जिस काम से डर लगे, वही पाप : आचार्य
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : आज जीव धार्मिक कम और अंधविश्वासी ज्यादा है जबकि धर्म जीवन को गति, दिशा और सार्थकता प्रदान करता है। तन की आसक्ति के कारण ही जीव परायण की कामना करता है। निराश होने से जीवन का ह्रास जल्दी होता है। सत्संग भागवत और भगवान की विशेष कृपा से ही मिलता है। परिवार, समाज, प्रदेश और देश के विकास का काम करना और इसका चिंतन करना भी एक सदाचार है।
श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथावाचक श्रीरामानिवासाचार्य महाराज ने व्यासपीठ से कहीं। जुगसलाई स्थित श्री राजस्थान शिव मंदिर में चल रही चौदह दिवसीय भागवत कथा में सोमवार को प्रह्लाद चरित्र, वामनावतार और गजेंद्र मोक्ष प्रसंग पर चर्चा हुई।
श्री महाराज ने कहा कि भागवत के ग्यारहवें स्कंद के अनुसार जीव के धरा पर आने-जाने के क्रम से मुक्ति मिलने का नाम ही मोक्ष है। भागवत चिंतन के अलावा पारिवारिक दायित्वों की चिंता अथवा जो अपने निमित्त सुरक्षित कर्म नहीं करते, वो इस धरती पर भार स्वरुप और वे मृतक के समान हैं। आचार्य ने कहा कि मनुष्य जन्म से अपराधी नहीं होता। मोह और लालच के वशीभूत होकर वो हिंसक और अपराधी बन जाता है। जिस कर्म को करने से मन डरे, संकोच आये वह पाप है। किसी को मानसिक वाचनिक और दैहिक स्वरुप से प्रताड़ित करना भी पाप है और इसके ठीक विपरीत जिस कर्म को करने से मन हर्षित हो वह पुण्य की श्रेणी में आता है। श्री महाराज ने कहा कि गाय दान के बदले गो दान करना चाहिए। गोदान का अभिप्राय इंद्रियों के दान से है।