गजल गायकी में प्रयोग की जगह नहीं : उधास
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : गजल सम्राट पंकज उधास ने कहा कि गजल गायकी की एक सीमा होती है। इसमें प्रयोग के लिए बहुत जगह नहीं होती। आज के गजलों की बात करें तो जैसे आज की शायरी बेहद आसान हो गई है, वैसे ही गजल गायकी भी आसान हो गई। मैं जमशेदपुर के गजल पसंद लोगों को शनिवार को मां पर आधारित अपने एल्बम माही की गजलें सुनाउंगा। यह एल्बम पिछले साल रिलीज हुई है। इस एल्बम की गजलें संवेदना से भरी हुई हैं। लोगों को खूब पसंद आएगी। पंकज उधास शुक्रवार की शाम को साकची स्थित होटल जीवा में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। वे टाटा ऑडिटोरियम एक्सएलआरआइ में शनिवार को आयोजित होने वाले कार्यक्रम महफिल-ए-गजल में अपनी मखमली आवाज का जादू बिखेरने आए हैं।
सवाल : सिमेना में गजल हो या दूसरे तरह के गीत, सब पर सूफियाना अंदाज हावी हो रहा है?
जवाब : सूफी के बारे में दो राय है। एक तो यह कि सूफी गाना नहीं कलाम होता है और दूसरा यह कि सूफी संगीत का एक प्रकार होता है। मेरी राय में सूफी दिल को सुकून देने वाला संगीत है लेकिन आज के दौर में जिस प्रकार से इसे पेश किया जा रहा है, वैसे इसे नहीं पेश किया जाना चाहिए।
सवाल : क्या आज की गजलों में हिंदी-उर्दू जुबान को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है?
जवाब : पिछले साल हिंदी सिनेमा ने 100 साल पूरे किए हैं। हिंदी-उर्दू जबान को विस्तारित और प्रचारित करने में इसकी अहम भूमिका है लेकिन आज के दौर में वैसे कद के शायरों की कमी महसूस होती है जो गजल को भी अपनी एक जुबान देते थे। आज न वैसे शायर हैं और न ही वैसे संगीत निर्देशक। शाहिर लुधियानवी व खय्याम साहब जैसे लोग अब कहां। आज की फिल्मों में वैसी गजलों और नज्मों के लिए जगह ही नहीं है। उसकी जगह आइटम सांग ने ले लिया है।
सवाल : एसएमएस के जमाने में गजल को कैसे जिंदा रखा जाएगा?
जवाब : जमाना चाहे कोई भी हो गजल और शायरी के जिंदा रहने पर सवाल उठाया ही नहीं जा सकता। ये दोनों आज भी उसी रूप में हैं और आगे भी रहेंगी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि पिछले 10 सालों में मैंने जितना काम किया, उसके पहले इतना काम कभी नहीं किया। गजलों और शायरी को लोग वैसे ही सुन रहे हैं जैसे पहले सुनते थे।
सवाल : गजल गायकों की नई पौध तैयार करने के लिए क्या कर रहे हैं?
जवाब : मुंबई में मैं हर साल 'खजाना' के नाम से गजल फेस्टिवल का आयोजन करता हूं। हर साल इसमें चार नये गायकों को पेश किया जाता है। इस खजाना से ही निकले तौशीफ अख्तर, संजीव बनर्जी, मोहम्मद वकील जाजिम शर्मा और श्रुति पाठक जैसे तमाम कलाकार गजल गायकी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
सवाल : जगजीत सिंह के निधन के बाद गजल गायकी के क्षेत्र में आए खालीपन को कैसे देखते हैं?
जवाब : जगजीत साहब का अपना एक अलग अंदाज था। वो जगह तो खाली ही रहेगी, लेकिन नये कलाकार उनकी कमी को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और लोगों को नाउम्मीद नहीं करेंगे।