंगबिरंगी लाइट की सजावट। यहां आने पर श्रद्धालुओं को सिर्फ वैदिक मंत्रोच्चार और बीच-बीच में शंख-घंट की ध्वनि ही सुनाई देती है। विशुद्ध पारंपरिक बंगाली रीतिरिवाज के मुताबिक हर दिन माता के सभी नौ रूपों की पूजा मठ के संन्यासी कर रहे हैं।

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बिष्टुपुर के एल रोड स्थित रामकृष्ण मिशन विवेकानंद सोसाइटी के सचिव स्वामी अमृतरूपानंद के मार्गदर्शन में चल रही पूजा में सप्तमी से नवमी तक रात्रि साढ़े छह बजे से देवी की आरती के बाद काली कीर्तन और साढ़े सात बजे से कोलकाता से आए गायक रामेश्वर गांगुली रामायण के गीत प्रस्तुत करते हैं। इसके अलावा नियमित पूजा-अर्चना मठ के संन्यासी ही करते हैं।

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विवेकानंद ने शुरू की कुमारी पूजा

रामकृष्ण मिशन के सचिव स्वामी अमृतरूपानंद के मुताबिक दुर्गोत्सव में कुमारी पूजन का आज जो प्रचलन है, इसकी शुरुआत स्वामी विवेकानंद ने ही की थी। 1886 में रामकृष्ण परमहंस के देहत्याग के बाद विवेकानंद परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण पर निकले थे। इसी दौरान उन्होंने कश्मीर में एक मुसलमान माझी की बेटी को मां दुर्गा के रूप में पूजा था। इसके बाद वे 1893 में शिकागो की ऐतिहासिक यात्रा से लौटने के बाद एक बार फिर भारत भ्रमण पर निकले। कोलकाता स्थित बेलूर मठ में स्वामी जी 1898 से नियमित दुर्गापूजा करने लगे। स्वामी जी का मत था कि मूर्ति (मृणमयी) से जीवंत (चिन्मयी) दुर्गा का पूजन श्रेष्ठ है।

हालांकि शास्त्रों में कुमारी पूजन का विधान पहले से है, लेकिन पहले यह साधु-संतों तक सीमित था। यहां गुरुवार को सुबह 10.45 बजे कुमारी पूजा होगी जिसमें बारीडीह में रहने वाली पांच वर्ष की सृजा का चयन किया गया है।


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