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श्रमिक हितों के लिए आगे आएं अकादमिक संस्थान

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : बदलाव के दौर में श्रमिक हित कहां है। उनके बारे में सोचनेवाला कौन है और श

By Edited By: Published: Tue, 30 Sep 2014 03:50 AM (IST)Updated: Tue, 30 Sep 2014 01:04 AM (IST)
श्रमिक हितों के लिए आगे आएं अकादमिक संस्थान

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : बदलाव के दौर में श्रमिक हित कहां है। उनके बारे में सोचनेवाला कौन है और श्रमिक अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव मजदूरों के हित पर कितना और किस तरह का प्रभाव डाल सकता है। श्रम कानून, सुधार और श्रमिकों के अधिकार पर जेवियर स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में जोरदार बहस चली। निष्कर्ष निकला कि श्रम कानून में संशोधन का हालिया प्रस्ताव श्रमिकों के हित में नहीं है। इसके दूरगामी नकारात्मक प्रभाव होंगे। नियोक्ता, सरकार और ट्रेड यूनियन को मिलकर इसपर गंभीरता से विचार करना होगा। ऐसे में भविष्य के मानव संसाधन के प्रबंधक तैयार करनेवाले एकादमिक संस्थानों की भूमिका आज के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।

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एक्सएलआरआइ व इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन- ब्यूरो फोर वर्कर्स एक्टिविटीज की ओर से आयोजित संगोष्ठी में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (आइएलओ) की सृष्टिनाथ, अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन जेनेवा से जुड़े राघवन, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अर्थशास्त्री प्रवीण झा, बिहार से आए ट्रेड यूनियन नेता चंद्रप्रकाश सिंह, भारतीय मजदूर संघ के श्याम सुंदर शर्मा, चेन्नई से आईं श्रम कानून की विशेषज्ञ अधिवक्ता रमा के गोपालकृष्णन, इंडियन इंडस्ट्रियल रिलेशंस एसोसिएशन के सेक्रेटरी जेनरल प्रवीण सिन्हा व एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर केआर श्यामसुंदर ने श्रम कानून, श्रमिक हित व श्रम कानूनों में प्रस्तावित संशोधनों पर आंकड़ों, हालात व आशंका, संभावना को समाहित करते हुए प्रकाश डाला। संगोष्ठी में टाटा वर्कर्स यूनियन के वाइस प्रेसीडेंट शिवेश वर्मा सहित शहर के कई ट्रेड यूनियन नेताओं ने भी शिरकत की। आमंत्रित अतिथि शांति सहाय ने महिलाओं से रात्रि पाली में काम लेने के प्रावधान पर सवाल उठाए तो एक्सएलआरआइ के छात्रों तुषार प्रभाकर, अमर सेन सहित अन्य छात्रों ने श्रमिकों से जुड़ी विसंगतियों पर विशेषज्ञों से सवाल पूछे।

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श्रमिक हितों की अनदेखी : रमा

श्रम कानून की विशेष अधिवक्ता रमा के गोपालकृष्णन ने कहा कि श्रम कानून में प्रस्तावित संशोधन मजदूरों के हित में नहीं हैं। राजस्थान व मध्यप्रदेश सरकार ने संशोधन के प्रस्ताव की प्रक्रिया शुरू की है। फैक्टरीज एक्ट में प्रस्तावित संशोधन और श्रमिकों के ओवरटाइम की अवधि बढ़ाने के अलावा उनके स्वास्थ्य व सुरक्षा संबंधी समस्या बढ़ेगी। सोचने की बात है कि क्या हमें ऐसे सुधार चाहिए? निश्चित ही 'नहीं।'

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त्रिपक्षीय पहल की जरूरत : सृष्टिनाथन

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन (आइएलओ) से जुड़ी व ट्रेड यूनियनों के लिए काम करनेवाली सृष्टिनाथन ने आइएलओ के नियम व प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए कहा कि श्रमिकों के हित के लिए श्रमिक, नियोक्ता व सरकार की ओर से त्रिपक्षीय पहल की जरूरत है। यह विचार करने की बात है कि श्रमिक सिर्फ 'कमोडिटी' नहीं है। इन्होंने ट्रेड यूनियन को कमजोर किए जाने की कोशिश को खतरनाक बताया। कहा कि भारत सहित बांग्लादेश, फिलिपींस, कंबोडिया, वियतनाम में श्रमिकों के काम करने की स्थितियां ठीक नहीं हैं। करीब 60 फीसद दुर्घटनाओं की सही खबर सामने नहीं आती।

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इंस्पेक्टर राज से बेहतर की उम्मीद नहीं : श्यामसुंदर

एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर केआर श्यामसुंदर ने सवाल खड़ा किया कि श्रमिकों के लिए सुधार करनेवाले आखिर कौन हैं? इंस्पेक्टर राज से श्रमिकों के हालात में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती। अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन को इस मामले में दखल देनी होगी। इन्होंने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि नियाक्ताओं के खिलाफ कार्रवाई के मामले घटते जा रहे हैं। उधर ठेके पर श्रमिकों से काम लेने का सिस्टम आगे बढ़ता जा रहा है। निर्माण क्षेत्र में काम करनेवाले 34 फीसद मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती।

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आइएलओ की भूमिका सुपरवाइजरी अधिक : राघवन

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) जेनेवा से आए राघवन ने कहा कि आइएलओ की भूमिका सुपरवाइजरी अधिक है। जहां तक श्रम कानून में सुधार की जरूरत की बात है तो एकेडमिक संस्थाएं इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। आइएलओ की प्रस्तावित सिफारिशों पर कई देशों की अभी सहमति नहीं मिल सकी है। ट्रेड यूनियनें श्रमिक हित के लिए काम कर रही हैं। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित कई देशों में श्रमिकों के काम करने की स्थितियां काफी अनुकूल हैं जबकि कई अन्य देशों में इसके लिए अभी प्रयास करने की जरूरत है।

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कुल लागत की महज दो फीसद मजदूरी : प्रो. प्रवीण

जेएनयू के अर्थशास्त्री प्रो. प्रवीण झा ने कहा कि रोजगार सृजन और श्रम बाजार को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। उन्होंने आंकड़ा पेश करते हुए बताया कि ज्यादातर उत्पादन इकाइयों खास तौर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों में दी जानेवाली मजदूरी दो फीसद से भी कम है। खासतौर से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए अभी स्थितियां काफी प्रतिकूल हैं। हालांकि अब उनके लिए भी प्रयास शुरू किया गया है।

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ट्रेड यूनियनों को कमजोर करने की कोशिश : चंद्रप्रकाश सिंह

बिहार से आए श्रमिक नेता चंद्रप्रकाश सिंह ने कहा कि श्रम कानून में सुधार का प्रयास ट्रेड यूनियनों को कमजोर करने की कोशिश भी है। इसके खिलाफ देशभर के श्रमिक संगठन एकजुट होकर 'सेंट्रल ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन कमेटी' का गठन कर एक मंच पर आ चुके हैं। हमारा विरोध प्रस्तावित सुधारों के खिलाफ जारी रहेगा। आइएलओ का भी देश को समर्थन मिल रहा है। विरोध अभियान के तहत आगामी 5 को देशभर में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा और रैली निकाली जाएगी। सरकार को भी चाहिए कि स्पेशल इकोनोमिक जोन (एसइजेड) की फॉलोअप रिपोर्ट दे।


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