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सजा मिली पाप की, कमा लिया पुण्य; जेल के अंदर रहकर भी निभाया फर्ज

जेल में कमाए गए पैसों से कैदी अपनी बेटियों और बहनों की शादी करा कर पुण्य कमा रहे हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Sun, 23 Jul 2017 10:19 AM (IST)Updated: Sun, 23 Jul 2017 04:24 PM (IST)
सजा मिली पाप की, कमा लिया पुण्य; जेल के अंदर रहकर भी निभाया फर्ज
सजा मिली पाप की, कमा लिया पुण्य; जेल के अंदर रहकर भी निभाया फर्ज

मदद विकास कुमार, हजारीबाग। हजारीबाग जेपी केंद्रीय कारा में करीब दो हजार कैदी अपने पापों की सजा काट रहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं जिन्हें हत्या, दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों के लिए सश्रम कारावास की सजा मिली है। इन सबके बीच इन कैदियों के जीवन का एक पहलू ऐसा भी है, जिससे प्रभावित हुए बिना शायद ही आप रह पाएं।

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पाप के भागी बने कैदी जेल के अंदर पुण्य की कमाई भी कर रहे हैं। इसका जरिया बने हैं सश्रम कारावास के दौरान इनकी मेहनत से कमाए गए रुपये। अपनी मजदूरी के पैसों से जेल के अंदर ही रहकर कैदियों ने अपने पिता और भाई होने का फर्ज निभाया है। जेल में कमाए गए पैसों से इन कैदियों ने अपनी बेटियों और बहनों की शादी समेत पुण्य बटोरने के कई काम किए हैं।

करीब दो सालों में ऐसे दो दर्जन भर कै दी हैं, जिन्होंने ऐसा कर पुण्य कमाया है। जेल प्रशासन भी ऐसे मौकों पर इन कैदियों की मदद करते हुए इनके द्वारा जमा की गई राशि परिजनों तक पहुंचाने में मदद करता है।

एक लाख रुपये तक की कर चुके हैं मदद

बेटियों और बहनों के हाथ पीले करने में इन कैदियों ने जेल से एक लाख रुपये तक की मदद दी है। जेपी कारा में बंद चतरा के दिलेश्वर मिस्त्री ने अपनी बेटी की शादी धूमधाम से की थी। इसमें उन्होंने करीब एक लाख रुपये अपने परिजनों को दिए थे। वैसे ही हजारीबाग के शंभू महतो ने अपनी इकलौती बेटी की शादी में 70 हजार रुपये की मदद अपने मेहनत की कमाई से की।

बोकारो के जितेंद्र हेब्रोम ने जेल के अंदर से अपने भाई होने का फर्ज निभाया। अपनी छोटी बहन की शादी में उसने जेल से 50 हजार रुपये भिजवाए। बोकारो के बासुदेव मंडल ने अपनी भतीजी की शादी में 50 हजार रुपये की मदद की थी। जेल के अंदर कपड़े बुनाई का काम कर रहे मिहिलाल मांझी पिता सोनार मांझी ने इसके जरिये 50 हजार रुपये दो वर्षों में जमा किए थे, जिसे उसने इसी वर्ष बेटी की शादी में दे दिए।

दर्जनभर कार्यो के लिए मिलते हैं पैसे

जेपी कारा में सश्रम कारावास की सजा पाने वाले कैदियों को सिलाई बुनाई से लेकर आलमीरा बनाने, पेपर प्रि¨टग व बाइं¨डग, कृषि समेत एक दर्जन कार्यों के लिए पैसा दिया जाता है। कोर्ट से सजा मिलने के बाद उनके रूचि के हिसाब से ही काम तय होते हैं। काम निर्धारित होने के बाद उन्हें इसकी जिम्मेवारी सौंपी जाती है। इन कामों के बदले ही उन्हें निर्धारित मेहनताना दिया जाता है।

जेल के अंदर रहकर भी फर्ज निभाया 

कई कैदियों ने अपने जमा किए गए पैसों की मदद से अपनी बेटियों और बहनों की शादी की है। जेल के अंदर रहकर भी उन्होंने यह फर्ज निभाया है। पत्र के माध्यम से बंदी राशि निकालने की सूचना देते हैं। इसके बाद सभी प्रक्रिया पूरी कर उनके परिजनों को राशि सौंप दी जाती है।

- डॉ. रूपम प्रसाद, जेल अधीक्षक, जेपी केंद्रीय कारा, हजारीबाग।

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